माधव प्रसाद मिश्र (१८७१-१९०७ ई०) भिवानी ( जि० हिसार; पंजाब) के समीप कूँगड़ नामक ग्राम के निवासी और कट्टर सनातन धर्मी विचारों के थे। वे स्वभाव के बड़े जोशीले तथा भारतीय सस्कृति के संरंक्षक और राष्ट्रप्रेमी विद्वान थे। उन्होंने 'वैश्योपकारक' और 'सुदर्शन' का संपादन किया। 'वेबर का भ्रम' उनके निजी संस्कृतिप्रेम का परिचायक है। नैषध-चरित-चर्चा पर महावीरप्रसाद द्विवेदी से उनकी नोक-झोंक चलती रही। श्रीधर पाठक के काव्य विषय की भी उन्होंने खूब टीका टिप्पणी की। लोकोपयोगी स्थायी विषयों पर इनके 'धृति' और 'क्षमा' शीर्षक दो लेख उपलब्ध हैं। आपके निबंध अधिकतर भावात्मक हैं। भाषा पांडित्यपूर्ण और मुहावरेदार है। जीवन-चरित-रचना में भी आप सिद्धहस्त थे।
सं० ग्रं० -- पं० रामचंद्र शुक्ल : हिंदी साहित्य का इतिहास (सं० १९९९)
[नवरत्न कपूर]