भीमरावस अंबेडकर भारत के प्रसिद्ध समाजसेवी, पिछड़ी तथा दलित जातियों के उद्धारक और गरीब किसानों के हितचिंतक, डॉ० अंबेडकर का जन्म १४ अप्रैल, सन् १८९१ को मध्य प्रदेश में महू (इंदौर) गाँव में हुआ। उनके पिता का नाम रामजी मालाजी अंबेडकर और माता का भीमा बाई था। इनके वे चौदवें पुत्ररत्न थे। बड़ौदा के शिक्षाप्रेमी महाराज सयाजीराव गायकवाड़ के छात्रवृत्ति देने पर १९१३ में उन्होंने अमरीका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी होकर प्रवेश किया। १९१६ में भारत में जाति भेद नामक प्रबंध लिखकर प्रो० गोल्डेन के सामने पढ़ा और उसी वर्ष भारत की अर्थव्यवस्था पर एक प्रबंध लिखा जिस पर कोलंबिया विश्वविद्यालय ने उनको पी० एच० डी० की डिग्री प्रदान की। १९२४ ई० में यह प्रबंध पी० एस० किंग ऐंड संस (लंडन) ने ब्रिटिश भारत में प्रांतीय अर्थव्यवस्था का विकास नाम से प्रकाशित किया। विद्वान प्रोफेसरों ने इसकी प्रशंसा की और भारत का बुकर टी वाशिंगटन कहकर उन्हें संम्मानित किया।
सन् १९१७ में लंदन जाकर उन्होंने उर्थशास्त्र के लिये लंडन स्कूल ऑव इकॉनामिक्स ऐंड पोलिटिकल सायंस में और कानून के लिये ग्रेज इन में अपना नाम दाखिल कराया।
मुंबई वापस आने पर वे बड़ौदा में सयाजीराव महाराज से मिले, महाराजा ने उन्हें मिलिटरी सेक्रेटरी के पद पर नियुक्त किया।
बंबई में आकर डॉ० अंबेडकर ने एक 'दि स्माल होल्डिंग्स इन इंडिया ऐंड देअर रेमिडिज' नाम की एक पुस्तक प्रकाशित की। उन्होंने अपने जीवन का एकमात्र ध्येय हिंदू समाज के अन्याय तथा अत्याचार का प्रतिकार करके अस्पृश्योद्धार करना निश्चित किया। जूलाई १९१८ मतदान हक के विषय को लेकर साउथ बरो कमिशन के पास निवेदन पेश किया।
नवंबर, १९१८ में डॉ० अंबेडकर सिडेनहम कालेज ऑव कॉमर्स ऐंड इकॉनमिक्स, बंबई में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए। जून, १९२१ में लंदन यूनिवर्सिटी ने आपके लिखे हुए, 'प्रॉर्विशियल डिसेंट्रलाइजेशन ऑव इंपीरियल फायनांस इन ब्रिटिश इंडिया' नामक प्रबंध एम० एस० सी० (अर्थशास्त्र) की पदवी देने के लिये स्वीकार किया
मार्च १९२३ में 'दि प्रॅब्लेम ऑव दि रुपी इट्स ऑरिजिन ऐंड इट्स साल्यूशश' नामक प्रबंध लिखने पर उन्हें डॉक्टर ऑव सायंस की डिग्री प्रदान की गई। यह प्रबंध लंडन के पी० एन० किंग ऐंड कंपनी ने दिसंबर १९२३ में प्रकाशित किया। इसे थैकर ऐंड कंपनी ने १९४७ में 'हिस्ट्री ऑव इंडियन करेंसी ऐंड बैंकिंग वाल्यूम' नाम से प्रकाशित किया।
