मार्तिन संत (सन् ३१६-३९७ ई०)। वह २२ वर्ष की अवस्था में ईसाई बने और सेना छोड़कर साधना करने लगे। उन्होंने दक्षिण फ्रांस में सर्वप्रथम मठ की स्थापना की और बाद में टूर (tours) के विशप बनकर उन्होंने फ्रांस के देहातों में ईसाई धर्म का सफल प्रचार किया। मध्यकाल तक संत मार्तिन (St. Martin) का मकबरा एक अत्यंत लोकप्रिय तीर्थस्थान रहा। उनके संबध में यह दंतकथा प्रचलित है कि एक अर्धनग्न भिखारी उस समय उनसे भीख माँगने आया जब उनके पास कुछ भी नहीं था। संत मार्तिन ने अपने सैनिक लबादे को दो भागों में विभक्त कर आधा भाग उसको दे दिया। उसी रात ईसा उनका आधा लबादा पहने स्वप्न में संत मार्तिन को दिखाई पड़े। [कामिल बुल्के]