मातृत्व और बालकल्याण श्(Maternity and Child Welfare) प्रसूता माता तथा बालक की जीवनरक्षा तथा उनके स्वास्थ्य और कल्याण की समस्या से संबंधित है। इस विषय पर प्रारंभ में कुछ समाज सेवा करनेवाले निजी संगठनों ने ध्यान दिया। धीरे धीरे इस विषय के महत्व पर सरकारों का ध्यान आकर्षित हुआ और अब प्राय: सभी देशों की सरकारें इसे अपना दायित्व मानने लगी है। इस कार्य के लिये सरकारें धन की व्यवस्था करती है। भारत में मातृत्व और बाल कल्याण विभाग स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत कार्य कर रहा है।
मातृकल्याण - माता के स्वास्थ्य के कल्याण के विचार से यह आवश्यक है कि प्रसव पूर्व (pre-natal) देखरेख का उचित प्रबंध सुलभ हो। इस हेतु प्रसवपूर्व निदानशाला या क्लिनिक प्राय: सभी देशों में स्थापित हैं। इनमें गर्भवती स्त्रियों को चिकित्सकों तथा उपचारिकाओं की समय-समय पर देखरेख और उचित सलाह तथा आवश्यक निदान के लिये प्रयोगशालाएँ उपलब्ध रहती है। कुछ केंद्रों में रोग निदान तथा उपचार का, विशेषत: उपदेश और स्थानिकमारी रोग, जैसे मलरिया आदि, के निदान और उपचार का प्रबंध रहता है तथा पौष्टिक भोजन, दूध, विटामिन की गोलियाँ आदि भी सुलभ रहती है। समाज सेविकाएँ, महिला स्वास्थ्य निरीक्षिकाएँ तथा उपचारिकाएँ प्रसव के पहले गर्भवती स्त्रियों के घर पर जाकर उनकी देखभाल करती है तथा उन्हें स्वास्थ्य संबंधी उचित सलाह भी देती है साथ ही राजकीय या निजी संगठनों द्वारा मातृकक्ष (maternity ward) तथा प्रसवाश्रयों की स्थापना की जाती है, जहाँ धात्री की देखरेख में प्रसव कार्य होता है। भारत में धात्रियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था भी है। जिस प्रकार राज्यों के पिछड़े हुए क्षेत्रों में मातृत्व और बालकल्याण सेवा में व्यवस्थापन की पृथक् राजकीय योजनाएँ हैैं, उसी प्रकार राष्ट्रीय विकास खंडों में स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना की गई है, जिससे गाँवों में भी सभी सुविधाएँ मिल सकें। नगरपालिकाएँ भी इस कार्य में दिलचस्पी लेने लगी है। साथ ही नगरपालिका या नगर महापालिका में माता की मृत्यु की सूचना देना आवश्यक हो गया है। इससे मातृक मृत्युदर के आँकड़े प्राप्त होते हैं तथा मातृक योजनाओं के लाभ, कुशलता और सुधार की आवश्यकता आदि पर प्रकाश पड़ता है।
प्रसूता के लिये प्रसूति सहायता (maternity benefit) की दूसरी व्यवस्था भी है, जिसके अनुसार प्रसवकाल के नजदीकश् आने पर तथा प्रसव होने के समय प्रसूता कुछ धनराशि की हकदार होती है और इस धन के मिलने से कुटुंब पर व्यय का भार बहुत कम हो जाता है। इससे माता तथा शिशु के स्वास्थ्य, चिकित्सा, पोषण आदि की चिंता कम हो जाती है। यह योजना अभी भारत में बहुत छोटे पैमाने पर है। नौकरी करनेवाली स्त्रियों को, जिन्हें रोगी बीमा संगठन (Compulsory Sickness Contribution Scheme) में नाम लिखाना अनिवार्य है तथा जो नियमों के अनुसार प्रसूति काल में नौकरी नहीं कर सकती हैं, इस व्यवस्था से सहायता मिलती है।
महिला सरकारी कर्मचारी तथा राजकीय जीवनबीमा व्यवस्था से लाभ पानेवाली स्त्रियों को इसके साथ ही प्रसव के बाद कुछ समय तक प्रसूत्यवकाश भी मिलता है, जिससे प्रसूतिकाल में उन्हें नौकरी के संबंध में चिंता नहीं रहती है। इस अवधि में माताओं के स्वास्थ्य का सुधार होता है तथा उन्हें विश्राम भी मिलता है।
बालकल्याण (देखें बालकल्याण)।
[उमाशंकर प्रसाद]