मथुरा १. जिला, स्थिति : २७° ३०' उoo तथा ७७° ४८' पूo देo। यह भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में पश्चिम में स्थित है। इसके पश्चिम में राजस्थान राज्य, पूर्व एवं उत्तर में अलीगढ़, दक्षिण में आगरा जिले हैं। इसका क्षेत्रफल १,४६७ वर्ग मील है। यमुना नदी के द्वारा यह दो भागों में बँट जाता है। यमुना के पूर्व का भाग उच्च एवं धनी भाग है जिसकी कुओं, नहरों तथा नदियों से सिंचाई होती है, जब कि पश्चिम का आधा भाग पुरानी प्रथाओं आदि को माननेवाले लोगों तथा असमान जलवायु वाला है। यहाँ की मुख्य फसले ज्वार, बाजरा, दलहन, कपास, गेहूँ, जौ एवं गन्ना हैं। पूर्वी भाग आगरा नहर तथा पश्चिमी भाग गंगा की शाखा नहरों से सींचा जाता है। इसके मध्य का भाग हिंदुओं का अति पवित्र क्षेत्र है। गोकुल एवं वृंदावन में श्रीकृष्ण एवं बलराम गायें चराया करते थे। अत: मथुरा, वृंदावन, गोकुल, महावन, गोवर्द्धन प्रसिद्ध तीर्थस्थान हैं।

२. नगर, स्थति : २७° २८' उoo तथा ७७° ४१' पूo देo। यमुना के पश्चिमी तट पर, आगरा से ३० मील उत्तर में स्थित है। हिंदुओं का यह एक प्रसिद्ध तीर्थ है। यहाँ पर भारत के प्रत्येक स्थान से यात्री आते हैं। यह जिले के शासन का भी केंद्र है। शहर में प्रवेश करने के लिये हार्डिज फाटक मिलता है। प्रधान सड़कें पत्थर से पाटी गई हैं। यहाँ पर अन्नकूट प्रसिद्ध जगह है तथा १४ अति प्रसिद्ध मंदिर एवं ३३ से अधिक घाट यमुना नदी पर हैं। प्रसिद्ध इमारतों में जामा मस्जिद भी है। मथुरा से छह मील उत्तर यमुना के किनारे वृंदावन में गोपीनाथ, मनमोहन जी, गोपेश्वर, महादेव, रामलखन, गोविंददेव जी तथा रंग जी के मंदिर हैं। लाला बाबू, महाराजा ग्वालियर, शाह बिहारीलाल, जुगलकिशोर, महाराजा जयपुर आदि के बनवाए प्रसिद्ध मंदिर भी यहाँ हैं। नंदगांव, बरसाने, गोवर्द्धन, गोकुल आदि प्रसिद्ध स्थान मथुरा के आसपास स्थित हैं। बरसाने की होली अति प्रसिद्ध है अत: लोग चारों तरफ से होली खेलने आते हैं। नंदगांव मथुरा से २४ मील दूर है। इसके आसपास करील का जंगल है। [रमेश चंद्र दुबे ]

इतिहास--पुराणेतिहास में प्रसिद्ध, इस नगर की स्थापना शत्रुघ्न ने लवण दैत्य के वध के उपरांत की थी। ध्रुव, अंबरीष, बलि आदि की तपोभूमि एवं यज्ञभूमि तथा विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण की जन्मभूमि के रूप में मथुरा भारत की प्राचीन पवित्र नगरियों में महत्वपूर्ण है। कृष्ण की लालास्थली, भक्तों की महिमामंडित ब्रजभूमि, बौद्धधर्म का केंद्र और यक्ष संस्कृति की आदिभूमि के रूप में यह नगर परम विख्यात रहा है। अंबरीष टीला, सप्तर्षि टीला, बलि टीला, कंस टीला, ध्रुवघाट, विश्रामघाट, कृष्णगंगाघाट, सोमघाट और रावणटीला आदि इसके महत्वपूर्ण पौराणिक धार्मिक स्थान हैं। सन् १०१७--१८ में गजनी के महमूद ने इसे बर्बाद किया था तथा १५०० ईo के लगभग सुल्तान सिकंदर लोदी ने अधिकांश मंदिर एवं मूर्तियाँ नष्ट कर दी थीं। इसके बाद सन् १६६९--७० में औरंगजेब तथा १७५७ ईo में अहमदशाह दुर्रानी ने इसे बर्बाद किया।