मतदान यंत्र मतदान का सबसे पुराना तरीका हाथ ऊँचा उठाकर मत व्यक्त करने का है, दूसरा तरीका मतपत्र पर पत्र लिखकर पेटियों में डालने और निष्पक्ष व्यक्तियों द्वारा उन्हें छाँटकर गिनने का है। इन विधियों में कितनी भी सावधानी बरती जाए कुछ न कुछ त्रुटियाँ तो रह ही जाती हैं, जिनके कारण मतदाताओं में कभी कभी घोर असंतोष और झगड़े भी पैदा हो जाते हैं। सन् १८६९-७० के लगभग चेंबरलिन और डेवी आदि अंग्रेज आविष्कारकों ने कुछ मतदान यंत्र बनाए, जिनमें मतपत्रों के बदले विभिन्न रंग तथा नाप की गोलियों का प्रयोग होता था। इन्हें बाद में सावधानी से गिनना पड़ता था। इसके बाद गिनती करनेवाले यंत्रों का प्रयोग आरंभ हुआ, जिनमें प्रत्येक मतदाता को किसी बटन, चाबी या लीवर को एक बार ही दबाना या चलाना पड़ता था। इस चाल की गिनती यंत्र द्वारा हो जाती थी, लेकिन इनमें गोपनीयता नहीं रह पाती थी और बाद में झगड़े होते थे। बाद में ऐसा भी यंत्र बना जिसमें प्रत्येक उम्मीदवार के नाम के सामने के स्थान पर कार्ड में छेद कर लिया जाता था। इन छेदों को वायुचालित यंत्रों द्वारा छाँटकर गिना जाता था। इसमें भी गलतियाँ हो जाती थीं। जुलाई २, १९१२ ईo में न्यूयार्क के जेम्सटाउन में कुछ अंर्तंग्रथित पुर्जों से युक्त मतदानयंत्र का पेटेंट कीपर (Keiper) के नाम से लिया गया। सन् १९२९ से कई यंत्र निर्माता कंपनियों ने उसे बनाना आरंभ कर दिया। नगर अथवा राज्य परिषदों के चुनाव आदि में यह यंत्र बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ है (देखें फलक)।
यह यंत्र अंग्रेजी अक्षर यू (U) के आकार के फ्रेम पर लगे परदों द्वारा ढँका रहता है, जिन्हें बंद करने पर मतदाता बिल्कुल छिप जाता है और, जब तक प्रधान लीवर को चलाकर परदा न बंद किया जाए, यह यंत्र चालू भी नहीं होता। यंत्र में ऊपर लगे लीवरों को चलाने से सब उम्मीदवारों की चाबियाँ ऊपर उठ जाती हैं। फिर नया मतदाता परदे को बंद कर अपनी पसंद के एक एक उम्मीदवार की काले लीवर के रूप में चाबियों को ऊर्ध्वाधर स्थिति में घुमाकर अन्य को वैसे ही छोड़ देता है। यदि मतदाता किसी ऐसे उम्मीदवार को मत देना चाहे जिसके नाम की चाबी यंत्र में न लगी हो, तो इस यंत्र के दाहिने भाग में इस काम के लिये कोरे कागज का बेलननुमा थान यंत्र की चाल के साथ घूमता रहता है, जिसपर वह अपने इच्छित उम्मीदवार का नाम लिख सकता है। बेलन का ढक्कन खोलकर नाम लिखने के बाद, ढक्कन बंद करने पर वह कागज घूम जाता है और फिर दूसरी बार नहीं खुलता, जबतक कि दूसरा मतदाता परदे में न आवे। यदि कोई चाहे तो दल (party) के समस्त उम्मीदवारों को बाएँ हाथ की ओर लगे 'पार्टी लीवर' को चलाकर अपना मत दे सकता है। एक मतदाता का काम समाप्त होने पर, प्रधान लीवर को दाहिने चलाने पर परदा खुलने के साथ ही, उसी क्षण, चलाई हुई चाबियों की यंत्र द्वारा गणना हो जाती हैं। जब तक परदा न खोला जाए, मतदाता, पहले चलाई हुई चाबी को पूर्ववत् करके तथा अन्य को चलाकर, मतपरिवर्तन भी कर सकता है। लेकिन एक बार परदा खोलने पर वही मतदाता उसे फिर से बंद नहीं कर सकता। यह काम तो केवल चुनाव अधिकारी ही कर सकता है। मतगणना करनेवाले यंत्र के डायल (dial) पीछे की तरफ ढँके रहते हैं। चुनाव समाप्त होने पर, परिणाम जानने के लिये जब एक बार डायलों का ढक्कन खोल दिया जाता है तब उसके बाद मतदान यंत्र निष्क्रिय हो जाता है।
आजकल नगर निगम तथा परिषदों में जहाँ सैकड़ों सदस्य बैठे बैठे ही महत्वपूर्ण विषयों पर विचार विमर्श किया करते हैं, उन्हें भी अक्सर किसी विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में मत देकर निर्णय करना पड़ता है। वे यदि अपने स्थान से मतदान यंत्र पर जाकर मत दें, तो बहुत समय बरबाद हो जाता है। ऐसे कामों की सुविधा के लिये विद्युत् चालित यंत्र बनाए गए हैं, जिनके द्वारा वे स्थान पर बैठे बैठे ही, बिना शोर गुल के, अपना मत दे सकें। भारतीय लोकसभा में ऐसे ही यंत्र का उपयोग हो रहा है जिसकी सहायता से मत विभाजन करने में चार मिनट से अधिक समय नहीं लगता।
इस स्वचल यंत्र के निर्माण में अनेक विद्युतीय परिपथों और रिलेओ (relays) का उपयोग होता है। इसमें अंतर्पाशित पुर्जे बहुत ही कम हैं, अत: यंत्र की बनावट बहुत ही सरल है और इसके द्वारा साधारण मतदान, गुप्त मतदान तथा गणपूर्ति के तीनों ही काम किए जा सकते हैं। प्रत्येक सदस्य की डेस्क अथवा उसके सामनेवाले कटघरे पर, कुर्सी के सामने, तीन दाब बटनों (push) का एक सेट (set), जिसमें हरा बटन 'हाँ' के लिये, लाल बटन 'ना' के लिये और एक काला बटन मतदान में भाग लेने के लिये और एक 'द्योतक बत्ती' तथा तार से लटका एक 'पुशस्विच' डेस्क के भीतर लगा रहता है। जहाँ डेस्क नहीं होती वहाँ पुशस्विच पीठ पीछे के खाने में लटका रहता है। (देखें चित्र में क)।
मतविभाजन की माँग की घोषणा सारे सभाभवन में २½ मिनट तक घंटी बजाकर की जाती है, फिर भवन के द्वार बंद कर, सभा के अध्यक्ष प्रश्न को पुन: दोहराते हैं। इधर सभासचिव की मेज पर यंत्र को चालू करने के लिये एक 'की बोर्ड' लगा होता है। सचिव द्वारा उसका बटन दबाते ही एक घंटा बज उठता है, जिससे मतदान के समय का संकेत होता है।
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मतदान के लिये प्रत्येक सदस्य को पहले 'दाब स्विच' (push switch) दबाकर अपने इच्छानुसार उक्त तीनों बटनों में से किसी एक को दबाना होता है। दस सेकंड के बाद, जब तक दूसरी बार घंटा नहीं बजता तब तक 'दाब बटन' और दाब स्विच को लगातार दबाए रखना होता है। दस सेकंड के समय के बीतने की सूचना प्रेस गैलरी के दोनों तरफ, दोनों