मॉरफीन एक ऐल्केलॉइड है। सरटर्नर (Sertiirner) द्वारा सन् १८०६ में इस ऐल्केलाइड का पृथक्करण अफीम से हुआ था। इसका प्रयोग हाइड्रोक्लोराइड, सल्फेट, एसीटेट, टार्ट्रेट और अन्य संजातों के रूप में होता है। मॉरफीन से पीड़ा दूर होती और गाढ़ी नींद आती है। इसका सेवन मुख से भी कराया जाता है, पर इंजेक्शन से प्रभाव शीघ्रता से होता है। पीड़ा हरने में यह अद्वितीय पदार्थ सिद्ध हुआ है, पर इसके लगातार सेवन से आदत पड़ जाने की अशंका रहती है। इससे डाक्टर लोग इसका सेवन जहाँ अन्य औषधियों से काम चालाया जा सकता हो, वहाँ नहीं कराते। बहुधा इसका उपयोग दमा खाँसी, विशेषत: कुक्कुर खाँसी, में होता है। कुछ परिस्थितियों में इससे वमन और अतिसार रुकता है। आभ्यंतर रक्तस्त्राव, अभिघातज पीड़ा, गर्भपात की आशंका आदि में इसका व्यवहार होता है। यह बहुमूल्य औषधि है।

एल्कोहॉल में विलयन से वर्णरहित क्रिस्टल के रूप में मॉरफीन प्राप्त होता है। इसे अणु में क्रिस्टलन जल का एक अणु रहता है। अजल मॉरफीन २५४ सेंo पर पिघलता है। इसका विशिष्ट घूर्णन [a]d25 = - १३२ है। एक ग्राम मॉरफीन ५००० घन सेंमी० जल में, अथवा २१० घन सेंमी० एल्कोहॉल में घुलता है। क्षार में यह विलेय है। अम्लों से यह लवण बनाता है। सल्फेट, हाइड्रो-क्लोराइड और एसीटेट इसके महत्व के लवण हैं। इसके लवण लोहे, ताँबे और पारद के लवणों, क्षारमृत्तिका के लवणों तथा टैनिन वाले पदार्थों से मेल नहीं खाते। फेरिक क्लोराइड से यह गाढ़ा नीला रंग देता है। इसका संश्लेषण २७ क्रमों में हुआ है। यह संश्लेषण केवल वैज्ञानिक महत्व का है, व्यापारिक महत्व का नहीं। आज अनेक संश्लिष्ट पदार्थ बने हैं, जो मॉरफीन के स्थान में पीड़ापहारी के रूप में प्रयुक्त हो सकते हैं, या होते हैं। मॉरफीन का अणुसूत्र, का१७ हा१९ ना औ(C17 H19 N O3) है, ।

[फूलदेव सहाय वर्मा]