माघव कंदलि यह असमी के प्रसिद्ध कवि थे। इनके कविताकाल के संबंध में इतिहासकारों तथा समालोचकों में अधिक मतभेद है। कनकलाल बरूवा के मतानुसार इनके आश्रयदाता वाराही नरेश कपिली उपत्यका के शासक थे और माधव कंदलि इन्हीं के राजकवि थे। इस प्रकार इनकी कविता का रचनाकाल १४वीं शती का उत्तरार्ध मालूम होता है। माधवचंद्र बरदलोई ने स्वसंपादित रामायण की भूमिका में इनकी कृति रामायण को १४वीं अथवा १५वीं शती की रचना और इन्हें नवगाँव का निवासी प्रमाणित किया है। शंकरदेव ने राम कथा के पदकर्ता माधव कंदलि की भूरि भूरि प्रशंसा की है। उनकी तुलना गज से की है और कहा है कि वे स्वयं उनके सम्मुख शशक के समान लघु हैं। माधव कंदलि को लोग 'कविराज कंदलि' कहते थे। वर्तमान नवगाँव जिले के कंदलि नामक स्थान से अनेक प्रख्यात कंदलि ब्राह्मणों का संबंध था परंतु माधव कंदलि यहाँ के निवासी नहीं थे।

वाराहराज श्री महामणिक्य के अनुरोध पर माधव कंदलि ने सर्वसाधारण के लिये सुबोध शैली में रामायण का पयारबद्ध अनुवाद किया (रामायण सुपयार श्रीमहामणिक्य ये वाराह राजार अनुरोधे)। माधव कंदलि के रामायण की सभी प्रतियों में आदि तथा उत्तरकांड नहीं मिलते, यद्यपि उन्होंने लंकाकाड के अंत में रामायण के सात कांडों का उल्लेख किया है [सात कांडे रामायण पद बंधे निबंधिलो]। कंदलि ने बाल्मीकि कृत रामायण को वेदों के समकक्ष रखा है। मूल कथा को अधिक रोचक बनाने के लिये यत्रतत्र सुंदर काव्यकल्पना का सहारा लिया है। 'देवजित्' इनकी दूसरी रचना है किंतु प्रयोग एवं शैली की दृष्टि से यह किसी अन्य कवि की रचना प्रतीत होती है।

सं० ग्रं० : रामायण, सं० माधवचंद्र बरदलोई; असमिया सात कांड रामायण -- सं० प्रसन्नलाल चौधरी १९४१; उपेंद्रचंद्र लेखास : असमिया रामायण साहित्य, १९४८।

[लालजी राम शुक्ल]