माधवदेव यह असमी के प्रसिद्ध कवि थे। इनका जन्म असम के उत्तर लखीममुर जनपद के अंतर्गत नारायणपुर के समीप हरिसिंगबरा के घर संवत् १४११ में हुआ। इनके पिता गोविंदागिरि रंगपुर जिले के वांडुका नामक स्थान में रहकर राजा का कार्य करते थे। यहीं से व्यापार के लिये वे पूर्व असम की ओर गए। देश में जब अकाल पड़ा, तो पुत्र और भार्या को साथ लेकर माधव के पिता अपने मित्रों के घर घूमते रहे किंतु कहीं भी उन्हें आदर-सत्कार न मिला। घाघरि माजि के घर वे सपरिवार कई वर्षों तक रहे। इसके उपरांत माधव की माता मनोरमा का उनके पिता ने दामाद के घर छोड़ दिया और स्वयं माधव के साथ वांडुका चले आए। माधव ने व्याकरण, भारत, पुराण, भागवत, न्याय, तर्कशास्त्र की शिक्षा राजेंद्र अध्यापक द्वारा प्राप्त की। पिता के देहात के पश्चात् वे टेमुनि गए और वाणिज्य-व्यवसाय आरंभ किया। यहीं एक सुदंरी कन्या को उन्होंने अलंकार पहनाया।
माधव देवी के उपासक थे। बाद मे जब शंकरदेव से निवृति तथा प्रवृति मार्ग पर वादविवाद हुआ तो माधव ने पराजय स्वीकार की तथा शंकरदेव की शरण ली। इसके उपरांत माधव ने उपार्जित पैतृक संपत्ति और अलंकार पहनाई गई परिणीता कन्या का परित्याग किया तथा धर्म और गुरु के हित के लिये ब्रह्मचर्य व्रत लिया। गुरु के आज्ञानुसार इन्होंने कीर्तनघोषा ग्रंथ का संकलन पूर्ण किया और आजीवन ऐ शरणधर्म का प्रचार किया। माधव शंकरदेव के अभिन्न सहयोगी थे। उनकी दोनों तीर्थयात्राओं में वे उनके साथ रहे। १५९६ ई० में कूचबिहार में उनकी मृत्यु हुई।
माधव ने भक्तिरत्नावली और आदिकांड रामायण का रूपांतर असमिया छंदो में किया तथा नामघोषा की रचना की। उन्होंने दो सौ वरगीतों का निर्माण किया जो संप्रदाय के नामसेवा प्रसंग में गाए जाते हैं। 'जन्मरहस्य' में सृष्टि के निर्माण और विनाश की लीला वर्णित है। 'राजसूय यज्ञ' उनकी एक लोकप्रिय कृति है जिसमें कृष्ण को सर्वश्रेष्ठ देव सिद्ध किया गया है। 'अर्जुन भंजन' 'चोरधरा' 'पिपरा गुंचुवा', 'भोजन विहार', और भूमिलाटोवा नाटकों में कृष्ण की बाललीला के विविध प्रसंग चित्रित हुए हैं। 'रास झूमूरा'; भूषण हेरोवा, ब्रह्ममोहन और 'कटोराखेलावा' उनकी अन्य रचनाएँ हैं। माधवदेव के गीतों की भाषा ब्रजावली हैं किंतु वर्णनात्मक अंश असमिया में लिखे गए हैं। 'नामघोषा' इनकी अत्यंत महत्वपूर्ण कृति है जिसमें संपूर्ण शास्त्रों तथा अनुभूतियों का सार अंतर्भुक्त किया गया है। इसमें एक सहस्त्र घोषाएँ हैं।
सं० ग्रं० : सं० उपेंद्रचंद्र लेखारु : कथा गुरुचरित; रामानंद, : गुरूचरित; दैत्यारि : गुरॅचरित; भूषण द्विज : गुरुचरित; लक्ष्मीनाथ बैजवरूवा : श्री शंकरदेव आरु माधवदेव; महेश्वर ने ओग : श्री शंकरदेव; जे० एन० शर्मा : शंकरदेव एंड हिज वर्क्स।
[लालजी राम शुक्ल]