मनोहर राय यह रामशरण चट्टराज के शिष्य थे, जो श्री गोपाल भट्ट की शिष्यपरंपरा में थे। इनके शिष्य प्रियादास जी भक्तमाल के प्रसिद्ध टीकाकार थे। इनकी रचना 'राधारमणसागर' प्रसिद्ध है, जो संo १७५७ की कृति है। इससे इनका समय संo १७१० से संo १७८० के मध्य में आता है। इनकी अन्य रचनाएँ हैं--रसिक जीवनी, संप्रदायबोधिनी, क्षणदा गीति चिंतामणि। कुछ स्फुट पद भी प्राप्त हैं। [ (स्व.) ब्रजरत्नदास]