माल्थस, टामस राबर्ट (१७६६-१८३४ ई०) सन् १७९८ में आप पादरी हो गए और इसी वर्ष जनसंख्या के सिद्धांतों पर आपका एक खोजपूर्ण निबंध प्रकाशित हुआ। माल्थस के जीवन में ही इस पुस्तक के छह संस्करण निकल गए। अपनी पुस्तक में माल्थस ने जनसंख्या के संबंध में तीन निर्णयों की स्थापना की। पहला यह है कि यदि कोई अन्य बाधा उपस्थित न हो तो देश की जनसंख्या वहाँ उत्पन्न होनेवाली खाद्य सामग्री के परिमाण की अपेक्षा शीघ्र बढ़ जाती है। उनके मतानुसार जनसंख्या ज्यामितीय वृद्धि के अनुसार बढ़ती है, अर्थात् १, २, ४, ८, १६, ३२, ६४ आदि के हिसाब से, किंतु खाद्य सामग्री के परिमाण की वृद्धि अंकगणित के अनुसार बढ़ती है अर्थात् १, २, ३, ४, ५, ६, ७ आदि के हिसाब से। दूसरा यह है कि प्रत्येक देश में एक समय ऐसा आता है जब देश में उत्पन्न हुई खाद्य सामग्री कम हो जाती है तो उस देश में मृत्युसंख्या बढ़ जाती है। तीसरा यह कि जिस देश में जनसंख्या कम रहती है उस देश में मृत्युसंख्या भी कम रहती है। माल्थस ने जनसंख्या को कम करने के लिये बड़ी उम्र में विवाह करने, ब्रह्मचर्य एवं संयम पर जोर दिया।

माल्थस के उपर्युक्त सिद्धांत की बड़ी कड़ी आलोचना हुई। माल्थस के सिद्धांत का विरोध होने के बावजूद भी हम उनके सिद्धांत में निहित इस सत्य से मुँह नहीं मोड़ सकते कि यदि जनसंख्या की वृद्धि न रोकी गई तो वह खाद्यान्न की अपेक्षा अधिक तेजी से बढ़ जायेगी। उन्नत देशों ने तो वैज्ञानिक साधनों द्वारा खाद्य सामग्री की वृद्धि आशातीत रूप में की है किंतु पिछड़े हुए देशों में ऐसा नहीं हुआ है।

माल्थस के बाद नव माल्थसवाद का विकास हुआ। जनसंख्या की वृद्धि किसी भी देश की जनता के कल्याण के लिये हानिकारक है।

नवमाल्थस-वादियों ने जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के भिन्न साधन अपनाए। उन्होंने कृत्रिम संततिनिग्रह के साधनों पर बल दिया था।

माल्थस ने केवल जनसंख्या पर ही विशेष विचार नहीं किया बल्कि दूसरे आर्थिक विषयों, जैसे लगान, अत्यधिक उत्पत्ति, मूल्य के माप एवं व्यापार मंदी के विषय में भी अपने विचार प्रकट किए। माल्थस का महत्त्व किसी से कम नहीं है। उन्होंने जनसंख्या की समस्या को एक निश्चित रूप दिया और जनसंख्या विज्ञान की स्थापना की।

माल्थस की 'एसे ऑन पॉपुलेशन' के अतिरिक्त निम्नलिखित प्रधान पुस्तकें है: (१) काज़ेज़ ऑव प्रेजेंट हाई प्राइस ऑव प्रोविज़न, (२) एफेक्ट ऑव दो कॉर्नला, (३) नेचर एंड प्रोग्रेस ऑव रेंट, (४) ए समरी व्यू ऑव दी प्रिसिपल्स ऑव पॉपुलेशन।

[दयाशंकर दुबे]