मांडले १. जिला, स्थिति : २१� ४२� से २२� ४६� उo अo तथा ९५� ५४� से ९६� ४६� पूo देo। यह उत्तरी बर्मा का जिला है। इसका क्षेत्रफल २,११५ वर्ग मील तथा जनसंख्या ४,०८,९२६ (१९४१) है। कृषियोग्य भूमि केवल इरावदी नदी की घाटी में है जो कॉप मिट्टी द्वारा निर्मित है और इसका क्षेत्रफल लगभग ६०० वर्ग मील है।, उत्तर और पूर्व में पहाड़ तथा पठार है जो भौगोलिक रूप से शान पठार के ही भाग हैं। इनका विस्तार लगभग १,५०० वर्ग मील में है। सर्वोच्च चोटी मैमयो (Maymyo) ४,७५३ फुट ऊँची है। यहाँ बाँस आदि के जंगल पाए जाते हैं। इस जिले में इरावदी और उसकी सहायक म्यितंगे (Myitnge) तथा मडया नदियाँ बहती हैं। ७� सेंo से यहाँ ४३� सेंo यहाँ का वार्षिक औसत ताप है। मैदानी भाग की जलवायु शुष्क एवं स्वास्थ्यप्रद है तथा औसत वार्षिक वर्षा ६० इंच होती है। पहाड़ी भागों में मुख्यत: हाथी, गवल एवं साँभर पाए जाते हैं। भूकने वाला हरिण (gyi) प्राय: सभी जगह पाया जाता है। धान इस जिले की प्रधान फसल है। लेकिन गेहूँ, चना, तंबाकू और कई प्रकार की दालें भी उत्पन्न की जाती है। अभ्रक मुख्य खनिज है। इसके अतिरिक्त, माणिक्य, सीसा और निम्न कोटि का कोयला भी पाया जाता है।
रेशम के वस्त्र बुनना एक महत्वपूर्ण उद्योग है। इस जिले में कई पगोड़ा हैं, किंतु सूतांग्ब्यी (Sutaungbyi) सूतांग्ये (Sutaungye), शुई जयान (Shue Zayan) और श्वे मेल (Shwe Male) उल्लेखनीय है।
२. नगर, स्थिति : २२� ०�श् उoश् अoश् तथा ९६� ०�श् पूoश् देo । यह स्वतंत्र बर्मा की भूतपूर्व राजधानी, मुख्य व्यापारिक नगर एवं गमनागमन का केंद्र है जो इरावदी नदी के बाएँ किनारे पर, रंगून से ३५० मील उत्तर स्थित है। १८५६-५७ ई० में राजा मिंडान ने इसे बसाया था। नगर को बाढ़ से बचाने के लिये एक बाँध बनाया गया है। मांडले से बर्मा की सभी जगहों के लिये स्टीमर सेवाएँ हैं। रेल एवं सड़क मार्ग द्वारा यह रंगून से संबद्ध है। यहाँ की जनसंख्या २,१२,८७३ (१९६३) है, जिसमें अधिकांश बौद्ध धर्मावलंबी हैं। यहाँ का मुख्य पगोडा पयाग्यी या अराकान है जो राजमहल से चार मील दूर स्थित है। यहाँ का मुख्य बाजार जैग्यो है। यहाँ विश्वविद्यालय भी है।
नगर में बर्मियों के अतिरिक्त हिंदू मूसलमान, यहूदी, चीनी, शान एवं अन्य जाति के लोग निवास करते हैं। द्वितीय महायुद्ध के समय १ मई, १९४२ ईo को जापानियों ने इसपर अधिकार कर लिया था। उस समय राजप्रासाद की दीवारों के अतिरिक्त लगभग सभी इमारतें जल गई थीं। अत: जापानियों ने इसे 'जलते हुए खंडहरोंवाला नगर' कहा।
[राजेंद्रप्रसाद सिंह]