मनरो, सर टामस (१७६१-१८२७), ग्लासगो का निवासी था। स्थानीय विश्वविद्यालय में उसने उच्च शिक्षा पाई तथा कई यूरोपीय भाषाओं का अध्ययन किया। आर्थिक कठिनाई के कारण वह सेना में भर्ती होकर १७८० में मद्रास आया।

योग्यता तथा कर्त्तव्यपरायणता के कारण मनरो की पदोन्नति उत्तरोत्तर होगी गई। वह कई सैनिक तथा असैनिक पदों पर रहा। मैसूर के दूसरे तथा तीसरे युद्धों में उसने भाग लिया। १७९२ में कैप्टेन बना। उसी वर्ष वह बारामहल का कलेक्टर नियुक्त हुआ। वहाँ उसने कर्नल रीड के आदेशानुसार रैयतवारी बंदोबस्त कायम किया, दक्षिण की भाषाओं का अध्ययन किया तथा फारसी सीखी। अंतिम मैसूर युद्ध में वह मेजर बना। युद्ध के पश्चात् मैसूर-भविष्य-निर्माण कमीशन का वह सचिव नियुक्त हुआ। वह उस राज्य को कायम रखने के पक्ष में नहीं था।

कर्नाटक का कलेक्टर बनने पर उसने वहाँ भी रैयतवारी बंदोबस्त कायम किया। फिर १८०७ तक वह निजाम से प्राप्त इलाकों में प्रधान कलक्टर रहा। वहाँ उसने पालीगारों की दबाया, रैयतवारी बंदोबस्त द्वारा सरकारी आय बढ़ाई तथा पुलिस व्यवस्था द्वारा शांति एवं सुरक्षा स्थापित की। दूसरे मराठा युद्ध में उसने आर्थर वेलेजली के संमुख एक सैनिक योजना पेश की। साम्राज्य में बगावत की संभावना को हटाने के लिये उसने अंग्रेज सिपाहियों की संख्यावृद्धि पर जोर दिया जिससे उनमें और देशी सिपाहियों में १ : ४ का अनुपात हो जाय। उसके मतानुसार १८०६ में वेलोर के सैनिक विद्रोह के पीछे कोई बड़ा राजनीतिक षड्यंत्र न था।

१८०७ में मनरों इंग्लैंण्ड चला गया। १८१४ में वह न्याय कमीशन का अध्यक्ष होकर मद्रास आया। उसकी महत्वपूर्ण सिफारिशें कार्यान्वित हुईं। पुलिस और मजिस्ट्रेट के कार्य जजों से लेकर कलेक्टर को सौंपे गए। १८१७ में मनरों पेशवा से प्राप्त दक्षिणी इलाकों का कमिश्नर हुआ। सहायक संधियों के दोषों पर उसने प्रकाश डाला। पिंडारियों तथा मराठों के युद्ध में उसे ब्रिगेडियर जेनरल का पद मिला।

सन् १८२० से १८२७ तक सर टामस मनरो मद्रास का गवर्नर रहा। रैयतवारी भूमिव्यवस्था को इसी समय असली रूप मिला। उसने भारतवासियों को ऊँचे शासकीय पदों पर नियुक्त करने पर जोर दिया। जनता की धार्मिक परंपराओं के प्रति उसने संमान दिखाया। शिक्षा की व्यवस्था की। इन कार्यों से उसकी लोकप्रियता बड़ी पर साम्राज्य की सुरक्षा के लिये उसने प्रेस की स्वतंत्रता को घातक समझा। प्रथम बर्मी युद्ध में उसने महत्वपूर्ण सहायता दी १८२७ में उसकी मृत्यु हो गई।

[हीरालाल गुप्त ]