महमूद ग़्ज़ानवी अमीर सुबुक्तगीन के पुत्र महमूद का जन्म ९७१ ईo में हुआ और ९९८ ईo में वह अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् सिंहासनारूढ़ हुआ। उसके पिता ने ग़्ज़ानी तथा आसपास के क्षेत्रों पर अपनी सत्ता को दृढ़ बनाकर अपने पड़ोसी, पूर्व के शाही राजा जयपाल के किलों को अधिकृत करना प्रारंभ कर दिया था। महमूद ने हिरात, बल्ख तथा बुस्त के इलाकों को सुव्यवस्थित कर एवं खुरासान पर पूर्ण रूप से अधिकार जमा लेने के उपरांत पूर्व की ओर प्रस्थान किया। ९९९ ईo में अब्बासी खलीफा ने उसकी बढ़ती शक्ति को देखकर उसे यमीनुद्दौला एवं अमीनुल मुल्क की उपाधि प्रदान की थी। १००० ईo में उसने भारतवर्ष पर आक्रमण करना प्रारंभ किया। दो वर्ष के भीतर महमूद ने खुरासान से भी अधिक समृद्ध पेशावर को अपने अधिकार में कर लिया। जयपाल उसे रोकने में असफल रहा। अपनी बार बार की असफलताओं के कारण उसने १००१ ईo में आत्महत्या कर ली और आनंदपाल उसका उत्तराधिकारी बना। १००५-६ ईo में महमूद ने मुल्तान के इस्माईली शासक अबुल फतह दाऊद के विनाश के हेतु ग़्ज़ानी से प्रस्थान किया। आनंदपाल दाऊद का सहायक था। उसने महमूद को पेशावर के आगे बढ़ने का मार्ग न दिया। पेशावर के निकट घोर युद्ध हुआ। आनंदपाल ने पराजित होकर कश्मीर की पहाड़ियों में शरण ली। महमूद ने मुल्तान पर अधिकार जमा लिया। १००८ ईo में महमूद ने आनंदपाल पर आक्रमाण किया। इस बार पंजाब के गक्खरों ने भी आनंदपाल की सहायता की और युद्ध में सुल्तान के दाँत खट्टे कर दिए किंतु अंत में वे पराजित हुए और महमूद ने भीमनगर (नगर कोट अथवा कोट काँगड़ा) तक उनका पीछा किया। १००९ ईo में उसने पुन: मुल्तान पर आक्रमण करके इस्माईलियों को तहस नहस कर दिया। महमूद को इस प्रकार विजय पाते देखकर आनंदपाल ने उससे संधि कर ली। १०११ ईo में उसने थानेश्वर जीत लिया। १०१२ ईo में आनंदपाल की मृत्यु के पश्चात् महमूद ने १०१३ ईo में नंदना पर आक्रमण किया और शाहीवंश की बची खुची शक्ति का विनाश कर डाला। १०१५ ईo में महमूद ने कश्मीर पर आक्रमण किया किंतु लोहकोट (लोहारिन) पर विजय न प्राप्त कर लौट आया। १०१६-१७ ईo में वह खुरासान के विद्रोहों के दमन में व्यस्त रहा। दिसंबर, १०१८ में बरन (बुलंदशहर) पहुँचा। वहाँ राजा हरदत्त को पराजित कर महाबन तथा मथुरा को लूटता हुआ कन्नौज पहुँचा। वहाँ उस समय प्रतिहार नरेश राज्यपाल राज कर रहा था। उसने महमूद का मुकाबला न किया और भाग खड़ा हुआ। महमूद ने कन्नौज को खूब लूटा और वहाँ से आसी (फतहपुर के उत्तर-पूर्व) पहुँचा। फिर श्रवा (सिरसावा) को विजय करता हुआ १०१९ ईo के प्रारंभ में ग़्ज़ानी लौट गया। १०२१-२२ ईo में उसने ग्वालियर से लेकर कालिंजर तक को लूटा। इन हमलों से सीमाप्रांत से कन्नौज और ग्वालियर तक के मार्ग के नगर कंगाल हो गए और वहाँ के मंदिरों एवं निवासियों को अत्यधिक हानि हुई। १०२४ ईo में वह समुद्रतट पर स्थित काठियावाड़ के विशाल शिवमंदिर सोमनाथ पर आक्रमण के उद्देश्य से गजनी से निकला और जनवरी के मध्य में सोमनाथ पहुँचा। हिंदुओं ने डटकर सामना किया। महमूद को एक बार पीछे हटना पड़ा किंतु अंत में उसने विजय प्राप्त कर ली। ५०,००० हिंदू मारे गए, शिवलिंग तोड़ दिया गया, अतुल धनराशि महमूद के साथ लगी। किंतु रेगिस्तानी मार्ग से लौटते समय जाटों ने उसे बहुत परेशान किया। १०२६ ईo में वह ग़्ज़ानी पहुँचा। १०२७ ईo में उसने जाटों पर आक्रमण किया और उन्हें दंड देकर ग़्ज़ानी वापस चला गया। १०३० ईo में उसकी मृत्यु हो गई।
शक्ति, कौशल, दृढ़ता, निर्भीकता, सूझबूझ और और सैनयसंचालन की दक्षता में महमूद की तुलना उसके समकालीनों में कोई न कर सकता था। भारत की अपार धन संपत्ति से वह साधनहीन ग़्ज़ानी को एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में परिवर्तित करना चाहता था। इस उद्देश्य की पूर्ति के हेतु उसने खुरासान के मुसलमानों एवं मुल्तान के इस्माईलियों के खून की नदी बहाने में भी संकोच न किया। भारत को उसके आक्रमणों से नि:संदेह बड़ा धक्का पहुँचा।
संo ग्रंo -- एमo निज़ामी : दि लाइफ ऐंड टाइंम्स ऑव सुल्तान महमूद ऑव गजनी; एमo हबीब : सुल्तान महमूद ऑव ग़्ज़ानी द स्ट्रगल फ़ॉर एंपायर (भारतीय विद्याभवन)। [सैयद अतहर अब्बास रिजवी]