महमूद बेगढ़ गुजराती सुल्तान महमूद बेगढ़ मई १४५८ में गद्दी पर बैठा। उसने ५४ वर्ष तक वैभव और समृद्धि के साथ राज्य किया। 'मीरात सिकंदरी' के अनुसार सुल्तान महमूद अपने न्याय, दया एवं मुसलिम नियमों का आदर करने के कारण गुजरात के सभी सुल्तानों में सर्वश्रेष्ठा था। उसने बड़ी आयु प्राप्त की और अपनी शक्ति, शौर्य तथा उदारता के लिये विख्यात हुआ।

महमूद के विषय में प्रसिद्ध है कि उसकी खुराक बहुत थी। सिकंदर के अनुसार उसका प्रत्येक दिन का आहार लगभग २० सेर होता था। भोजन के पश्चात् वह पाँच सेर मीठा खाता था और सोते समय अपने निकट समोसे भरी दो तश्तरियाँ दोनों तरफ़ रखवा लेता था ताकि जिस तरफ भी नींद खुले वह कुछ खा सके। अपनी भूख के लिये वह स्वयं कहता था कि यदि अल्लाह ने उसे इतना बड़ा राज्य न दिया होता तो उसकी भूख कैसे शांत होती?

जहाँ तक महमूद के नाम से बेगढ़ का संबंध है गुजरात के लोगों का कहना है कि उसकी मूँछें लंबी और बटदार उस बैल के समान थी जिसे बेगढ़ कहते हैं, अत: उसे बेगढ़ के नाम से जाना जाने लगा। यह भी कहा जाता है कि गुजराती भाषा में 'बी' के अर्थ होते है 'दो' और गढ़ के अर्थ है किला, अत: उसे बेगढ़ के नाम से पुकारा जाने लगा क्योंकि जूनागढ और चंपानेर के किले उसके अधिकार में आ गए थे।

अमीरों ने उसे हटाने का षड्यंत्र किया पर महमूद ने उन्हें समुचित दंड दिया। इसके बाद फिर कभी किसी अमीर को राजाज्ञा के उल्लंघन का साहस उसके समय में न हुआ।

जब महमूद गद्दी पर बैठा था तब उसकी उम्र केवल १३ वर्ष की थी। परंतु उसने बड़े योग्यतानुसार एक सुदृढ़ सेना का निर्माण कर साम्राज्य में शांति स्थापित की। उसके राज्य के सैनिक वृत्तांत उसके लगातार विजय के परिचायक हैं। गुजरात के तीन मुख्य हिंदू राज्य जूनागढ़, चंपानेर तथा ईडर किसी तरह अहमदशाह के धार्मिक युद्धों से अपने को बचाए हुए थे। परंतु प्रथम दोनों राज्य शौर्यपूर्ण लंबे विरोध के बाद भी महमूद की सेना के सामने न टिक सके और शाही राज्य के अंग बन गए। जूनागढ़ के शासक के साथ १४६७-१४७० तक चार वर्ष तक युद्ध चलता रहा और अंत में महमूद विजयी हुआ। जूनागढ़ का नाम बदलकर उसने मुस्तफाबाद कर दिया। परंतु उसकी मृत्यु के बाद मुस्तफाबाद का नाम अधिक समय तक न रह सका। कच्छ के रेगिस्तान को पारकरते हुए महमूद ने सिंध के जाट और बलूची लोगों से युद्ध किया। सन् १४७३ में उसने द्वारका, बेट इत्यादि पर कब्जा किया। १४७९ में वत्रक पर महमूदाबाद की स्थापना की। रानपुर को भी उसने जीता। १४८२-८४ के बीच चंपानेर से युद्ध हुआ। अंत में पड़ोसी राज्य खानदेश के ऊत्तराधिकार परभी संघर्ष हुआ।

महमूद को न केवल सैनिक विजयों का गौरव ही प्राप्त था बल्कि वह एक योग्य शासक भी था भवननिर्माण इत्यादि में उसकी विशेष रुचि थी। फरिश्ता के कथन से प्रकट है कि महमूद बेगढ़ ने गुजरात के तीन मुख्य नगरों अहमदाबाद, जूनागढ़ एवं चंपानेर के विस्तृत दुर्गों की रचना की। इसके अतिरिक्त उसने बहुत सी सराएँ, मदरसे एवं मस्जिदें बनवाईं। फलों के बहुत से वृक्ष भी लगवाए। [रेखा मिश्र]