भारतीय शिक्षा मंत्रालय भारत में शिक्षा मंत्रालय का वर्तमान स्वरूप भारतीय संविधान के उपबंधों के अनुरूप है। इस स्वरूप निर्माण में राष्ट्रीय योजना के फलस्वरूप कालातर में हुए शैक्षिक विकास का भी विशेष योगदान है। भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार शिक्षा एवं विश्वविद्यालय राज्य सूची से संबद्ध विषय हैं। किंतु अधोलिखित विषय इसके अपवाद हैं:
१. केंद्रीय विश्वविद्यालय वाराणसी, अलीगढ़ तथा दिल्ली; विधि अनुमोदित राष्ट्रीय महत्व के संस्थान; संघ अधिकरण एवं व्यावसायिक अथवा प्राविधिक शिक्षण अथवा अनुसंधान की प्रगति से संबद्ध संस्थान।
उच्चतर शिक्षा अथवा अनुसंधान एवं वैज्ञानिक तथा प्राविधिक संस्थानों का समन्वय एवं निर्धारण; श्रमिकों के प्राविधिक शिक्षण का समन्वय।
इसके अतिरिक्त कतिपय अन्य शैक्षिक कार्यक्रम भी भारत सरकार के अधीन हैं। जो इस प्रकार है:
राष्ट्रीय योजना, अन्य राष्ट्रों के साथ शैक्षिक तथा सांस्कृतिक संबंध, संयुक्त राष्ट्रसंघ और विशेषत: इसके विशिष्ट अभिकरण संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक एवं सांस्कृतिक संस्था (यूनेस्को) के कार्यक्रम में सम्मिलित होना। विचार एवं सूचना, संचय एवं प्रचार संबंधी आयोजन; केंद्रशासित प्रदेशों की शिक्षा, हिंदी भाषा का प्रचार, विकास तथा संवृद्धि; राष्ट्रीय संस्कृति एवं कला संरक्षण तथा संवर्धन और विशेषत: अल्पसंख्यकों की सांस्कृतिक अभिरूचियों तथा अपेक्षाकृत पिछड़े हुए जनसमूह यथा अनुसूचित एवं परिगणित जातियों के संरक्षण का उत्तरदायित्व। समुचित कार्यक्रमों तथा विशेषत: विश्वविद्यालय स्तर पर छात्रवृत्तियों के द्वारा राष्ट्रीय भावात्मक एकता की संवृद्धि का उत्तरदायित्व।
शिक्षा मंत्रालय का कार्यसंचालन मत्रिमंडलीय स्तर के शिक्षा मंत्री तथा उसके सहायक शिक्षा उपमंत्रियों द्वारा होता है जो निम्नलिखित विविध कार्यालयों तथा निदेशालयों के माध्यम से अपना कार्य करते हैं :
१. वैज्ञानिक अनुसंधान
२. उच्चतर शिक्षा (विश्वविद्यालय तथा प्राविधिक)
३. स्कूली शिक्षा
४. शारीरिक शिक्षा, मनोरंजन, साँस्कृतिक एवं पर राष्ट्र संबंध
५. छात्रवृतियाँ, भाषा तथा आनुषंगिक शैक्षिक गोष्ठियाँ।
सितंबर, १९३१ में राष्ट्रीय शैक्षिक, अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् का निर्माण एक स्वायत्त संस्था के रूप में किया गया। यह परिषद् अनुसंधान, प्रशिक्षण तथा शिक्षाक्षेत्र के विस्तार के विकास कार्यों और शैक्षिक अनुसंधान की प्रगति, सहायता एवं समन्वय में प्रवृत है। परिषद् सेवापूर्व तथा सेवाकाल में प्रशिक्षण एव कार्यविस्तार का सुप्रबंध करती है एवं शिक्षाविषयक आधुनिकतम विधियों एवे प्रयोगो की सूचनाओं का प्रसार करती है। यह राष्ट्रीय महत्व के सर्वेक्षणों की व्यवस्था अथवा आयोजन करती है और अधविहित भारतीय शैक्षिक समस्याओं के अनुसंधान कार्यों पर विशेष बल देती है।
परिषद के उद्देश्यों की पूर्ति इन संस्थानों या विभागों द्वारा की जाती है :
