भूषण हिंदी साहित्य के शृंगार (रीति) युग में उत्पन्न होने पर भी भूषण ने वीर रस की सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ प्रस्तुत कीं। इनका घर कानपुर जिले के दक्षिण में जमुना नदी के समीप टिकमापुर (त्रिविक्रमपुर) गाँव में था। भूषण त्रिपाठी कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। कहा जाता है, रत्नाकर त्रिपाठी इनके पिता और चिंतामणि तथा पतिराम कवि इनके भाई थे। इनके चौथे भाई का नाम जटाशंकर था, ऐसा कुछ लोग मानते हैं। भूषण का जन्मकाल निश्चित नहीं हैं। पर कुछ विद्वान सं० १६७० (सन् १६१३ ई०) और कुछ सं० १९६२ (सन् १६३५ ई०) मानते हैं। भूषण ने शिवराज भूषण की रचना सं० १७३० में आषाढ़ कृष्ण १३, रविवार को की थी जैसा निम्नांकित दोहे से स्पष्ट है:
सुभ सत्रह से तीस पर, सुचि बदि तेरस भान।भूषण शिवभूषन कियो, पढ़ियो सकल सुजान।। (शिवराज भूषण)
शिवराज भूषण की रचना भूषण ने ३८ वर्ष की अवस्था में की होगी अत: उनका जन्मकाल सं० १६९२ वि० मानना अधिक समीचीन है। इसी प्रकार उनका मृत्युकाल सं० १७९० वि० के आसपास माना जा सकता है, क्योंकि वे छत्रपति महाराज साहू के समय भी विद्यमान थे और एक दीर्धजीवी कवि थे।
भूषण को चित्रकूट के राजा हृदयराम के पुत्र रुद्रशाह ने 'कवि भूषण' की पदवी दी थी।
भूषण के द्वारा लिखी हुई छह रचनाएँ मानी जाती है १. शिवराज भूषण, २. भूषण हजारा ३. भूषण उल्लास ४. दूषण उल्लास ५. शिवाबावनी और ६. छत्रसाल दशक। इन ग्रंथों में से केवल तीन रचनाएँ - शिवराजभूषण, शिवबावनी और छत्रसाल दशक ही प्राप्त है।
भूषण ने शिवराजभूषण और शिवाबावनी को छत्रपति महाराज शिवाजी के आश्रय में और उनकी प्रशंसा में रचा। भूषण की प्रख्याति का मूलाधार ये ही दोनो कृतियाँ हैं। वे उत्तरी भारत के अनेक राजाओंश् के दरबारों में गए थे पर किसी की वीरता और उदारता ने भूषण को अधिक प्रभावित न किया। उन्होंने शिवाजी के रूप में उस युग के राष्ट्रनायक का दर्शन किया जो अनाचार के दमन और सदाचार के संरक्षण की सामर्थ्य रखता था। अतएंव भूषण की यह रचना समकालीन राष्ट्रीय भावना की कविता ही मानी जानी चाहिए।
'छत्रसालदशक' की रचना भूषण ने महाराज छत्रसाल की प्रशंसा में की। ये भी शिवाजी के ही मार्ग पर चलनेवाले वीर पुरुष थे। शिवाजी के समान ही छत्रसाल ने भी भूषण का बड़ा सम्मान किया था।
भूषण के नाम पर कुछ शृंगार रस के छंद भी मिलते हैं।
भूषण अत्यंत प्रतिभासंपन्न कवि थे। कहते हैं, कविता की शक्ति इन्हें देवी के वरदान से प्राप्त हुई थी। भूषण की जोरदार शब्दावली, सर्जनप्रतिभा और कठिन छंदसिद्धि उनकी दैवी कविप्रतिभा के प्रमाण प्रस्तुत करती है। भूषण की ओजस्विनी रचनाएँ उस युग की ही ज्वलंत कृतियाँ नहीं, हिंदी साहित्य में उनका विशिष्ट और उच्च स्थान है। वीर रस के वे अप्रतिम कवि थे।(भगीरथ मिश्र)