जून, १९२३ में आपने बंबई हाईकोर्ट जूडिकेचर में बैरिस्टरी करना प्रारंम्भ किया। अपने अछूतोद्धार आंदोलन का श्रीगणेश आपने २० जुलाई १९२४ को बंबई में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना से किया। अछूत वर्ग में शिक्षा का प्रसार करने के लिये छात्रालय की स्थापना करना, सांस्कृतिक विकास, वाचनालय तथा अभ्यास केंद्र चलाना, औद्योगिक तथा कृषि स्कूल खोलना, अस्पृश्यता निवारण के आंदोलन को आगे बढ़ाना, इस प्रकार का उनका कार्यक्रम था।
१९२८ में इंडियन स्टेच्यूटरी कमिशन (सायमन कमिशन) के सामने निवेदन तथा साक्ष्य पेश किए, जून में बंबई में गवर्नमेंट ला कालेज में प्रोफेसर हुए और अगस्त में दलित जाति शिक्षण समिति की स्थापना की।
२ मार्च, १९३० को ही डॉ० अंबेडकर ने नासिक के कालाराम मंदिर में अछूतों के प्रवेश के लिये सत्याग्रह शुरू किया। दिसंबर में राउंड टेबुल कांफरेंस (गोल मेज परिषद्) के प्रतिनिधि नियुक्त हुए।
रैम्जे मैकाडॉनल्ड की अध्यक्षता में गोलमेज परिषद् प्रारंभ हुई। डॉ० अंबेडकर ने हिंदुस्तान के दलित लोगों की ओर से कहा, 'हमारी जनसंख्या हिंदुस्तान की जनसंख्या का पाँचवा भाग है, और इंग्लैंड या फ्रांस की जनसंख्या के बराबर है। परंतु हमारे इन अछूत भाइयों की स्थिति गुलामों से भी बदतर है।' डॉ० अंबेडकर ने दलित जाति के राजनीतिक संरक्षण की योजना का स्मारक पत्र तैयार करके अल्पमत उपसमिति को पेश किया। इसमें पृथक निर्वाचन संघ तथा सुरक्षित सीटों की माँग की गई थी, जो आगे चलकर महात्मा गाँधी अंबेडकर संघर्ष का कारण हुआ।
१५ अगस्त १९३१ को महात्मा गांधी तथा डॉ० अंबेडकर के बीच अछूतोद्धार की चर्चा हुई, लेकिन कोई फैसला नहीं हुआ और झगड़ा बना रहा। १ सितंबर, १९३१ को दूसरी गोलमेज परिषद् में भी पार्टीश् के नेताओं ने अपने अपने विचार रखे लेकिन किसी का भी समाधान नहीं हुआ और महात्मा गांधी तथा डॉ० अंबेडकर में मतभेद बना रहा। १ दिसंबर, १९३१ को दूसरी गोलमेज परिषद् समाप्त हुई। सांप्रदायिक निर्णय करने का अधिकार ब्रिटिश प्रधान मंत्री को दिया गया।
ब्रिटिश प्रधान मंत्री ने जब सांप्रदायिक निर्णय की घोषणा की तो उसमें दलित जातियों को पृथक् निर्वाचन का अधिकार मिला और साथ ही आम निर्वाचन में भी मत देने तथा उम्मीदवारी करने का अधिकार उनको दिया गया। यरवड़ा जेल में डॉ० अंबेडकर से महात्मा गांधी की बात हुई। काफी वैचारिक संघर्ष और जयकर, सप्रू, रामगोपालाचार्य आदि नेताओं की चर्चा के बाद २४ सितंबर को यरवडा करार अर्थात पूना पैक्ट स्वीकार किया गया और २६ सितंबर को गांधी जी ने उपवास समाप्त किया
१९३२-३४ ज्वांइट पार्लिमेंटरी कमिटी ऑन इंडियन कांस्टिट्यूशनल रिफॉर्म के सभासद तथा जून १९३५ में गवर्नमेंट ला कालेज के आचार्य तथा जूरिसप्रूडेंस के प्रोफेसर नियुक्त हुए।
