मध्यप्रदेश स्थिति : २३° ३०' उoo तथा ८०° ०' पूo देo! यह भारत का एक राज्य है। भारत के स्वतंत्र होने पर बरार, मध्य भारत तथा अनेक निकटवर्ती राज्यों को मिलाकर इस राज्य का निर्माण हुआ किंतु १ नवंबर, १९५६ ईo को राज्यों के पुनर्गठन स्वरूप इस राज्य में मध्य भारत, विंध्य प्रदेश, भोपाल तथा राजस्थान के कुछ भाग मिला दिए गए एवं राज्य का कुछ दक्षिण-पश्चिमी भाग महाराष्ट्र राज्य में मिला दिया गया। इसका क्षेत्रफल १,७१,२१७ वर्ग मील है। इस राज्य के उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में बिहार तथा उड़ीसा, दक्षिण में आंध्र प्रदेश तथा पश्चिम में महाराष्ट्र एवं राजस्थान राज्य स्थित हैं।

धरातल--मध्यप्रदेश का उत्तरी भाग पठारी है। उत्तर-पश्चिम में ग्वालियर से प्रारंभ होकर पूर्व तक यह पठार फैला हुआ है। इसे बुंदेलखंड एवं बघेलखंड का पठारी क्षेत्र कहते हैं। पूर्व की ओर यह पठार कैमूर पर्वत तक चला गया है। इस भाग में सोन तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियाँ हैं। इस भाग में भूक्षरण अधिक हुआ है। राज्य के पश्चिम में चंबल, बेतवा, धसान आदि नदियों की घाटियाँ हैं। ये नदियाँ आगे बहकर यमुना नदी में मिल जाती हैं। इनकी घाटियाँ बड़े गहरे खड्डों (ravine) से भरी हैं। राज्य के पश्चिम में मालवा का पठार स्थित है, जो लगभग १,६०० फुट ऊँचा है। इस पठार का क्षेत्रफल ३,४६,००० वर्ग मील है। वास्तव में मालवें का यह संपूर्ण भाग विंध्याचल के उत्तर में स्थित है। राज्य के मध्यवर्ती भाग में विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत पश्चिम से पूर्व की ओर फैले हैं। इनके बीच में नर्मदा की घाटी है। यह घाटी जबलपुर से हाँडिया तक २०० मील लंबी तथा २०२ मील तक चौड़ी है। नर्मदा नदी अमरकंटक से निकल कर पश्चिम की ओर बहती हुई अरब सागर में गिरती है। इसके दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत स्थित है। इस पर्वत के पूर्वी सिरे पर महादेव तथा मैकल की पर्वत श्रेणियाँ हैं जो आगे चलकर छोटा नागपुर के पठार में मिल जाती हैं। यह पर्वत मालाएँ २,००० से ३,००० फुट तक ऊँची हैं। सतपुड़ा के दक्षिण में ताप्ती नदी की घाटी है। इन नदियों की घाटियाँ छिछली तथा चट्टानी हैं। सतपुड़ा के दक्षिण-पूर्व में एक समतल मैदान है जिसके पूर्व में महानदी एवं दक्षिण में वेनगंगा नदियाँ बहती हैं।

जलवायु--राज्य की जलवायु विषम है। उत्तरी भाग गरम और शुष्क रहता है एवं मध्यवर्ती भाग जाड़ों में शीतल तथा ग्रीष्म में गरम रहता है। पठार होने के कारण रात ठंढी रहती है। जबलपुर को औसत ताप लगभग २५° सेंo रहता है। उत्तर-पश्चिमी भाग को छोड़कर शेष राज्य में वर्षा ३० से ६० इंच तक होती है। पश्चिमी भागों में वर्षा ३० इंच से कम तथा भोपाल के पास ३० से ५० इंच तक वर्षा होती है। वर्षा अधिकतर अरब सागर के मानसून से होती है। नर्मदा एवं ताप्ती की घाटियों में विशेषकर ग्रीष्मकालीन मानसून से वर्षा होती है।

मिट्टी--मध्यप्रदेश में अनेक प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं। काली मिट्टी राज्य के पश्चिमी भाग में और लाल मिट्टी राज्य के अन्य भागों में पाई जाती है। उत्तर तथा उत्तर-पश्चिमी भागों में बलुई तथा कंकड़ीली पथरीली मिट्टी मिलती है। नर्मदा तथा ताप्ती नदियों की घाटियों में उपजाऊ मिट्टी के जमाव हैं।

