माधवसिंह 'छितिपाल' अमेठी नरेश कविवर 'छितिपाल' की गणना उन भारतीय नरेशों में होती है। जो कुशल शासक होने के साथ सहृदय कवि भी थे। इन्होंने अमेठी राज्य तथा हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि में पूरा योगदान दिया। इन्होंने प्रयाग, काशी, विंध्याचल, लखनऊ और अमेठी में कई मंदिरों तथा महलों का निर्माण करवाया। इनका कार्यकाल संवत् १९०१ से १९४८ तक था।

आरंभ में इन्होंने शृंगारपरक रचनाएँ कीं। 'मनोजलतिका' रीतिपरंपरा की अनूठी कृति है। इसमें नखशिख, ऋतुओं तथा नायिकाभेद का मर्यादित एवं सरस वर्णन है। इसके पश्चात् इनकी अंतर्वृत्ति भक्ति की ओर हुई। वे देवी के अनन्य उपासक और भावुक भक्त थे। देवी की भक्ति विषयक इनकी सभी रचनाएँ उच्चकोटि की हैं। इन्होंने संगीत, धर्म, नीति, सज्जनमहिमा आदि अनेक विषयों पर ग्रंथ लिखे हैं। इनकी कृतियाँ ये हैं:

मनोजलतिका, भगवती विजय, देवीचरित्र-सरोज, रधुनाथ चरित्र, सीतास्वयंबर, लवकुशचरित्र प्रकाश, वैराग्यप्रकाश, नीतिदीप, सुरसदीप, रागप्रकाश, पंचाष्टक, कुंडलियाशतक, दोहा शतक, सोरठा शतक, षट्पदावली, विज्ञानविलास, भजनप्रदीप, सज्जनविलास, आदिश्

[रामबली पांडेय]