माडखोलकर, गजानन त््रयंबक मराठी उपन्यासकार, आलोचक तथा पत्रकार; जन्म २८ दिसंबर, १८९९ को बंबई में हुआ। आपने आरंभ में रवि-किरण-मंडल नामक कविसप्तक के सदस्य के नाते काव्यलेखन आरंभ किया। बाद में आलोचक के नाते अधिक ख्याति प्राप्त की। १९३३ में आपने 'मुक्तात्मा' नामक उपन्यास लिखकर मराठी में राजनीतिक उपन्यास लेखन की प्रथा आरंभ की। बाद में कई उपन्यास आपने लिखे जिनमें रूढ़ नैतिकता और सामाजिक मान्यताओं के प्रति विद्रोह का द्वंद बहुत तीव्र रूप से व्यक्त हुआ है।

माडखोलकर अपनी काव्यमयी भाषाशैली के लिये बहुत प्रसिद्ध हैं। कुछ आलोचकों ने उनकी कथात्मक रचनाओं में स्त्री-पुरुष संबंधों की स्पष्ट व्याख्या को श्लीलता की मर्यादा से परे बताया है। संस्कृत काव्यशास्त्र के ज्ञाता और अभिजात रसवादी होने पर भी वे आधुनिकता को सहानुभूति से देखते थे। मराठी भाषा तथा साहित्य में पिछली पीढ़ी की औपन्यासिक त्रयी में फड़के-खांडेकर के साथ आपका नाम आदर से लिया जाता है। आपकी कई रचनाओं के अनुवाद हिंदी गुजराती आदि भाषाओं में भी हुए हैं।

माडखोलकर के सब प्रकाशित ग्रंथ ३४ हैं। प्रमुख कृतियाँ हैं --- समालोचनात्मक : 'विष्णु कृष्ण चिपलूणकर' (१९२३); 'वाङ्मयविलास' (१९३७); उपन्यास : 'मुक्तत्मा' (१९३३); 'शाप' (१९३६); 'भंगलेले देऊल' (भग्न मंदिर, हिंदी में अनुवादित); 'दुहेरी जीवन' (दुहरा जीवन १९४२ में सरकार द्वारा जब्त); 'प्रमदूरा', 'डाक बँगला', 'चंदनवाडी' (१९४३); 'एका निर्वासिताची कहाणी' (एक शरणार्थी की कहानी, १९४९), अनघा इत्यादि। प्रवास वर्णन : 'दक्षिणेश्वर' 'माझा अमरिकेचा प्रवास'; कहानी संग्रह : 'शुक्राचे चांदणी' (शुक्र की चाँदनी) इत्यादि।

[प्रभाकर माचवे]