मामसन, थ्योडोर : जर्मन पुरालेखविद् और इतिहासकार; जन्म, ३० नवंबर, सन् १८१७ ई०; मृत्यु, १ नवंबर, सन् १९०३ ई०। कील विश्वविद्यालय में न्यायशास्त्र और भाषाविज्ञान का विद्यार्थी था। सन् १८४२ ई० में डाक्टर की उपाधि प्राप्त की। १८४८ ई० में लाइपजिंग में रोमन विधि का प्राचार्य नियुक्त हुआ। १८५८ ई० से जीवनपर्यंत बर्लिन विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास का प्राचार्य रहा। १८७२ ई० से १८८२ ई० तक प्रशा की पार्लिमेंट का भी सदस्य रहा और वहाँ उसने बिस्मार्क की गृहनीति की तीव्र आलोचना की। सन् १९०२ ई० में उसे नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
१९ वीं शताब्दी के यूरोपीय विद्याजगत् में मामसन उस जाज्वल्यमान नक्षत्र की भाँति है जिसने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से अनेक क्षेत्रों को उद्भासित किया। वह ने केवल महान् इतिहासकार था अपितु उच्च कोटि का पुरालेखविद्, न्यायवेत्ता, भाषाशास्त्रविद् मुद्राशास्त्रज्ञ तथा साहित्यिक भी था। इतिहास में उसकी परम देन उसका ग्रंथ, 'रोम का इतिहास' है जो पाँच विशाल खंडो में प्रकाशित हुआ (१८५४-१८५६ ई०)। इसके अतिरिक्त रोमन विधि तथा अन्य विषयों पर भी उसने कई उच्च कोटि के ग्रंथों का प्रणयन किया। उसके समकालीन आंग्ल विद्वान् फ्रीमैन के अनुसार मामसन न केवल अपने ही काल का, परंतु सार्वकालिक दृष्टि से भी चरम कोटि का विद्वान् था।
[चंद्रभूषण त्रिपाठी]