भोजपुरी भाषा भारत की आर्यभाषाओं में भोजपुरी हिंदी की एक प्रमुख बोली है। डॉ० ग्रियर्सन ने भारतीयश् भाषाओं को अंतरंग ओर बहिरंग इन दो श्रेणियों में विभक्त किया है जिसमें बहिरंग के अंतर्गत उन्होंने तीन प्रधान शाखाएँ स्वीकार की हैं - (१.) उत्तर पश्चिमी शाखा (२) दक्षिणी शाखा और (३) पूर्वी शाखा। इस अंतिम शाखा के अंतर्गत उड़िया, असमी, बँगला और बिहारी भाषाओं की गणना की जाती है। बिहारी भाषाओं में मैथिली, मगही और भोजपुरी-ये तीन बोलियाँ मानी जाती हैं। क्षेत्रविस्तार और भाषाभाषियों की संख्या के आधार पर भोजपुरी अपनी बहनों मैथिली और मगही में सबसे बड़ी है।

नामकरण-भोजपुरी भाषा का नामकरण बिहार राज्य के आरा (शाहाबाद) जिले में स्थित भोजपुर नामक गाँव के नाम पर हुआ है। आरा जिले के बक्सर सब-डिविजन में भोजपुर नाम का एक बड़ा परगना है जिसमें 'नवका भोजपुर' और 'पुरनका भोजपुर' दो छोटे छोटे गाँव हैं। प्राचीन काल में इस स्थान को भोजवंशी राजाओं की राजधानी होने का गौरव प्राप्त था। इसी कारण इसके पास बोली जाने वाली भाषा का नाम 'भोजपुरी' पड़ गया।

क्षेत्रविस्तार - भोजपुरी भाषा प्रधानतया उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों ओर बिहार राज्य के पश्चिमी जिलों में बोली जाती है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी, मिर्जापुर, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर, गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़, बस्ती जिलों के निवासियों ओर बिहार राज्य के शाहाबाद, सारन, चंपारन जिलों में रहनेवाली जनता की मातृभाषा भोजपुरी है१ इसके अतिरिक्त कलकत्ता नगर में, बंगाल के 'चटकलों' में असम राज्य के चाय बगानों में और बंबई के अंधेरी और जोगेश्वरी नामक स्थानों में लाखों की संख्या में, भोजपुरी लोग निवास करते हैं। इतना ही नहीं, मारिशस, फिजी, ट्रिनीडाड, केनिया, नैरोबी, ब्रिटिश गाइना, दक्षिण अफ्रीका, बर्मा (टांगू जिला) आदि देशों में काफी बड़ी संख्या में भोजपुरी लोग पाए जाते हैं।

भोजपुरी भाषा की प्रधान बोलियाँ - (१) आदर्श भोजपुरी, (२) पश्चिमी भोजपुरी और अन्य दो उपबोलियाँ (सब डाइलेक्ट्स) 'मघेसी' तथा 'थारु' के नाम से प्रसिद्ध हैं।

आदर्श भोजपुरी - जिसे डॉ० ग्रियर्सन ने स्टैंडर्ड भोजपुरी कहा है- प्रधानतया बिहार राज्य के आरा जिला और उत्तरप्रदेश के बलिया, गाजीपुर जिले के पूर्वी भाग और घाघरा (सरयू) एवं गंडक के दोआब में बोली जाती है। यह एक लंबें भूभाग में फैली हुइै है। इसमें अनेक स्थानीय विशेताएँ पाई जाती है। जहाँ शाहाबाद, बलिया और गाजीपुर आदि दक्षिणी जिलों में 'ड़' का प्रयोग किया जाता ै वहाँ उत्तरी जिलों में 'ट' का प्रयोग होता है। इस प्रकार उत्तरी आदर्श भोजपुरी में जहां 'बाटे' का प्रयोग किया जाता है वहाँ दक्षिणी आदर्श भोजपुरी में 'बाड़े' प्रयुक्त होता है। गोरखपुर की भोजपुरी में 'मोहन घर में बाटे' कहते परंतु बलिया में 'मोहन घर में बाड़े' बोला जाता है।

पूर्वी गोरखपुर की भाषा को गोरखपुरी कहा जाता है परंतु पश्चिमी गोरखपुर और बस्ती जिले की भाषा को 'सरवरिया' नाम दिया गया है। 'सरवरिया' शब्द 'सरुआर' से निकला हुआ है जो 'सरयूपार' का अपभ्रंश रूप है। 'सरवरिया' और गोरखपुरी के शब्दों - विशेषत: संज्ञा शब्दों- के प्रयोग में भिन्नता पाई जाती है।

बलिया (उत्तर प्रदेश) और सारन (बिहार) इन दोनों जिलों में आदर्श भोजपुरी बोली जाती है। परंतु कुछ शब्दों के उच्चारण में थोड़ा अंतर है। सारन के लोग 'ड' का उच्चारण 'र' करते हैं। जहाँ बलिया निवासी 'घोड़ागाड़ी आवत बा' कहता है, वहाँ छपरा या सारन का निवासी 'घोरा गारी आवत बा' बोलता है आदर्श भोजपुरी का नितांत निखरा रूप बलिया और आरा जिले में बोला जाता है।

