मजूमदार, धीरेंद्रनाथ भारत के अग्रणी नृतत्ववेत्ता धीरेंद्रनाथ मजूमदार का जन्म १९०३ में पटना में हुआ। वह ढाका जिले के निवासी थे। १९२४ में कलकत्ता विश्विविद्यालय से नृविज्ञान की एमoo परीक्षा में वह प्रथम श्रेणी में प्रथम आए। १९२८ में वह लखनऊ विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र तथा समाजशास्त्र विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए। १९४६ में वह नृविज्ञान के रीडर बनाए गए और १९५० में प्रोफेसर हुए। १९५०-५१ में उनकी अध्यक्षता में नृविज्ञान विभाग स्थापित हुआ। वह आर्ट्स फैक्ल्टी के डीन भी थे जब ३१ मई १९६० को उनका देहावसान हुआ।

१९३५ में केंब्रिज विश्वविद्यालय से कोल्हन के हो लोगों में सांस्कृतिक संपर्क तथा आसंस्करण पर हॉड्सन के निर्देशन में तैयार की गई थीसिस पर उन्हें पी-एचo डीo की उपाधि मिली। १९४१ और १९४६ के बीच डॉo मजूमदार ने तत्कालीन संयुक्त प्रांत, अविभाजित बंगाल, गुजरात, काठियावाड़ और कच्छ में लगभग १०,००० लोगों के मानवमितीय माप लिए और उनके रक्तसमूहों का अध्ययन किया। अकेले किसी भारतीय नृतत्ववेत्ता ने इतने अधिक लोगों के माप आज तक नहीं लिए हैं। जातिविज्ञान (एथ्नोग्रैफी) संबंधी उनका कार्य बहुमूल्य है। हो लोगों के अलावा जौनसार बावर के खसों तथा दुद्धी (दक्षिणी मिर्जापुर) के कबीलों के बारे में उनका ज्ञान अगाध था।

डॉo मजूमदार ने केंब्रिज विश्वविद्यालय में व्याख्यान भी दिए थे। उनके अन्य प्रसिद्ध व्याख्यान निम्नलिखित हैं -- १९३६-३७ में विएना में भारतीय संस्कृति पर कई व्याख्यान, १९४२ में देहरादून में भारतीय प्रजातियों तथा संस्कृतियों पर छह व्याख्यान, १९४६ में नागपुर विश्वविद्यालय में श्री महादेव हरि वठोडकर स्मारक व्याख्यान, १९५२-५३ में कॉर्नेंल विश्वविद्यालय, इथैका, में विज़िटिग प्रोफेसर ऑव फ़ार ईस्टर्न स्टडीज़; १९५७ में लंडन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑव ओरिएंटल ऐंड ऐफ्रीकन स्टडीज़ में विजिटिंग प्रोफेसर तथा १९५९ में हेग में भारतीय सामाजिक नृविज्ञान पर व्याख्यान।

उन्होंने १९३९ में लाहौर में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के २६वें अधिवेशन में नृविज्ञान तथा पुरातत्व अनुभाग की अध्यक्षता की। १९४१ में वह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑव साएंसेज ऑव इंडिया के फेलो चुने गए। १९५६ में वह भारतीय समाजशास्त्र सम्मेलन के अध्यक्ष थे। देश विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों तथा शोध संस्थानों से विभिन्न रूप में संबंधित होने के अतिरिक्त वह नृविज्ञान की केंद्रीय सलाहकार परिषद, इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस के कार्यकारी मंडल आदि के सदस्य थे।

डॉo मजूमदार रॉयल ऐंथ्रोपोलॉजिकल सोसायटी ऑव ग्रेट ब्रिटेन ऐंड आयर्लैंड के फेलो थे। १९५२ में भारतीय नृतत्ववेत्ताओं के अग्रणी के रूप में उनकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा स्थापित हुई जब न्यूयार्क में नृविज्ञान की प्रतिष्ठा विषयक विश्वव्यापी सर्वेक्षण के लिये वेनर ग्रेन फाउंडेशन द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी में उन्होंने भारत, पाकिस्तान, बर्मा तथा सिंहल के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। १९५३ में अमरीकन एसोसिएशन ऑव फ़िज़िकल ऐंथ्रोपोलॉजिस्ट्स ने उन्हें विदेशी फेलो निर्वाचित किया। वह इंटरनेशनल यूनियन फॉर दि साएंटिफिक स्टडी ऑव पॉप्युलेशन (संयुक्त राष्ट्र संघ) के सदस्य थे। उसी वर्ष फ्रांस में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समाजशास्त्र कांग्रेस में भाग लिया।

१९४५ में डॉo मजूमदार ने एथ्नोग्राफिक ऐंड फोक कल्चर सोसायटी, यूo पीo, की स्थापना की और १९४७ में उसकी ओर से 'दि ईस्टर्न ऐंथ्रोपोलॉजिस्ट' का प्रकाशन आरंभ किया। हिंदी में 'प्राच्य मानव वैज्ञानिक' के भी कुछ अंक प्रकाशित हुए। उनकी लिखी मुख्य पुस्तकें निम्न हैं --

(१) ए ट्राइब इन ट्रैंज़िशन : ए स्टडी इन कल्चर पैटर्न (१९३७)

(२) फार्च्यून्स ऑव प्रिमिटिव ट्राइब्स (१९४४)

(३) रेसेज़ ऐंड कल्चर्स ऑव इंडिया (१९४४) -- संशोधित परिवर्धित संस्करण १९५१, १९५८

(४) दि मैट्रिक्स ऑव इंडियन कल्चर (१९४७)

(५) दि अफ़ेयर्स ऑव ए ट्राइब : ए स्टडी इन ट्राइबल डाइनेमिक्स (१९५०)

(६) रेस रिअलिटीज़ इन कल्चरल गुजरात (१९५०)

(७) ऐन इंट्रोडक्शन टु सोशन ऐंथ्रोपोलॉजी (१९५६)

(८) कास्ट ऐंड कम्यूनिकेशन इन ऐन इंडियन विलेज (१९५८)

(९) भारतीय संस्कृति के उपादान (१९४८)

(१०) रेस एलिमेंट्स इन बेंगाल (१९६०)

(११) सोशल कंर्ट्स ऑव ऐन इंडस्ट्रियल सिटी (१९६०)

(१२) छोर का एक गाँव (१९६२)

(१३) हिमालयन पॉलिऐंड्री (१९६२) [चंद्रभान पांडेय]