भास्कराचार्यश् शांडिल्यवंशी भास्कराचार्य प्राचीन भारत के सुयोग्य एवं अपने समय के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ थे। ये उज्जैन की बेधशाला के अध्यक्ष थे। इनका जन्म १११४ ई० में, विज्जडविड नामक गाँव में, जो आधुनिक पाटन के समीप था, हुआ था। ११५० ई० में इन्होंने 'सिद्धाँत शिरोमणि' नामक पुस्तक, संस्कृत श्लोकों में, चार भागों में लिखी है, जो क्रम से इस प्रकार है: (१) पाटी गणिताध्याय या लीलावती (Arithmetic), (२) बीजगणिताध्याय (Algebra) (३) ग्रह गणिताध्याय (Astronomy) तथा (४) गोलाध्याय। इनमें से प्रथम दो स्वतंत्र ग्रथ है और अंतिम दो 'सिद्धांत शिरोमणि' के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा 'करणकुतूहल और वासना' भाष्य तथा 'भास्कर व्यवहार' और 'भास्कर विवाह पटल' नामक दो छोटे ज्योतिष ग्रंथ इन्हीं के लिखे हुए हैं।
इनके 'सिद्धांत शिरोमणि' से ही भारतीय ज्योतिष शास्त्र का सम्यक् तत्व जाना जा सकता है। सर्वप्रथम इन्होंने ही अंकगणितीय क्रियाओं का अपरिमेय राशियों में प्रयोग किया। गणित को इनकी सर्वोत्तम देन चक्रीय विधि द्वारा आविष्कृत, अनिश्चित एकघातीय और वर्गसमीकरण के व्यापक हल हैं। भास्कराचार्य के ग्रंथ की अन्यान्य नवीनताओं में त्रिप्रश्नाधिकार की नई रीतियाँ, उदयांतर काल का स्पष्ट विवेचन आदि है। भास्करचार्य को अनंत तथा चलन कलन के कुछ सूत्रों का भी ज्ञान था। इनके अतिरिक्त इन्होंने किसी फलन के अवकल को 'तात्कालिक गति' का नाम दिया और सिद्ध किया कि ज्याq = कोटिज्याq. dq। न्यूटन के जन्म के आठश् सौ वर्ष पूर्व ही इन्होंने अपने गोलाध्याय नामक ग्रंथ में माध्यकर्षणतत्व (Low of Garvitation) के नाम से गुरुत्वाकर्षण के नियमों की विवेचना की है। ये प्रथम व्यक्ति हैं, जिन्होंने दशमलव प्रणाली की क्रमिक रूप से व्याख्या की है। इनके ग्रंथों की कई टीकाएँ हो चुकी हैं तथा देशी और विदेशी बहुत सी भाषाओं में इनके अनुवाद हो चुके हैं
[रामकुमार]