कोनों पर लगे हुए 'समय सूचक बोर्ड' पर १२ लाल बत्तियों की एक के बाद एक क्रमश: जलाकर, दी जाती है। दूसरा घंटा बजते ही, यह बताने के लिये कि मतदान का समय समाप्त हो गया, उस बोर्ड के बीच में नीली बत्ती जल उठती है (देखें चित्र में ख)। मतदान में गलती होने पर कोई सदस्य चाहे तो दूसरा घंटा बजने से पूर्व 'दाब स्विच' के साथ सही बटन को दबाकर गलती ठीक कर सकता है। 'दाब बटन' के सेट पर लगी द्योतक बत्तियाँ, बटन और स्विच के दबाने के समय, जलती रहेंगी, जिससे मतदाता को मालूम हो कि उसका मत उक्त यंत्र में ठीक प्रकार से व्यक्त हो रहा है।
सभाभवन में अध्यक्ष के पीछे दोनों तरफश् दीवार में 'लैंप फील्ड' सूचक दो बोर्ड लगाए जाते हैं। उनपर प्रत्येक मतदाता के स्थान के लिये एक एक 'आयताकार लैंप फील्ड' लगा होता है, जिसमें हरी, लाल और सफेद बत्तियाँ होती हैं। मतदाता के बटन दबाते ही 'हाँ सूचक' हरी बत्ती, अथवा 'ना सूचक' लाल बत्ती' अथवा तटस्थता तथा 'उपस्थिति' सूचक सफेद बत्तियाँ आवश्यकतानुसार जल जाती हैं।
दूसरा घंटा बजने के तुरंत बाद 'हाँ, 'ना', और मतदान में भाग न लेनेवालों का योग यंत्र द्वारा आरंभ हो जाता है और उसके एक मिनट पश्चात् ही अध्यक्ष और कूटनीतिज्ञों की गैलरियों के 'रेलिंगों' पर लगे परिणामसूचक बोर्डों पर 'हाँ', 'ना' और तटस्थ सदस्यों का कुल योग और सभाभवन में उपस्थित सदस्यों की संख्या का कुल योग भी यंत्र द्वारा आ जाता है। 'हाँ' और 'ना' का कुल योग सभासचिव की मेज पर लगे सूचक बोर्ड पर भी आ जाता है।
प्रत्येक सदस्य के मतदान का ब्योरा और प्रत्येक मतविभाजन का अंतिम परिणाम 'ना' के गोष्ठीकक्ष (लॉबी) के सिरे पर स्थित 'यंत्र घर' में लगे एक बोर्ड पर भी आ जाता है। ज्यों ही उक्त ब्योरा तथा परिणाम आते हैं, उस बोर्ड का फोटों ले लिया जाता है, जो स्थायी अभिलेख के रूप में रख लिया जाता है।
गुप्त मतदान के समय की कार्यविधि भी ऊपर बताई गई विधि के अनुसार ही है। अंतर यही है कि 'लैंप फील्ड बोर्ड' तथा यंत्र घर में स्थित बोर्ड पर केवल सफेद बत्तियाँ ही जलने पाती है। यह जानने के लिये कि सभाभवन में उपस्थित सदस्यों की गणपूर्ति (quorum) क्या है, सदस्य दाब स्विच के साथ तीनों में से किसी एक बटन का ही उपयोग करते हैं, जिससे 'लैंप फील्ड बोर्ड' में केवल सफेद बत्ती ही जलती है, जिससे परिणामसूचक बोर्ड उपस्थित सदस्यों की संख्या का योग करके बता देता है। इन सब कामों के लिये प्रत्येक सदस्य को अपने नियत स्थान पर ही बैठना होता है, अन्यथा यंत्र घर में लगे मुख्य बोर्ड पर वास्तविक स्थिति नहीं प्रकट होती।
संo ग्रंo--दी वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया, खंड १७, शिकागो; स्वचालित मतदान यंत्र, (फोल्डर) भारतीय लोकसभा द्वारा प्रकाशित। [ओंकार नाथ शर्मा]