महाभारत - महाभारत प्राचीन भारत का इतिहास तथा एक राष्ट्रीय महाकाव्य है जिसकी मूल रचना कृष्ण द्वैपायन व्यास ने जय नाम से चौबीस सहस्र श्लोकों में की थी। लोकमान्य तिलक जैसे विद्वानों के मत से कौरवों पर पांडवों की विजय का वर्णन होन से इसका `जय` नाम पड़ा। परंतु धर्म संस्थापन इसका मुख्य प्रयोजन तथा इसमें बार बार दुहराए `यतो धर्मस्ततो जय:` के प्रयोग से धर्म की विजय का निर्देशक होन से `जय` नाम की सार्थकता अधिक उपयुक्त है। कुछ श्लोक अपनी ओर से मिलाकर व्यासशिष्य वैशंपायन ने जनमेजय के सर्पसत्र में `भारत` नाम से जय काव्य को लोकविश्रुत किया और अनेक कथाएँ और उपाख्यान जोड़कर सौति उग्रश्रवा ने भारत को महाभारत का वर्तमान तथा अंतिम स्वरूप दिया। बृहदाकार तथा विषय की महत्ता के कारण इसका नाम महाभारत पड़ा। वस्तुत: व्यास, वैशंपायन और सौति इसके तीन रचयिता होने पर भी व्यास के मूल प्रयोजन, सिद्धांत और वर्णन शैली में स्वारस्य बने रहने के कारण व्यास ही को महाभारतकार मानने की परंपरा अयथार्थ नहीं हैं।
काल -- जय और भारत की रचना का काल आज तक अनिश्चित है। महाभारत युद्ध के बाद ही जय का रचा जाना असंदिग्ध है किंतु उस युद्ध के विषय में भी मतैक्य नहीं है। लोकमान्य तिलक तथा दूसरे विद्वान् उसका समय ईसा पूर्व १४०० वर्ष बतलाते हैं (गीता रहस्य, पृo ५५५) तो आर्य ज्योतिषियों की परंपरा के अनुकूल राo बo चिo वि वैद्य सप्रमाण उसे ईसवी सन् के ३१०१ वर्ष पहले सिद्ध करते हैं (मo भाo मीमांसा, ८९)। जो हो, वर्तमान महाभारत के काल के विषय में प्राय: ऐकमत्य है। वैद्य महोदय का मत है कि 'इन सब बातों का निचोड़ यह है कि ईसवी सन् के पहले ३२० से, २०० तक के समय में वर्तमान महाभारत का निर्माण हुआ है'। इसी से मिलता-जुलता मत लोकमान्य तिलक का है कि यह बात निस्संदेह प्रतीत होगी कि वर्तमान महाभारत शक के लगभग पाँच सौ वर्ष पहले अस्तित्व में जरूर था। स्पष्ट है कि यह विषय और शोध की अपेक्षा रखता है।
विस्तार -- महाभारत की अनुक्रमणिका में १८ पर्व और एक लाख श्लोक बतलाए गए हैं। परंतु हरिवंश अर्थात् खिल पर्व को सम्मिलित करने पर उपलब्ध पोथियों की गणना एक लाख से न्यूनाधिक है।
विषय -- महाभारत संस्क्त साहित्य का एक बृहत् विश्वकोश है जिसमें उसके रचनाकार के अनुसार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के विषयों में उसमें जो कुछ है वह अन्यत्र भी मिलेगा और जो वहाँ नहीं है वह और कहीं मिलेगा (आदिo १,२६७)। उसमें वेदों, उपनिषदों और पुराण का रहस्य, भूत, वर्तमान और भविष्य वर्णन, जरा, मृत्यु, भय और व्याधि का हेतु तथा प्रतिकार, अनेक धर्मों तथा आश्रमों के लक्षण, चातुर्वर्ण्य का विधान, तपस्या, ब्रहमचर्य, पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और ताराओं का युगों के साथ प्रमाण, ऋ ग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अघ्यात्म विद्या, सात्विक इत्यादि कर्मो के साथ देवता और मनुष्य जन्म का वर्णन, एवं देवताओं के नगरों और धनुर्वेदोक्त, युद्ध की क्रियाओं, सेना, गृहरचना, पवित्र तीर्थों, देशों, नदियों, पर्वतों, वनों और समुद्रों का वर्णन अर्थात् आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक विषयों की मीमांसा समाविष्ट है। संक्षेप में इस विश्वकोश में धर्मसंहिता, राजनीति शास्त्र, कर्त्तव्याकर्त्तव्य शास्त्र, विज्ञान, अध्यात्म दर्शन इत्यादि विभिन्न शास्त्रों का भंडार भरा हुआ है।
