भालू या रीछ (Bear) अर्सिडी (Ursidae) कुल का मांसाहारी, स्तनी, झबरे बालोंवाला बड़ा जानवर है। यह अधिकतर उपोष्ण कटिबंध से लेकर ध्रुवीय जलवायु के देश उत्तरी अमरीका तथा एशिया, यूरोप आदि के बड़े भूभाग में पाया जाता है। बालों की लंबाई तथा खाल की ढिलाई के कारण कुछ भालू अपेक्षाकृत अधिक बड़े लगते हैं। इनमें से कुछ भालू १० फूट से अधिक लंबे तथा १,७०० पाउंड तक भारवाले होते हैं। इनके पैर छोटे तथा मजबूत होते हैं। पंजे लंबे तथा भारी भरकम होते हैं, जिनमें पाँच बड़े बड़े नाखून होते हैं। ये अपने नाखूनों का उपयोग नोंचने, जमीन खोदने और पहाड़ियों तथा पेड़ों पर चढ़ने के लिये करते हैं। जमीन पर भालू कुत्तों तथा बिल्लियों की तरह पदांगुलियों पर नहीं चलता। अत: कुत्ते तथा बिल्ली की भाँति यह सुगमता से नहीं चल सकता। फिर भी यह चिकनी तथा खुरदरी दोनों प्रकार की जमीन पर तेजी से दौड़ सकता है। कुछ प्रकार के भालू तो पेड़ों पर भी तेजी तथा कुशलता से चढ़ सकते हैं। सर्दियों में ये अधिकतर सुप्तावस्था में रहते हैं।
मांसाहारी होते हुए भी ये कई प्रकार का भोजन कर सकते है, क्योंकि इनके दाँतों की विशेष बनावट से इनको चबाने तथा पीसने में कोई कष्ट नहीं होता। वैसे इनका मुख्य भोजन मछलियाँ, कीटीडभ, फल, चिड़ियों के अंडे, मेमने, सुअरों के बच्चे, बेर, काष्ठफल, पौधों की जड़ें तथा पत्तियाँ हैं। इनको शहद बहुत ही अधिक पसंद है। मक्खियाँ बड़े बड़े बालों के कारण इन्हें काट नहीं पाती हैं। अपनी छोटी छोटी आँखों से ये देख कम पाते हैं, किंतु इनकी सुनने एवं सूँघने की शक्ति तेज होती है। सर्दियों के अंत में मादा भालू एक या दो बच्चे देती है।
उपजातियाँ - रंग, वजन, बाल आदि के आधार पर इन्हें कई उपजातियों में बाँटा गया है :
१. काला भालू (Ursus americanus) - यह सबसे प्रमुख भालू है तथा सीधा सादा होता है। जीवशालाओं में इसे देखा जा सकता है। सिखाने पर यह कई प्रकार के खेल कर सकता है, जिनसे लोगों का मनोरंजन होता है। यह उत्तरी अमरीका के अन्य सभी भालुओं में से छोटा होता है। इसका औसत भार २०० से ३५० पाउंड तक होता है। अधिकांश भालू काले होते हैं, किंतु इस जाति के कुछ भालुओं की नाक के ऊपर तथा कुछ की छाती पर सफेद दाग होता है। कुछ भालुओं क बाल भूरें भी होते हैं। अपने वजन एवं आकार के कारण आवश्यकता पड़ने पर, ये तेजी से दौड़ तथा पेड़ों पर चढ़ सकते हैं। इनमें से कुछ भालू खतरनाक भी होते हैं, यद्यपि देखने में शरमीले मालूम पड़ते हैं। ये चिढ़ाने या घायल होने पर ही मनुष्यों पर हमला करते हैं। काले भालू सर्दियों का अधिकांश समय जमीन पर खोदे गए गढ्डों, गुफाओं या खोखले पेड़ों में सोकर ही बिताते हैं। सर्दियों के मध्य में मादा बच्चे देती हैं। ये बच्चे सात से नौ इंच लंबे तथा लगभग आधा पाउंड भारवाले होते हैं। बच्चों के शरीर पर बाल कम होते हैं तथा आँखें एक मास तक बंद रहती हैं। लगभग दो मास के बाद ही ये अपनी माँद से बाहर निकलते हैं। काले भालू की आयु १५ से २५ वर्ष तक होती है।
२. श्वेत भालू (Ursus horribilis) - यह उत्तरी अमरीका के सभी जानवरों से अधिक खतरनाक होता है। इसक भार १,००० पाउंड तक पाया जाता है। ये भूरे पीले धूमवर्ण के होते हैं। इनके पंजे बड़े होते हैं, किंतु नाखून पैने न होने के कारण ये पेड़ों पर कम चढ़ पाते हैं। ये मेक्सिको से उत्तरी अलैस्का तक तथा अन्य भागों में भी पाए जाते हैं। ये हरिण, भैंसा, घोड़ा तथा अन्य पशुओं पर भी आक्रमण कर देते हैं। अब इनकी संख्या शिकार के कारण काफी कम हो गई है और ये केवल घने जंगलों में ही मिलते हैं। यह सर्दियों में सुप्तावस्था में न रहकर, सभी मौसमों में दिन रात अपने शिकार की खोज में घूमा करते हैं।
३. ध्रुवीय भालू (Thalarctos maritimus) - ये अमरीका तथा एशिया के आर्कटिक भागों में पाए जाते हैं। सील, वॉलरस, मछलियाँ तथा अन्य मरे जानवर इनका मुख्य आहार है। ये कुशल तैराक भी होते हैं। ये भालू केवल ध्रुवों तक ही सीमित रहते हैं।
४. भूरे रंग के भालू (Ursus arctos) - ये यूरोप तथा एशिया में मिलते हैं। इन्हें बाँधकर पालतू भी बनाया जा सकता है। इन्हीं भालुओं से इंग्लैड में सैकड़ों वर्षो तक एक प्रकार का खेल (युद्ध) कराया जाता रहा है, जिसमें कई कुत्तों को एक ही बार में भालू के ऊपर छोड़ा जाता है। भारत में इस जाति के भालू हिमालय में पाए जाते हैं। इसकी लंबाई सात फुट होती है।
५. स्लोथ या भालुक (Melursus labiatus) यह भारत तथा श्रीलंका में अधिक पाया जाता है। इसके बाल काले तथा लंबे होते हैं। पंजा भी लंबा होता है। यह शहद तथा छोटे छोटे कीड़ों मकोड़ों को खाता है। यह भालू मलाया, बोर्नियो तथा सुमात्रा में भी पाया जाता है।
भूरे भालू तथा भालुक के अतिरिक्त भारत में माम या बालूची (Urustorquatus) हिमालय में, मलाया भालू (Ursus) गारो पहाड़ में तथा पंडा (Aelurus fulgens) दक्षिण-पूर्वी हिमालय में मिलते हैं।
भालू का गोश्त कड़ा, तीव्र गंधयुक्त होते हुए भी खाने में स्वादिष्ठ होता है। काले भालू का गोश्त खाने से कभी कभी ट्रिचिनोसिस (Trichinosis) नामक बीमारी हो जाती है। सर्दियों में इसके बाल घने होते हैं, अत: इस समय में मारे गए भालू की खाल कीमती होती है। खाल से कंबल, कोट, टोप, आदि बनाए जाते हैं।
[रमेश चंद्र दुबे]