भुवनेश्वर स्थिति : २०� १६� उ० अ० तथा ८५� ५०� पू० दे०। यह नगर भारत के उड़ीसा राज्य की नवीन राजधानी है। रेल द्वारा यह कलकत्ता और मद्रास से मिला हुआ है। राजधानी हो जाने के बाद बननेवाली इमारतें बड़ी सुंदर तथा सुव्यवस्थित ढंग से बनी है। राजधानी होने से इसका प्रशासकीय महत्व बहुत बढ़ गया है भुवनेश्वर प्राचीन मंदिरों के लिये प्रसिद्ध है। इनमें से कुछ मंदिर तो १२वीं शती के बने हैं तथा कुछ बाद के बने हैं। अधिकांश मंदिरों में शिवलिंग प्रतिष्ठित हैं। ऐसे मंदिरों में लिंगराज मंदिर, अनंत वासुदेव मंदिर, भुवनेश्वर मंदिर, ब्रह्मेश्वर मंदिर, भास्करेश्वर मंदिर, परशुरामेश्वर मंदिर, तथा राजरानी मंदिर अधिक महत्व के हैं। इनमें लिंगराज मंदिर सबसे अधिक विशाल है। लिंगराज मंदिर के प्रांगण में ही भगवती का मंदिर है। इस मंदिर के चार प्रमुख भाग देवल, मोहन, भोग मंडप और नाद मंदिर है। उपर्युक्त मंदिरों में से प्रथम दोनों तो एक साथ निर्मित समझे जाते है तथा अन्य भागों का निर्माण बाद में हुआ समझा जाता है। यहाँ का विशाल शिवलिंग, ग्रेनाइट पत्थर का, लगभग ८ फुट व्यास का और आठ फुट ऊँचा है। भास्करेश्वर मंदिर का लिंग और भी विशाल है। ये धरती से मंदिर की ऊपरी मंजिल (Upper story) तक पहुँच जाता है। नगर में तीन पवित्र कुंड हैं। एक बिंदुसागर, दूसरा सहस्त्रलिंग और तीसरा पापनाशिनी, जिसमें बिंदुसागर या गोसागर १,४०० फुट लंबा और ११००० फुट चौड़ा, एवं सबसे बड़ा है। नगर की जनसंख्या ३८,१११ (१९६१) है।
भुवनेश्वर ही पुराणप्रसिद्ध एकाग्र क्षेत्र नामक प्रसिद्ध तीर्थ है जो शिवक्षेत्र वाराणसी के समान महत्वपूर्ण माना जाता है। यहाँ का लिंगराजमंदिर अपनी पवित्रता और कलात्मकता के लिये प्रसिद्ध है। तीर्थयात्री 'विंदुसागर' में स्नानपूर्वक आठ देवताओं का दर्शन कर पुण्य लाभ करते हैं।