माने एदुवार (Manet Edouard) प्रभाववादी शैली का प्रवर्तक महान फ्रांसीसी चित्रकार। जन्म २३ जनवरी १८३२ को पेरिस में हुआ। प्रारंभ में रोलिन कालेज का छात्र बना लेकिन कला के प्रति इसकी अभिरुचि इस सीमा तक थी कि कभी अध्ययन के प्रति जागरूक नहीं रहा। १८४८ में समुद्री मार्ग के द्वारा रीयो द जेनरो गया। लौटने पर कोचर की पाठशाला में प्रवेश लिया लेकिन इसकी मौलिकता उस संस्था के अध्यक्ष के लिये द्वेष का कारण बन गई। इस चित्रशाला से उसका संबंध लगभग छह वर्ष रहा लेकिन बीच में यदा कदा छुट्टियाँ लेकर कासेल, ड्रेसडेन, वियना, म्यूनिख, फ्लोरेंस तथा रोम का परिभ्रमण करता रहा। इसी बीच स्पेनी 'गिटार वादक' की रचना की। इस चित्र को लेकर कलाजगत् में उसकी काफी आलोचनाएँ हुई।

धीरे धीरे माने के व्यक्तित्व से आकृष्ट होकर लोग इसके दल में सम्मिलित होने लगे जिनमें लेग्रास, जॉगकाइंड, विशलर, हार्पग्नीज इत्यादि कलाकार, जोला तथा डुरेट जैसे लेखक और आस्ट्रक जैसा मूर्तिकार भी था। १८६३ में एमo मार्टिनेंट ने प्रदर्शनी के निमित्त एक कक्ष प्रदान किया जिसमें माने द्वारा रचित चौदह चित्र प्रदर्शित किए गए।

प्रभाववादी विचार के अस्तित्व में आने से पूर्व भी माने मौलिक रूप से कार्य करता रहा। इसने प्रभाववादी शैली की सेवा केवल चित्रों द्वारा ही नहीं की बल्कि समस्त विरोधों और आक्षेपों को अपने ऊपर झेलकर भी की। प्रभाववादी चित्रपरंपरा के प्रति किए गए कुतर्कों का निरसन किया और अपने अन्य सहयोगियों के लिये भी लड़ता रहा।

'मद्यपान' और 'वृद्ध संगीतज्ञ' का प्रदर्शन इसी बीच पेरिस में हुआ जिसने लोगों को किंचित आकर्षित किया लेकिन 'ओलंपिया' जिसका प्रदर्शन लक्समबर्ग में हुआ, लोगों को उतना पसंद नहीं आया और इसकी व्यापक आलोचना हुई। इस बीच माने ने अनेक प्रयोग किए और परिणाम स्वरूप कुछ महत्वपूर्ण रचनाएँ प्रकाश में आईं जिनमें मुख्य हैं-- वृषभ द्वंद्व, ईसा का असंमान, त्रासदी का पात्र तथा जिटानोज रुवियर और इआगोंजालेस के आकृति चित्र ।श् 'कारसाजे और अल-बामा के द्वंद्व' के द्वारा इसकी रचनाओं को एक नया मोड़ मिला। इसके पश्चात् यह प्रभाववादी चित्रकार के रूप में काफी प्रसिद्ध हो गया। 'ट्यूअरी महल में संगीत' तथा 'ओपेरा' इत्यादि चित्रों में यही प्रभाव परिलक्षित होता है। १८७५ में आजांटाय की रचना के द्वारा इसने वाताारण चित्रण संबंधी विशेष अभिज्ञता दी और इसी क्रम में फोआ, लिंज, डेसबोतन के आकृतिचित्र भी बनाए। बाडे फुली (वेजेयर नाइटक्लब) की रचना १८८२ में की।

माने को नई विचारधारा को अस्तित्व में लाने और व्यापक बनाने के लिये साहसपूर्ण संघर्ष करने पड़े। माने की कला के प्रारंभिक दस वर्ष संघर्ष के थे लेकिन बाद के १३ वर्र्षोें में इसकी प्रभाववादी रचनाएँ पूर्णरूप से प्रकाश में आईं। १८७० से १८८३ तक इसने अपना समय चित्रों पर पड़नेवाले प्रकाश के अध्ययन के निमित्त प्रदान किया। आकृति चित्र, दृश्य चित्र, सामुद्रिक दृश्य, तात्कालिक जीवनचित्र तथा वस्तुचित्र पर इसने अपनी तूलिका समान सफलतापूर्वक उठाई। माने में मानव जीवन के मूल्यों को पहचानने की अद्भुत क्षमता थी। फ्रांसीसी कलाजगत् में इसका विशेष स्थान है। कहना गलत न होगा कि माने १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध का सर्वश्रेष्ठ कलाकार है जिसने कलाजगत् में क्रांति का प्रणयन किया। १८८३ में इसकी मृत्यु हुई।

[गुरुदेव त्रिपाठी]