महामारी जलशोथ -- जलशोथ में शरीर में तरल पदार्थ की अधिकता हो जाती है, और किसी ऊतक या अंग में अथवा शरीर की गुहा (cavity) आदि में जल भर जाता है; उदाहरण के लिये हृदय रोग में शरीर के दूर के भागों में या वक्षशोफ (hydro-thorax) दशा में, तरल पदार्थ का फुफ्फुसावर्णी गुहा में जमा होना। हृदय के तल में जल-ह्दयावरण (hydro-pericardium), उदर की गुहा (peritoneal cavity) में जलंधर (ascites) तथा जब सारे शरीर में प्रकट होता है, तब यह देहशोथ (Anasarca) कहलाता है।

जलशोथ किसी विशेष रोग का नाम नहीं है वरन् लक्षण मात्र है। परंतु यदि विशेष रोग में यह दशा महामारी के रूप में प्रकट हो, तब यह महामारी जलशोध कहलाती है। यह विशेष महामारी रोग बेरी बेरी तथा इससे कुछ मिलते रोग में देखा जाता है। इस कारण महामारी जलशोध विशेष रोग समझा जाता है।

महामारी जलशोथ रोग का उचित ज्ञान बहुत दिनों तक नहीं था। १८७७ ईo में कलकत्ता शहर में यह रोग संक्रामक रूप में पहली बार प्रकट हुआ और दूसरे वर्ष यह रोग पुन: अधिक क्षेत्र में उत्पन्न हुआ। सन् १९०२ में इस रोग का इतना भीषण प्रकोप हुआ कि प्राय: ३३ प्रतिशत रोगी मर गए। जलशोध आरंम्भ में पैरों में प्रकट होता था, फिर रोग बढ़ने पर हाथ में भी आ जाता था। इसके साथ ही आंत्रस्राव, पैरों में दर्द, कमज़ोरी, हाथ पैर में जलन तथा मीठा दर्द, सूई चुभने का अनुभव तथा रक्तक्षीणता (anaemia) मुख्य लक्षण थे। ताप नहीं होता था। फुफ्फुस प्रदाह तथा हृदयगति रूकने से मृत्यु होती थी। यह सब लक्षण बेरी बेरी रोग से बहुत मिलते थे। पता लगने पर बेरी बेरी की भाँति भोजन में विटामिन बी की न्यूनता ही रोग का कारण माना गया है। बंगाल के निवासियों में, जिनका मुख्य आहार पॉलिश किया चावल है, यह रोग बहुत अधिक पाया जाता था।

रोगनिवारण के लिये भोजन में विटामिन की पूरी मात्रा की आवश्यकता है, विशेषकर विटामिन बी की। रोग चिकित्सा में लक्षणों की चिकित्सा के साथ विटामिन बी का उचित मात्रा में प्रयोग आवश्यक है। [उमाशंकर प्रसाद]