पश्चिमी भोजपुरी - जौनपुर, आजमगढ़, बनारस, गाजीपुर के पश्चिमी भाग और मिर्जापुर में बोली जाती है। आदर्श भोजपुरी ओर पश्चिमी भोजपुरी में बहुत अधिक अंतर है। पश्चिमी भोजपुरी में आदर सूचक के लिये 'तुँह' का प्रयोग दीख पड़ता है परंतु आदर्श भोजपुरी में इसके लिये 'रउरा' प्रयुक्त होता है। संप्रदान कारक का परसर्ग (प्रत्यय) इन दोनों बोलियों में भिन्न भिन्न पाया जाता है। आदर्श भोजपुरी में संप्रदान कारक का प्रत्यय 'लागि' है परंतु वाराणसी की पश्चिमी भोजपुरी में इसके लिये 'बदे' या 'वास्ते' का प्रयोग होता है। उदाहरणार्थ :

पश्चिमी भोजपुरी -

हम खरमिटाव कइली हा रहिला चबाय के।
भेंवल धरल बा दूध में खाजा तोरे बदे।।
जानीला आजकल में झनाझन चली रजा।
लाठी, लोहाँगी, खंजर और बिछुआ तोरे बदे।। (तेग अली-बदमाश दपर्ण)

मघेसी शब्द संस्कृत के 'मध्य प्रदेश' से निकला है जिसका अर्थ है बीच का देश। चूँकि यह बोली तिरहुत की मैथिली बोली और गोरखपुर की भोजपुरी के बीचवाले स्थानों में बोली जाती है, अत: इसका नाम मघेसी (अर्थात वह बोली जो इन दोनो के बीच में बोली जाये) पड़ गया है। यह बोली चंपारन जिले में बोली जाती और प्राय: 'कैथी' लिपि में लिखी जाती है।

थारू लोग नेपाल की तराई में रहते हैं। ये बहराइच से चंपारन जिले तक पाए जाते हैं और भोजपुरी बोलते हैं। यह विशेष उल्लेखनीय बात है कि गोंडा और बहराइच जिले के थारू लोग भोजपुरी बोलते हैं जबकि वहाँ की भाषा पूर्वी हिंदी (अवधी) है। हॉग्सन ने इस भाषा के ऊपर प्रचुर प्रकाश डाला है।

भोजपुरी बहुत ही सुंदर, सरस, तथा मधुर भाषा है। भोजपुरी भाषाभाषियों की संख्या भारत की समृद्ध भाषाओं- बँगला, गुजराती और मराठी आदि बोलनेवालों से कम नहीं है। इन दृष्टियों से इस भाषा का महत्व बहुत अधिक है और इसका भविष्य उज्जवल तथा गौरवशाली प्रतीत होता है।

भोजपुरी भाषा में निबद्ध साहित्य यद्यपि अभी प्रचुर परिमाण में नहीं है तथापि अनेक सरस कवि और अधिकारी लेखक इसके भंडार को भरने में संलग्न हैं। भोजपुरिया-भोजपुरी प्रदेश के निवासी लोगों को अपनी भाषा से बड़ा प्रेम है। अनेक पत्रपत्रिकाएँ तथा ग्रंथ इसमें प्रकाशित हो रहे हैं तथा भोजपुरी सांस्कृतिक सम्मेलन, वाराणसी इसके प्रचार में संलग्न है।

सं० ग्रं० - डॉ० जी० उ० ग्रियर्सन : लिंग्विस्टिक सर्वे ऑव इंडिया, भाग ५, खंड २, पृ० १८६-३८५; डॉ० उदयनारायण तिवारी : 'भोजपुरी भाषा ओर साहित्य' (राष्ट्रभाषा परिषद, पटना;) प्रो० बलदेव उपाध्याय: भोजपुरी लोकगीत, भाग १ भूमिका पृ० १२-१७, हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग); डॉ० कृष्णदेव उपाध्याय : भोजपुरी लोकसाहित्य का अध्ययन, पृ० १५-४० (हिंदी प्रचारक पुस्तकालय, वाराणसी); जॉन बीम्स: जे० आर० ए० एस०, भाग ३, पृ०४८३-५०८; नोट्स ऑन दि भोजपुरी डाइलेक्ट्स ऑव हिंदी स्पोकेन इन वेस्टर्न बिहार'; जे० आर० रीड : रिपोर्ट ऑन दि सेटिलमेंट ऑपरेशंस इन दि डिस्ट्रिक्ट ऑव आजमगढ़, परिशिष्ट २ तथा ६, इलाहाबाद, १८८१ ई०; डॉ० ए० एफ० आर० हॉर्नली : ए कम्परेटिव ग्रामर ऑव दि गौडियन लैंग्वेजेज (लंडन, १८८० ई०).(कृष्णदेव उपाध्याय)