भूमध्य रेखा या विषुवत् रेखा (Equator) वह काल्पनिक रेखा है जो भूमंडल के उत्तरी गोलार्द्ध को दक्षिणी गोलार्द्ध से अलग करती है। इस रेखा पर स्थित प्रत्येक बिंदु से उत्तरी एवं दक्षिणी दोनों ध्रुव समान दूरी पर होते हैं। यह रेखा वृत्ताकार है जिसका समतल पृथ्वी की धुरी को लंबवत् काटता है। पृथ्वी के आकार में मध्यगत प्रसार के कारण धरातल पर खींचे जानेवाले काल्पनिक वृत्तों में यह वृत्त सबसे बड़ा है। यही कारण है कि इस रेखा पर पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति न्यूनतम होती है। २२ मार्च और २३ सिंतंबर को सूर्य की किरणें विषुवत् रेखा पर लंबवत् पड़ती हैं। २३ मार्च को पृथ्वी दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तरी गोलार्द्ध में प्रवेश करती है। भारत के राष्ट्रीय पंचांग के अनुसार २३ मार्च ही वर्ष का प्रथम दिवस माना जाता है। संयुक्त राज्य अमरीका के वाणिज्य विभाग के आधार पर भूमध्य रेखा की कुल लंबाई ४०,०७५.५६ किमी० बताया था, किंतु १८६६ ई० में क्लार्क महोदय ने अपने गणनानुसार इसके अर्धव्यास की लंबाई ६,३७८.२०६४ किमी० बताई।
चुंबकीय ध्रुव की दृष्टि से चुंबकीयश् (magnetic) विषुवत् रेखा धरातलीय विषुवत् रेखा से भिन्न है। चुंबकीय विषुवत् रेखा वही काल्पनिक रेखा है जिसपर सूई का नयनांश शून्य है। विषुवत् रेखीय वृत्त के समतल में पड़नेवाले आकाशीय वृत्त को खगोलीय (celestial) विषुवत् रेखा कहते हैं। पृथ्वी के धरातल पर सूर्य के ताप का वितरण समान रूप से नहीं होता। स्थल अधिक गरम रहता है और सागर अपेक्षाकृत कम। अधिक गरमीवाले स्थानों को मिलानेवाली काल्पनिक रेखा को तापीय विषुवत् रेखा कहते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल की मात्रा अधिक होने के कारण तापीय विषुवत रेखा औसत रूप से धरातलीय विषुवत् रेखा के उत्तर ही स्थित रहती है।(आनंदस्वरूप जौहरी)