वनस्पति--भारत में असम के बाद वनों का सबसे बड़ा क्षेत्र यहीं है। यहाँ के मुख्य वृक्ष साज (saj), तेंदू, महुआ, बाँस, सागौन, शाल, पलास, बबूल, हर्रा आदि हैं। यहाँ भारत का सर्वोत्तम सागौन उत्पन्न होता है। व्यापारिक लकड़ी के अतिरिक्त लाख, गोंद, बीड़ी के पत्ते आदि भी वनों से प्राप्त होनेवाली वस्तुएँ हैं। बहुत से भागों में वनों को साफ करके कृषि योग्य भूमि प्राप्त कर ली गई है।

कृषि--सन् १९५१ की जनगणना के अनुसार यहाँ के ७८ प्रति शत लोग कृषिकार्य में लगे हैं। धान की कृषि सबसे अधिक भूभाग में की जाती है। अन्य प्रमुख फसलें हैं--गेहूँ, ज्वार, बाजरा, कपास, तेलहन एवं दलहन। छत्तीसगढ़ के मैदान में तथा ताप्ती, नर्मदा, वेनगंगा की घाटियों में धान की उपज के प्रमुख क्षेत्र स्थित हैं। मालवा के पठारी प्रदेशों में गेहूँ तथा कपास की खेती विशेष रूप से की जाती है। मध्यवर्ती और दक्षिण-पश्चिमी भागों में कपास एवं तिलहन एवं तेलहन बहुत पैदा होता है। इस क्षेत्र में गन्ना भी पैदा किया जाता है। वर्षा की कमी को पूरा करने के लिये सन् १९५२ में चंबल घाटी योजना तथा १९५८ में होशंगाबाद जिले की बेतवा योजना को कार्यान्वित किया गया है।

खनिज--यहाँ खनिज पदार्थों की अधिकता है। प्रमुख खनिजों में लोहा, कोयला, बौक्साइट, चूने का पत्थर, मैंगनीज, संगमरमर, अभ्रक, ताँबा आदि हैं। सन् १९५६ के अनुसार राज्य में ६७ कोयले की २७७ मेंगनीज की, ९७, चूने के पत्थर की नौ चीनी मिट्टी की, छह बौक्साइट की, १२ टैल्क की, दो फेल्सपार की तथा तीन हीरे की खानों (इनमें भारत के ९५ प्रति शत हीरे मिलते हैं) में खुदाई हो रही थी। कोयला सोहागपुर, उमरिया, सरगुजा, रामगढ़, बिलासपुर छिंदवाड़ा तथा शहडोल के पास, चूने का पत्थर संपूर्ण पठारी क्षेत्र में, हीरा पन्ना के पास, मैंगनीज बालाघाट, जबलपुर, दुर्ग तथा बस्तर के पास, लोहा दुर्ग, बस्तर तथा बिलासपुर में मिलता है। जबलपुर के पास नर्मदा की संगमरमर की चट्टानों से भरी घाटी का दृश्य बड़ा मनोहारी लगता है।

उद्योग--उद्योगों में भी इस राज्य ने काफी प्रगति कर ली है। भारत का पहला अखबारी कागज बनाने का कारखाना यहीं पर नेपा नगर में स्थापित किया गया। १९५९ ईo में सूती कपड़े के १९ कारखाने थे। इसके अतिरिक्त सीमेंट, काँच, चीनी, बिस्कुट, दियासलाई, रेशमी वस्त्र, रबर का सामान, औजार तथा तेल एवं वनस्पति के कारखाने हैं। कटनी सीमेंट का बड़ा केंद्र है। जबलपुर में हथियार तथा रायगढ़ में कोसा रेशम बनता है। कुटीर उद्योगों में चमड़े का माल, खिलौने, छपाई का काम, स्लेट, खड़िया, रंग, पेंट, साबुन, बीड़ी, ऊनी तथा रेशमी माल, काँच के बरतन आदि बनाने का कार्य होता है१ भिलाई में इस्पात बनाने का प्रसिद्ध कारखाना है।

यहाँ के कुछ भागों में गोंड़, भील आदिवासी जातियाँ रहती हैं जिनकी बोलियाँ, रीतिरिवाज अलग अलग हैं। राज्य की प्रमुख भाषा हिंदी है। प्रमुख नगर ग्वालियर, इंदोर, भोपाल, जबलपुर, रीवाँ, कटनी, बिलासपुर, तथा सागर आदि हैं। भोपाल यहाँ की राजधानी है। बंबई से दिल्ली, कलकत्ता, झाँसी, इलाहाबाद जानेवाली सड़कें इसी राज्य से होकर जाती हैं। मध्यवर्ती और दक्षिण-पूर्वी रेलें भी यहीं से होकर जाती हैं।

ऐतिहासिक महत्व--इसका ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है। साँची का स्तूप, त्रिपुरी के खंडहर, ग्वालियर का दुर्ग, उदयगिरि की गुफाएँ, उज्जैन की वेधशाला तथा खजुहारों के मंदिर आदि प्राचीन भारत के गौरव हैं। [रमेश चंद्र दुबे]