महाभारत युद्ध का वर्णन अत्यंत सरस, रोमांचकारी और ओजस्वी भाषा में हुआ है जो आद्योपांत अद्भूत वीर भावनाओं का उद्दीपक है। जहाँ तहाँ करूण रस के पुट से वह मनोरंजक भी हो गया है। इसके अभ्यंतर व्यावहारिक नीति तथा सत्याट्त विवेचन इत्यादि विषय भी यथास्थान पिरोए गए हैं। स्वभावत: क्षात्रधर्म पर अत्यधिक बल दिया गया है और पूर्ण शक्ति तथा उत्साह के साथ धर्मपूर्वक शत्रु से लड़कर विजय पाना अथवा संमुख रण में मृत्यु का आलिंगन करके योगी की गति प्राप्त करना क्षत्रिय का परम कर्तव्य निर्दिष्ट हुआ है।
इस युद्ध के मूल हेतु तथा परिणाम को दिखाने में व्यास जी का उद्देश्य इतिहास प्रस्तुत करने के साथ अन्याय पर न्याय की विजय स्थापित करना है। उन्होंने इतिहास और पुराण को वेद के रहस्य खोलने का साधन बतलाकर मनुष्य जीवन की सफलता और समाज की सुस्थिति के लिये धर्मनिष्ठा का प्रभावपूर्ण शब्दों में आदि से अंत तक सयुक्तिक प्रतिपादन किया है। महाभारत में एक परमात्मा के अस्तित्व पर बल दिया गया है और उसमें त्रिमूर्तियों तथा दूसरे देवी देवताओं को उसकी अनंत शक्तियों की अभिव्यक्ति बतलाकर वैष्णव शैव, शाक्त इत्यादि मतों के विरोध मिटा कर सनातन धर्म में ऐक्य स्थापित करने का महान् उद्योग है। उसमें प्रत्येक वर्णवाले को स्त्री और शूद्र को भी, अपने अपने कर्तव्य का निष्ठापूर्वक पालन करते हुए आधिभौतिक उन्नति के साथ परम पद पाने का मार्ग प्रशस्त किया गया है। शील और चरित्र के महत्व तथा संबंधियों और समाज के प्रति कर्त्तव्यों की सविस्तार व्याख्या के समावेश के कारण महाभारत को वस्तुत: प्रामाणिक धर्मशास्त्र की प्रतिष्ठा प्राप्त है।
महाभारत के अनेक संवादों और भाषणों में भाषावैचित््रय, अर्थगौरव और वाग्मिता तथा मनोविज्ञान पर आधारित रीति शास्त्र (Rhetoric) का उत्क्ष्ट उपकरण वर्तमान है। उदाहरण के लिये कौरवों की सभा में संधिदूत भगवान् श्रीकृष्ण की वक्त्ता संसार के अनुपम भाषणों में एक ही है। इसी तरह अनेक प्रकार के मनोरंजक आख्यानों और शिक्षाप्रद पुरावृत्त विषयक कहानियों के मेल से उसे कथासरित्सागर का स्वरूप प्राप्त है।
व्यावहारिक ज्ञान और विवेकप्रद विदुरनीति तथा दूसरे नीति वचनों से अलंकृत महाभारत सुभाषित संग्रह है और राष्ट्रनीति तथा राजनीति के विवेचन से, जिसकी शांतिपर्व में विशेष विस्तारपूर्वक मीमांसा है, उसे राजनीतिशास्त्र का भी महत्व प्राप्त है। इसी तरह उसमें आदर्श नारियों के त्यागमय चरित्र, पातिव्रत्य और प्रगल्भ पांडित्य को महत्व देने से स्त्रीजाति के गौरव तथा सम्मान की प्रतिष्ठा हुई है।
सत्य और अहिंसा तथा धर्म के अन्य तत्वों का सहेतुक विवेचन और अध्यात्म का निरूपण कृष्ण-अर्जुन-संवाद, जनक-सुलभा याज्ञवल्क्य-जनक, ब्राहमण-व्याध एवं अन्य संवादों में विविध प्रकार से हुआ है; सर्वोपरि महाभारत के शिरोभूषण गीता में समस्त उपनिषदों का अध्यात्मज्ञान अमृतघट के समान भर दिया गया है और उसका ज्ञान, कर्म और भक्ति का समुच्चय तथा समन्वय पर्याय से महाभारत की अद्वितीय मौखिकता है। परस्पर विरोधी धर्मों की विषम परिस्थिति में कर्तव्याकर्तव्य से व्यामूढ़ पुरूष के लिये अध्यात्म पर आधारित अचूक कसौटी का नीतिशास्त्र यही है।
संo ग्रंo -- महाभारत मीमांसा, माधवराव सप्रे कृत हिंदी अनुवाद; लोकमान्य तिलक: गीता रहस्य; ईo हापकिस : द एज ऑव द महाभारत; एंसाइक्लोपीडिया ऑव मॉरल्स और हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर (डब्ल्यू र्विटर्निज); हिस्ट्री ऑव संस्कृत लिटरेचर : (बेंड़ेल, कीथ तथा मेकडॉनेल); इंपीरियल गज़ेटियर ऑव इंडिया वाल्यूम २; द हिरोइक एज ऑव इंडिया (एनo केo सिद्धांत) हिस्ट्री ऑव द कलि एज (पार्जिटर); एनoश् वीo ठडानी कृत दि मिस्ट्री ऑव दि महाभारत (पाँच खंडों में) [चंद्रावली त्रिपाठी]