मच्छर कीटवर्ग, डिप्टेरा (Diptera) गण, ऑर्थेरैफा (Orthorrapha) तथा नेमाटोसिरा (Nematocera) उपगणों तथा क्यूलिसिडी (Culicidae) कुल का छोटा और दुर्बल कीट है, जिससे हम सब परिचित हैं। यह मनुष्य, पक्षी और स्तनपायियों पर आक्रमण करता, काटता और कष्ट देता है और भयानक बीमारियाँ फैलाता है। मच्छर अनेक प्रकार के होते है। वयस्क मच्छर का शरीर सिर, वक्ष और उदर में विभक्त है। इसके दो शृंगिकाएँ (antenna), दो आँख, तीन जोड़ा पैर, दो पंख, एवं दो संतोलक अंग होते हैं। इनके पंख शल्कों के कारण धारीदार होते हैं और ये श्वासरध्रं से साँस लेते हैं।श्
नर की शृंगिका पिच्छकी (plumose) और घनी रोयेंदार होती है। नर के स्पर्शक लंबे और सिरे पर मुठदार होते हैं तथा मादा के स्पर्शक विरल रोयेंदार होते हैं, जिनका आखिरी भाग कुछ मुड़ा हाता है। लगभग सारी मादाएँ चूषण मुखांग से खून चूसती हैं और कुछ जातियाँ वनस्पतियों का रस ग्रहण करती हैं। नर के मुखांग अपेक्षाकृत छोटे होते हैं और ये बहुत कम आहार पर निर्वाह करते हैं।
मच्छरों के आराम करने की स्थिति में उनका अंगविन्यास उनकी जाति का परिचायक होता है। ऐनोफेलीन सिर, वक्ष और उदर को सीध में रखने की प्रवृत्ति दर्शाता है और क्यूलिसीन कूबड़दार जैसा लगता है।
स्वभाव और आवास--घरों और गौशालाओं के अतिरिक्त नम स्थानों, छिद्रों, दारारों, पेड़ों के छेदों, छतों में कटे फटे स्थानों, जहाँ अंधकार और नमी होती है, यह रहते हैं। सभी मच्छरों के डिंभक बँधे हुए पानी की तलैयों में रहते हैं।
ये शाम या झुटपुटे में, धरती से काफी ऊँचे उड़ते हुए, खुले में मैथुन करते हैं। नर, जो प्राय: प्रजनन स्थान के निकट रहते हैं, झुंड में एकत्र होकर कामद नृत्य करते हैं। वयस्कों के निकलने के १२ से १४ घंटे बाद निषेचन (fertilisation) होता है। जाड़ों में इनमें शीतनिष्क्रियता होती है और ये निराहार अर्धप्रसुप्त स्थिति में रहते हैं। रेल, वायुयान, स्टीमर, हवा आदि से इनका प्रकीर्णन (dispersal) होता है। मच्छर की आयु ताप आर्द्रता से प्रभावित होती है। ये उच्च ताप और निम्न आर्द्रता में मर जाते हैं। नर का जीवनकाल मादा की अपेक्षा कम होता है।
जीवनवृत्त -- मोटे तौर पर अधोलिखित जीवनवृत्त होता है : मच्छर (क्यूलेक्स या ऐनोफेलीज) निम्नलिखित चार स्पष्ट अवस्थाओं में से गुजरता है : (१) अंड -- ये स्याह रंग के छोटे पिंड होते हैं, जिन्हें मात्र आँखों से देखा जा सकता है। ये पानी पर, पत्तों या जलीय वनस्पतियों के तनों, पंक आदि पर धरे जाते हैं अंडों का आकार और संख्या मच्छर की जाति पर निर्भर करती है। ऐनोफेलीज़ और ईडीज़ (aedes) मच्छर एक एक कर अंडे देते हैं, जब कि क्यूलेक्स झुंड या लट्ठों के रूप में अंडे देते हैं। ऐनोफेलीज़ के अंडे नाव की शक्ल के होते हैं और इनमें पार्श्विक प्लव (lateral float) भी होता है। क्यूलेक्स के अंडे लंबे होते हैं। उष्णकटिबंध में अंड अवस्था केवल दो दिन की होती है।
(२) डिंभक (Larva) -- यह रेंगता है और बहुत सक्रिय रहता है। इसे सिर, वक्ष, पतला उदर, श्वसन नली और आँखें होती हैं। यह ठोस पदार्थ (ऐलगी, कार्बनिक पदार्थ) को अपनी चिबुकास्थि (mandibles) से चबाकर खाता है। मुख कूप (mouth brushes) से उत्पन्न की गई जलधाराएँ खाद्य पदार्थ को इसके मुख की ओर खींचती हैं।
ऐनोफैलीज के डिंभक पानी की सतह के ठीक नीचे बहते हैं। इन के साइफन नली नहीं होती, जब कि क्यूलेक्स का डिंभक सतह के ऊपर निकले हुए साइफनों से लटकता रहता है। जब डिंभक चौकन्ने होते हैं, तब ये गोता मारकर तली में कुछ समय निश्चल पड़े रहते है। ये हवा से ऑक्सीजन सांस में लेते हैं।
चित्र १. ऐनोफेलीज मच्छर का डिंभक