१. केंद्रीय शिक्षा संस्थान; २. केंद्रीय विज्ञान कर्मशाला; ३. वयस्क शिक्षा विभाग, ४. श्रव्य-दृश्य-शिक्षा विभाग, ५. बुनियादी शिक्षा, ६. पाठ्यक्रम, विधि तथा पाठ्य पुस्तक विभाग, ७. शैक्षिक शासन विभाग, ८. क्षेत्रीय सेवा विभाग, ९. शिक्षा स्थापना विभाग, १०. मनोवैज्ञानिक स्थापना विभाग, ११. विज्ञान शिक्षा विभाग, १२. शिक्षक शिक्षा विभाग, १३. शैक्षिक सर्वेक्षण इकाई, १४. परीता एवं मूल्यांकन इकाई।
इन विभागों के अतिरिक्त शिक्षा के चार क्षेत्रीय कालेज उच्चतर पाठशालाओं के शिक्षकों के शिक्षण के लिये खोले गए हैं।
शिक्षा मंत्रालय द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त विश्वविद्यालयों अनुदान आयोग तथा वैज्ञानिक एवे औद्योगिक अनुसंधान परिषद् भी प्रसंग में उल्लेखनीय है: इन स्वायत्त संस्थाओं से विविध राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय प्रयोगशालाएँ संबद्ध हैं।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि गति से शिक्षाप्रसार की बढ़ती हुई माँगों, शिक्षा के स्तर में सुधार तथा तत्संबंधी प्रभविष्णु राष्ट्रीय नीति को कार्यान्वित करने में संवैधानिक दृष्टि से शिक्षा मंत्रालय का कार्य क्षेत्र सीमित है। भारत सरकार को अनेक बार यह सुझाव दिया जा चुका है कि उसे शिक्षा के क्षेत्र में अधिक कारगर ढंग से कार्य करना चाहिए और शिक्षा के संविधान की सातवीं अनुसूची संवर्ती सूची के अंतर्गत रखना चाहिए।
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने शिक्षापद्धति में परिवर्तन का प्रयत्न केवल पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत अनुदान की प्रकिया द्वारा किया है। उदाहरणार्थ सन १९५२ के माध्यमिक शिक्षा आयोग द्वारा माध्यमिक शिक्षा के पुनर्गठन का कार्य राज्य सरकारों का केंद्र द्वारा दिए गए अनुदान से संभव हो सका है।
शिक्षा मंत्रालय, केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड के माध्यम से भी मुख्य शैक्षिक नीतियों एवं कार्यक्रमों पर विचार विनिमय करता है। इस बोर्ड में राज्यों के शिक्षामंत्री राज्य प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित होते हैं। इसी प्रकार प्राविधिक शिक्षा में प्राविधिक शिक्षा केंद्रीय बोर्ड द्वारा समन्वय स्थापित किया जाता है।
सन् १९६४-६५ में राष्ट्रीय प्रगति तथा शिक्षा पर प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के निमित्त, जो शिक्षा आयोग नियुक्त किया गया था; उसने सुझाव दिया है कि शिक्षामंत्रालय को संवैधानिक सीमाओं के अंतर्गत अन्य उत्तरदायित्व भी लेना चाहिए। आयोग का यह मत है कि वर्तमान संविधान के अंतर्गत ऐसी पर्याप्त संभावनाएँ हैं, जिनके द्वारा केंद्र तथा राज्य मिलकर कार्य कर सकते हैैं किंतु इनका अभीतक पूर्णरूपेण सदुपयोग नहीं किया जा सका है। इस प्रकार शिक्षा आयोग ने यह सिफारिश की है कि संविधान में निहित ऐसे उपबंधों का शिक्षा के विकास तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रसार के लिये यथाशक्ति अधिकाधिक उपयोग किया जाना चाहिए।
[रामकृष्ण भान]