मानसेहरा की ख्याति इतिहासप्रसिद्ध मौर्य सम्राट अशोक के शिलालेख को लेकर है। यह जगह भारत के उत्तर पश्चिम सीमांत (अब पाकिस्तान) हजारा जिले में अवस्थित है एवं अबोटाबाद से १५ मील उत्तर में है। मानसेहरा के आस पास प्राचीन निवास का कोई अवशेष नहीं मिला है, किंतु सर आरेल स्टाइन के विचार यह लेख जिस जगह चट्टानों पर खुदवाया गया है वह एक प्राचीन मार्ग के समीप पड़ती है। यहाँ से होता हुआ यह मार्ग एक तीर्थस्थान तक जाताश् था। अशोक के धर्मलेखों में चतुर्दश शिलालेख का विशेष स्थान है। मानसेहरा का लेख भी चतुर्दश शिलालेख के नाम से जाना जाता है जो इसके अतिरिक्त भी अन्य छह अलग अलग स्थानों में खोज निकाले गए हैं। ये मोटे तौर पर अशोक के राज्यकाल के १३ वें और १४ वें साल में खुदवाए गए थे। मानसेहरा का शिलालेख तीन जगहों में विभक्त है, प्रथम शिलालेख एक से आठ है, दूसरा नौ से ग्यारह। इसके उत्तरी सतह की चट्टान पर खुदा है एवं बारहवाँ दक्षिण की ओर है। इनमें से दो की खोज प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता कनिघंम द्वारा हुई एवं तीसरे का पता ई० सन् १८८९ में पंजाब के पुरातत्व सर्वेक्षण के एक स्थानीय सहकारी द्वारा लगाया गया।

चतुर्दश शिलालेख अलग अलग जिन सात स्थानों में पाए गए हैं उनमें से मानसेहरा और शाहबाज़गढ़ी की लिपि खरोष्ठी है जो दाहिनी से बाईं ओर लिखी जाती है। यह लिपि उन दिनों मुख्यत: भारत के उत्तर पश्चिम सीमांत में प्रचलित थी। अन्य पाँच स्थानों के अधिकतर प्रदेशों के शिलालेखों की लिपि ब्राह्मी है जो तत्कालीन भारत के अनेक प्रदेशों में प्रचलित थी। मानसेहरा के शिलालेख की भाषा शाहबाज़गढ़ी के लेख के समान हैं किंतु मानसेहरा के शिलालेख में स्थानीय भाषा की अपेक्षा मागधी का विशेष प्रभाव परिलक्षित है। मानसेहरा के शिलालेख के अक्षरों की खुदाई में सुघड़ता है एवं अक्षर बड़े हैं और साफ ढंग से लिखे गए हैं। इनमें अशोक के शासन और धर्म संबंधी सिद्धांतों का विशेष प्रतिपादन किया गया है।श्

[शाांतिप्रकाश रोहतगी]