भू-चुबंकी प्रेरक दिक्सूचक (Earth Inductor Compass) किसी स्थान की नति (dip) या आनति (inclination) मापने का परिष्कृत उपकरण है। यह सुविदित है कि चुबकीय ध्रुववृत में निर्वाध, निलबित, चुबंकीय सुई क्षितिज से प्राय: एक कोण बनाती है। यह कोण प्रेक्षण स्थल क नति या आनति होता है। इसे प्राय: नजिमापी (देखें नतिमापी) से मापा जाता है। व्यवहारत: प्रयोगिक त्रुटियों के अनेक स्त्रोतों के कारण नतिमापी द्वारा नति का यथार्थ मापन संभव नहीं है इसलिये भू-चूबंकी प्रेरक नामक अधिक यथार्थ उपकरण ने नतिमापी को स्थानच्युत कर दिया है। यह ०.१� की यथार्थता से नतिकोण माप सकता है। भू-चुबंकी प्रेरक एक वृत्ताकार कुंडली का बना होता है, जिसमें कई लपेट होती है। कुंडली को व्यास की लंबान में स्थित अक्ष के द्वारा बड़ी तेजी से घूर्णित किया जा सकता है। अक्ष एक चौखटे पर स्थित होता है, जिसकी दिशा इच्छानुसार बदल कर लिख ली जा सकती है। यदि अक्ष की दिशा पृथ्वी के क्षेत्र की दिशा पर संपतित नहीं होगी, तो घूर्णन से कुंडली में प्रत्यावर्ती धारा प्रेरित होगी। यह प्रत्यावर्ती धारा उपयुक्त दिक्परिवर्तक (commutator) से दिष्टकृत (rectified) होने पर एकदिशीय होती है और उपकरण से जुड़ी धारामापी से पहचानी जाती है। प्रेक्षक का चौखटा इस प्रकार समंजित करना पड़ता है कि कुंडली के घुर्णित होने पर धारामापी से होकर धारा बिल्कुल न गुजरे। इस स्थिति में, अक्ष प्रेक्षण के लिये सही और अभीष्ट स्थिति में होता है, अर्थात् वह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में होता है। फिर उपकरण से संबद्ध सूक्ष्मदर्शी की सहायता से एक ऊर्ध्वाधर अंशांकित वृत्त पर नति पढ़ ली जाती है। उल्लेखनीय है कि ऊपर बताई रीति से दिक्परिवर्तन की सहायता से प्रत्यावर्ती धारा का दिष्ट धारा में परिवर्तित करने की प्रक्रिया में ताप विद्युद्धाराएँ (thermoelectric currents), या अन्य पराश्रयी वोल्टताएँ (parasitic voltlage) उत्पन्न हो सकती हैं, जो उपकरण की अभीष्ट सूक्ष्मग्राहिता को प्रभावित कर सकती हैं। अत: ई० ए० जॉनसन (E.A. Johnson) ने पहचानने की प्रत्यावर्ती धारा विधियाँ सुझाई हैं। इनसे उपकरण बहुत अधिक सूक्ष्मग्राही हो जाता है। कुंडली अक्ष के यांत्रिक कुसमायोजन (mechanical misadjustment) के कारण उत्पन्न होनेवाली त्रुटियाँ ऊर्ध्वाधर वृत्त के पूर्व और पश्चिम तथा दिक्परिवर्तक के ऊपर तथा नीचे की स्थिति में कुंडली के धन और ऋण घूर्णनों के पाठ्यांको की माला लेकर, दूर की जाती हैं। दिष्टधारा भू-चुंबकी प्रेरक में काम आनेवाला धारामापी बहुत सूक्ष्मग्राही होता है और आधे मीटर की दूरी पर पृथ्वी के क्षेत्र पर बहुत कम विकृति उत्पन्न करता है। इसमें दो या अधिक अस्थैतिक रूप (astatically) से संतुलित चुंबक होते हैं। निलंबित चुंबकों के समीप ही आरोपित अनेक लपेटों की स्थिर कुंडली से होकर धारा प्रवाहित होती है।
भू-चुबंकी प्रेरक निरपेक्ष उपकरण है, अत: सिद्धांतत: किसी स्वीकृत मानक के साथ इसके यथार्थ अंशशोधन की आवश्यकता नहीं होती, पर व्यवहार में तुलना की जाती है और सूचक संशोधन (index correction), जो अत्यल्प होता, अपनाया जाता है।
दुनिया के विभिन्न भागों में आजकल ऐस्कानिया (askania) मॉडल का भू-चुंबकी प्रेरक व्यापक रूप से व्यवहृत हो रहा है। पहचान की प्रत्यावर्ती धारा विधि से काम करने वाले उपकरण समुद्री प्रेक्षणों के लिये विशेष रूप से उपयुक्त हैं।
[किरण चंद चक्रवर्ती]