माए निकोलस संसारप्रसिद्ध डच चित्रकार रेब्राँ का शिष्य (१६४८) था। १६६५ तक रेब्रा की शैली में ही वह व्यक्तिचित्र (पोर्ट्रेट) तथा दृश्य बनाता रहा। १६६५-६६ में वह ऐंटवर्प गया। वहाँ उसपर फ्लेमिश कला का प्रभाव पड़ा। इस प्रभाव को उसने डच व्यक्तियों की आकृतियों में भी दर्शाया। उसके चित्र एम्सटर्डम, ऐंटवर्प, बोस्टन, ब्रुसेल्स, वाशिंगटन की कलावीथियों इत्यादि स्थानों में देखे जा सकते हैं।
[रामचंद्र शुक्ल]