जलपृष्ठ से समांतर स्थित यह आहार ग्रहण करता है।
डिंभ के जीवन का समय आहार और ताप पर निर्भर करता है और इस अवधि में ये अनेक बार निर्मोचन (moult) करते हैं तथा प्युपों (Pupae) में रूपांतरित हो जाते हैं।
(३) प्यूपा (Pupa) -- यह सक्रिय तैराक है, परंतु देखने में डिंभक से भिन्न है। प्यूपा में सिर और वक्ष मिलकर एक वृहत् पिंड होता है, वक्ष में साँस लेनेवाली नलियाँ होती हैं और इसमें पतला उदर जुड़ा रहता है। ये विचित्र चाल से कलैया खाते चलते हैं। और उदर के सिरों पर स्थित पत्ते जैसे उपांगों की सहायता से तैरते हैं।
ऐनोफेलाइन तथा क्यूलिसिन के प्यूपा को उनकी साइफन नलियों के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। ऐनोफेलाइन मच्छरों में यह कीपाकार (funnel shaped) यानी छोटा और चौड़ा तथा क्यूलिसिन मच्छरों में लंबा और सँकरा होता है। प्यूपा की अवधि कम समय की होती है। इसके पश्चात् प्राणी पानी की सतह पर आ जाता है। वक्ष की मध्यपृष्ठ रेखा (mid dorsal line) के साथ साथ एक विपाटन (split) दृष्टिगोचर होता है, जिससे वयस्क मच्छर पहले सिर और अंत में पैर निकालकर बाहर आता है। कुछ समय यह प्यूपा के आवरण पर बैठा रहता है और शरीर के कड़े पड़ते ही उड़ जाता है। मच्छर का संपूर्ण जीवनवृत्त अंडे से वयस्क होने तक नौ दिनों, या इससे भी कम समय, का होता है।
मच्छर एवं रोग -- अनेक प्रकार के ज्ञात मच्छरों में, मनुष्य तथा स्तनपायियों पर आक्रमण करनेवाले मच्छरों के अतिरिक्त, कुछ मच्छर रोगवाहक के रूप में अधिक महत्व के है। इस दृष्टि से ये सच्चे मध्यवर्ती परपोषी का काम करते हैं, जिनमें रोगोत्पादक परजीवी का विकास होता है। मच्छरों द्वारा संप्रेषित कुछ रोग निम्नलिखित है : (१) मलेरिया, (२) फाइलेरिया तथा (३) पीतज्वर; (देखें मलेरिया)।
चित्र २. ऐनीफेलीज़ मैक्यूलिपेन्निस
मलेरिया तथा मस्तिष्कार्ति फैलानेवाला मच्छर।
(१) मलेरिया --
(२) फाइलेरिया --फाइलेरिया का प्रसार एक नेमाटोड बुकरेरिया बैंक्रॉफ्टी (Wuchereria bancrofti) से होता है, जो मानव का पराश्रयी है और विश्व के सभी उष्ण भागों में पाया जाता है। इसके डिंभक ०.२ मिमीo लंबे होते हैं तथा दिन में बड़ी रक्तवाहिकाओं में रहते हैं और रात्रि में चर्म की छोटी वाहिकाओं में चले जाते हैं। ये मनुष्य के शरीर में क्यूलेक्स फैटिगैन्स (Culex fatigans) द्वारा आते हैं। इस नेमाटोडा के वयस्क नर तथा मादा लसीका परिसंचरण (lymph circulation) में अवरोध उत्पन्न करते तथा ऐलिफेंटाइसिस उत्पन्न करते हैं। इस रोग के अन्य वाहक अफ्रीका में एo गैंवी (A. gambiae), दक्षिण अमरीका में एo डार्लिंगी (A. darlingi) और चीन में क्यूलेक्स पाइपायेंस (Culex pipiens) हैं।
चित्र ३. ल्यूलेक्स पाइपायेंस
फाइलेरिया के नेमाटोडा का वाहक।
निरोधन -- इसके लिये कमरों में पाईथ्रोम, डीo डीo टीo और सिट्रोनेला तेल के मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए।
(३) सधिक संनिपात (Dengue) तथा पीत ज्वर (Yellow fever)--उष्ण कटिबंधों में प्राय: इन रोगों का प्रचार हुआ करता है। ये रोग एक विषाणु के कारण होते है। जब ईडीस ईजिप्टी (Aedes aegypti) मच्छर इस विषाणु से संक्रमित हो जाता है, तब वह उसे मनुष्य में अंत:विक्षप्त (iriject) कर देता है, जिससे मनुष्य को संधिक संनिपात और पीतज्वर हो जाता है।
चित्र ४. ईडीस ईजिप्टी (Aedes aegypti)
पीत ज्वर के विषाणु का परपोषी।
निरोधन -- टीका, संक्रमित रोगियों को स्वस्थ लोगों से दूर रखना, सामान्य स्वच्छता के नियमों का पालन और केरोसिन में ५ प्रति शत डीo डीo टीo मिलाकर घरों में छिड़काव रोग निरोधक है। [रामचंद्र सक्सेना ]