मार्शल, सर जॉन (१८७६-१९५८ ई०)। प्रख्यात पुरातत्ववेत्ता। इनकी शिक्षा केंब्रिज में डलविच एवं क्वींस कॉलेज में हुई। भारत आने से पूर्व इन्होंने ग्रीस में पुरातत्व संबंधी शोध कार्य किया। सन् १९०२ में भारतीय पुरातत्व के महानिदेशक के रूप में इनकी नियुक्ति हुई। अपने कार्यकाल में इन्होंने सर्वांगीण और महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिसके फलस्वरूप स्मारकों के जीर्णोद्धार, पुरालेख संबंधी शोध, अन्वेषण एवं उत्खनन, स्थानीय संग्रहालयों की स्थापना, पुरातत्व, रसायन, प्रकाशन एवं प्रशासन एवं प्रशासन संबंधी अनेक सुधार किए गए।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में नए मंडलों की स्थापना के साथ ही इन्होंने राज्यों को भी पुरातत्व संबंधी कार्य के प्रति प्रोत्साहित किया जिसके फलस्वरूप भोपाल, हैदराबाद, मैसूर, कश्मीर आदि राज्यों में पुरातत्व विभागों की स्थापना की गई।
अपने कार्यक्रम के अनुसार इन्होंने भारत के स्मारकों की सूची बनवाई तथा उनके जीर्णोद्धार के लिये एक सार्वभौम प्रणाली को अपनाया जो उनकी प्रसिद्ध पुस्तक 'कंजर्वेशन मैन्युअल' में उल्लिखित है। इसके अनुसार उन्होंने आनुमानिक पुनरूद्धार और पुनर्तक्षण को अनुचित बताया। उनके बनाए जीर्णोद्धार संबंधी नियम आज भी भारतीय पुरातत्व में व्यवहृत होते हैं। उनके द्वारा जिन स्थानों का जीर्णोद्धार हुआ उनमें प्रमुख हैं सारनाथ, साँची एवं अनेक भारतीय इस्लामी स्मारक।
सन् १९१३ में मार्शल ने तक्षशिला में उत्खनन आरंभ किया जिसमें उन्हें लगभग बीस वर्ष लगे। गांधार क्षेत्र के प्रसिद्ध नगर चारसदा (प्राचीन पुष्पकलावती) में भी इसी बीच उन्होंने उत्खनन कराया। सन् १९२२ से १९२७ तक उन्होंने ऐतिहासिक स्थल मोहनजोदारों में भी खुदाई की। इनके अतिरिक्त जिन अन्य स्थानों में मार्शल ने उत्खनन कराया उनमें प्रमुख है, भीटा, पाटलिपुत्र, राजगृह, विदिशा, इत्यादि। इसके साथ ही उन्होंने भारतीय पुरातत्ववेत्ताओं को भी पुरातत्व संबंधी शोधकार्य करने के लिये प्रोत्साहित किया। भारत में स्थल संग्रहालयों की स्थापना भी मार्शल की ही देन है।
अवकाशप्राप्ति के बाद भारत सरकार के विशेष अधिकारी के रूप में इन्होंने पुस्तकें लिखीं तथा मृत्युपर्यंत स्वतंत्र रूप से लेखन, पठन एवं शोध कार्य करते रहे।
इनके प्रमुख ग्रंथ निम्नलिखित है:
कंर्जवेशन मैन्युअल (कलकत्ता, १९२३,), मोहनजोदारो ऐंड दि इंडस सिविलिजेशन, तीन खंड (लंडन, १९३१,), मॉनुमेंटस ऑव साँची, दो खंड (दिल्ली, १९४०), टैक्सिला, तीन खंड (केंब्रिज, १९५१), (५) बुद्धिस्ट आर्ट ऑव् गांधार (लंडन, १९५२) [ बृज मोहन पांडेय]