मार्ग्रैटा क्रैग कुमारी मार्ग्रैटा क्रैग का जन्म १५ जून, १९०३ ई. को अमेरिका के मेरीलैण्ड के नगर बालटीमोर में हुआ। उनके पिता श्री जोजफ क्रैग धनवान् व्यापारी थे।

इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के उपरांत उन्होंने मेरीलैंड अस्पताल में नर्सिग की दीक्षा ली। यहाँ से उन्होंने नर्सिंग की एम. ए. की परीक्षा १९२५ ई. में पास की और इसी अस्तपाल में उनकी नियुक्ति भी हुई।

१९३० ई० में वह अमेरिका के प्रेसबीटेरियन मिशन की ओर से भारत आई और यहाँ महाराष्ट्र राज्य के नगर मीराज के प्रेस- बीटेरियन मिशन अस्पताल की नर्सिंग अध्यक्ष नियुक्त हुई। वह इस पद पर १९४३ ई० तक रहीं।

१९४३ ई० के दिसंबर महीने में भारत सरकार ने उनसे प्रार्थना की कि वह नर्सों के लिये स्नानकोत्तर पाठ्यक्रम तैयार करें। इसी समय उन्होंने देहली नर्सिंग शासकीय स्कूल की स्थापना की। यह भारत का प्रथम स्कूल है जहाँ नर्सों को उच्चतम नर्सिंग की शिक्षा दी जाती है।

अगस्त, १९४६ ई० में कुमारी मारग्रेटा क्रैग ने भारत सरकार की आज्ञा के अनुसार नई देहली में कालेज आफ नर्सिंग की स्थापना की। वह इस कालेज आफ नर्सिंग की संस्थापिका प्रधानाचार्या अगस्त, १९४६ ई० से जून, १९५८ ई० तक रहीं। इस सेवाकाल में उन्होंने, 'पोस्ट बेसिक कोर्सेज इन टीचिंग, एडमिनिस्ट्रेशन एवं मिडवाइफरी' तैयार कराए। इसके उपरांत उन्होंने भारत सरकार की आज्ञा से १९५९ ई० में देहली विश्वविद्यालय के लियेश् मास्टर्स डिग्री कोर्स इन नर्सिंग प्रस्तुत किया।

कुमारी मारग्रेटा क्रैग भारत की नर्सिंग शिक्षा की उन्नति तथा विकास में घनिष्ठ रूप से संबंधित रहीं। भारत सरकार की भारतीय नर्सिंग कौंसिल की मनोनीत सदस्या १९४९ से १९५३ ई० तक तथा १९६२ से १९६४ ई० तक रहीं।

१९४९ से १९६४ तक कुमारी मारग्रेटा क्रैग ट्रैंड नर्सेज एसोसिएशन आफ इंडिया कौंसिल की नायक सभापति, अवैतनिक संयुक्त कोषाध्यक्ष तथा मनोनीत सदस्या रहीं। वह देहली शाखा की ट्रेंड नर्सेज एसोशिएशन आफ इंडिया की सभापति अपने जीवन काल तक रहीं। वह नर्सिंग रिसर्च कमेटी की भी चेयरमैन जीवन पर्यंत रहीं।

नवंबर, १९५८ को कुमारी मारग्रेटा क्रैग को भारतीय सरकारी सेवा से अवकाश प्राप्त हुआ। इसके उपरांत सी० एम० सी० मिशन ने उनको पंजाब राज्य के नगर लुधियाना के सी० एम० सी० अस्पताल की नर्सिंग अध्यक्ष दिसंबर, १९५८ से नियुक्त किया, जहाँ वे १९६४ तक रही।

कुमारी मारग्रेटा क्रैग की मृत्यु २५ दिसंबर, १९६४ को लुधियाना अस्पताल में हुई। भारतवर्ष में आधुनिक नर्सिंग को विकास देने का श्रेय उन्हीं को है। भारत सरकार ने १९६४ ई० में उनको ओ० बी० ई० की उपाधि दी।

वह नर्सों से कहा करती थीं कि रोगियों की सेवा करना ईश्वर को प्रसन्न करना है। प्रत्येक नर्स का यह कर्तव्य है कि अपने हृदय तथा अपनी शक्ति से प्रत्येक रोगी को उचित सलाह दे तथा उसके प्रति सहानुभूति का व्यवहार करे। यदि कोई नर्स ऐसा नहीं कर सकती तो उसके लिये उचित होगा कि वह नर्सिंग के कार्य को त्याग कर कोई अन्य कार्य करे जो उसकी रूचि के अनुसार हो। नर्सिंग कार्य महान् सम्मानित कार्य है। इस कार्य को केवल वही अपना सकता है जिसमें त्याग की भावना एवं महान् सहनशक्ति हो। नर्सिंग सेवा ईश्वरीय सेवा के समान है।

कुमारी मारग्रेटा क्रैग की अंतिम अभिलाषा यह थी कि भारत के लड़के और लड़कियाँ नर्सिंग व्यवसाय को अपनाएँ ताकि भारत का कोई भी रोगी नर्सिंग सेवा के अभाव से मृत्यु का शिकार न हो सके और रोगियों की उचित देखभाल हो सके। [मिल्टन चरण]