भिन्न (Fraction) दो पूर्ण संख्याओं
का भागफल है, जैसे यदि ३ और ५ दो पूर्णांक को लें तो
३/५ एक भिन्न है, या व्यापक रूप में यदि क और ख (�o) पूर्णांक हों तो क/ख
एक भिन्न है, जिसका अर्थ है क को ख से भाग देने पर भागफल।
यदि क <
ख तो भिन्न उचित भिन्न कहलाता है और यदि क >
ख , तो भिन्न अनुचित भिन्न कहलाता है। इसको साधारण भाषा
में दो प्रकार से समझा सकते हैं : (१) यदि किसी राशि को ख
बराबर भागों में बाटें और उनमें से क भाग ले लें, तोश् इन क भागों का पूरी राशि का क/ख
भाग कहते हैं, या (२) इस प्रकार की यदि क राशियाँ ले और
उनके ख बराबर भाग करें, तो प्रत्येक को एक राशि के क/ख भाग
कहते हैं। दो संख्याओं क और ख के अनुपात को भी क/ख भिन्न
से व्यक्त किया जाता है। यदि भिन्न क/ख में क या ख को किसी भिन्न
से बदल दें तो इस प्रकार बनी भिन्न को मिश्र भिन्न कहते हैं,
जबकि मूल भिन्न को सरल भिन्न कहते हैं, जैसे, ३/५ सरल भिन्न
है, परंतु
मिश्र भिन्न के उदाहरण हैं। मिश्र भिन्न को और भी व्यापक
बनाया जा सकता
है। अंश और हर में बजाय एक भिन्न के बहुत से भिन्नों
का योग, अंतर गुणनफल, भागफल हो सकता है। जब भिन्न का
हर भिन्न हो, जिस फिर भिन्न हो तथा इसी तरह चलता रहे,
तो एसी भिन्न को वितत कहते हें, जैसे
क+ ख/घ
ग+ घ/छ
च+ छ/झ+.......
जो इस प्रकार लिखा जाता है
भिन्नों के नियम निम्नलिखित है :
साथ ही यदि अंश और हर को एक संख्या से गुणा या भाग दें तो भिन्न के मान में कोई अंतर नहीं पड़ता, अर्थात्
और
जब क, ख में कोई समापवर्तक न हो, तो भिन्न अपने सरलतम रूप में होता है।
जब एक भिन्न कई भिन्नों का जोड़ हो, तो इन भिन्नों को योग भिन्न के आंशिक भिन्न कहते हैं, जैस में
दाई ओर के भिन्न बाई ओर के भिन्नों के आंशिक भिन्न हैं। इनके प्रयोग की महत्ता का अनुभव कलन में होता है।
अलग अलग देशों में भिन्नों को लिखने के अलग अलग ढंग थे। भिन्न लिखने का आधुनिक ढंग भारत की देन है। ब्रह्मगुप्त (६२८ ई०) और भास्कर (११५०ई०) ने भिन्न को ३/४ के रूप में लिखा। अरब के लोगों ने दोनों संख्याओं के बीच में एक रेखा और लगा दी जिससे ३/४ लिखा जाने लगा।
दशमलव अंकन पद्धति में भिन्न लिखने का दूसरा ढंग है, जो बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। वर्गमूल निकालते समय इसका प्रयोग अपरोक्ष रूप से बहुत पहले (ईसा से लगभग १,५०० वर्ष पूर्व) होता रहा है, जैसे ५ वर्गमूल निकालने तक के लिये ५०,००० का वर्गमूल निकालकर फल को १०० से भाग देते हैं। इस पद्धति में इकाई के दसवें, सौवें, हजारवें भाग को एक बिंदु के दाई ओर लिखकर प्रकट करते हैं। इस बिंदु को दशमलव बिंदु और भिन्न को दशमलव भिन्न कहते हैं, जैसे
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दशमलव भिन्न को जोड़ने या घटाने के नियम वे ही हैं जो साधारण संख्याओं के लिये हैं। गुणा का नियम यह है कि संख्या को साधारण संख्याओं की तरह गुणा कर गुणनफल में दशमलव बिंदु उतने अंकों के पहले लगाते हैं जो गुणक और गुण्य के दशमलव के बाद के स्थानों का जोड़ होता है, जैसे ४.५६७ � ३.००२४ = १३.७११९६०८ पहले ४,५६७ और ३०,०२४ का गुणा करेंश् और दाईं ओर से ३+४ स्थान गिनकर दशमलव लगाएँ। दशमलव भिन्न को भाग देने के नियम किसी भी अंकगणित की पुस्तक में देखे जा सकते हैं।
आजकल छोटी और अत्यधिक बड़ी संख्याओं का प्रयोग होता है। इनको सरलता से घात पद्धति से व्यक्त करते हैं तथा इन्हें इस प्रकार लिखते हैं: .०००००३=३�१०-६ या ३,४०,०००= ३.४�१०५ इस प्रकार लिखने से बड़ी बड़ी संख्याएँ सूक्ष्म रूप में लिखी जा सकती हैं और मस्तिष्क में संख्या के संनिकट परिणाम का आभास तुरंत हो जाता है।
[(स्व.) झम्मनलाल शर्मा]