डॉ अंबेडकर की धर्मांतर की घोषणा से भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक क्षेत्र में सनसनी सी फैल गई। माहात्मा गांधी, काँग्रेस के अध्यक्ष डॉ० राजेंद्रप्रसाद और अन्य नेताओं ने दु:ख प्रकट किया। मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध धर्मों के प्रतिनिधियों ने उन्हें अपने अपने धर्म में आने का आग्रहपूर्वक निमंत्रण दिया।
दिसंबर, १९४० में 'थॉट्स ऑव पाकिस्तान' ग्रंथ प्राकशित किया। अप्रैल, १९४२ को नागपुर में आल इंडिया शेड्यूलड कास्ट्स फेडरेशन की स्थापना की और जुलाई, १९४२ में वायसराय की एक्जिक्यूटिव कौंसिल में श्रम मंत्री के पद पर पहुँचे।
जून में 'ह्वाट काँग्रेस ऐंड गांधी डिड टु दि अनटचेबुल्स' (कांग्रेस और महात्मा गांधी ने अछूतों के लिये क्या किया) ग्रंथ का प्रकाशन किया।
९ दिसंबर, १९४६ को डॉ० सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में संयुक्त विधान परिषद् का अधिवेशन प्रारंभ हुआ। ११ दिसंबर, १९४६ को सर्वसम्मति से डॉ० राजेंद्र प्रसाद विधान परिषद के अध्यक्ष चुने गए। डॉ० अंबेडकर ने विधान परिषद् के सामने अपना वैधानिक दृष्टिकोण पेश कने के लिये एक स्मरणपत्र तैयार किया जो स्टेट ऐंड माइनॉरिटी, अर्थात् राज्य और अल्पसंख्यकों को सुरक्षित स्थान दिलवाने के विषय में है।
१५ अगस्त, १९४७ को भारत स्वतंत्र हुआ। विधान परिषद् ने विधान का मसविदा बनाने के लिये एक समिति नियुक्त की, जिसके अध्यक्ष विधान शास्त्र के प्रकांड पंडित डॉ० अंबेडकर ही बनाए गए। उन्होंने ४ नंवबर, १९४८ को विधान का मसविदा, जिसमें ८ सूचियाँ और ३१५ धाराएँ थीं, विधान सभा में पेश किया। अधिकांश सदस्यों ने डॉ० अंबेडकर के परिश्रम तथा विद्वत्ता की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। १९५० तक विधान तैयार करके भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्रप्रसाद को समर्पित किया। कोलंबिया युनिवर्सिटी ने ५ जून, १९५२ को विधानशास्त्रज्ञ डॉ० अंबेडकर को एल-एल० डी० की डिग्री देकर सम्मानित किया।
डॉ० अंबेडकर ने दि अनटचेबुल्स नामक प्रबंध (अस्पृश्यों े संबंधी प्रश्न) और महाराष्ट्र भाषावर प्रांतरचना नाम की पुस्तक 'धार कमीशन को सादर समर्पित' की।
दिसंबर, १९५० में कोलंबो विश्व बौद्ध परिषद् के अध्यक्ष हुए। जुलाई, १९५१ में भारतीय बौद्ध जनसंघ की स्थापना की। डॉ० अंबेडकर ने सितंबर, १९५१ में मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया।
डॉ० अंबेडकर ने १४ अक्टूबर, १९५६ को नागपुर में धर्मांतर की प्रतिज्ञा पूर्ण की।
बर्मा के ८० वर्षीय वृद्ध बौद्ध भिक्षु भदंत चंद्रमणि महास्थविर ने उन्हें बौद्ध धर्म के अनुसार त्रिशरण पंचशील का उच्चारण करवा कर धर्म की दीक्षा दी।
६ दिसंबर, १९५६ को दिल्ली में अपने निवासस्थान पर डॉ० अंबेडकर ने देहत्याग किया।
[भिक्षु धर्मकीर्ति]