भारत सेवक समाज इस संस्था की स्थापना योजना आयोग द्वारा जनसहयोग प्राप्त करने के लिए सन् १९५१ में की गई, राष्ट्रीय सलाहकार समिति की सिफारिशों के अनुसार १२ अगस्त, १९५२ में की गई थी।

उद्देश्य इसके प्रमुख उद्देश्य ये हैं : (१) देश के नागरिकों के लिए अधिक से अधिक सेवा के अवसर मुहैया करना जिससे (क) राष्ट्रीय आवश्कताओं की पूर्ति हो सके और भारतीय जनसमुदाय की सामाजिक एवं आर्थिक शक्ति सुदृढ़ हो सके तथा (ख) देश के साधनहीन एवं पिछड़े लोगों की कठिनाइयाँ और कष्ट दूर किए जा सकें। (२) जनता की उपलब्ध अतिरिक्त शक्ति, साधन और समय का सर्वेक्षण करना और उन्हें संगठित कर सामाजिक तथा आर्थिक विकास के कार्यक्रमों में उपयोग करना।

सदस्यता १८ वर्ष का हर ऐसा व्यक्ति इसका सदस्य हो सकता है, जो सप्ताह में कम से कम दो घंटे स्वेच्छा से सेवाकार्य के लिए दे सके। सदस्यता का शुल्क एक रुपया वार्षिक है। जिन्होंने अपना पूरा समय संस्था की प्रवृतियों के लिए समर्पित कर दिया हो, वे इसके आजीवन सदस्य कहलाते हैं।

ऐसी स्वेच्छासेवी संस्थाएँ जो सूचनात्मक या समाजकल्याण के कार्यो में लगी हों, इसकी संस्था सदस्य हो सकती हैं।

ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो समाज का साधारण सदस्य हो और समाज की प्रवृत्तियों अथवा आर्थिक रूप में नि:स्वार्थ सहयोग देता हो, इसका सहायक सदस्य हो सकता है। सदस्यता के सम्बंध में एक प्रतिबंध यह है कि जो व्यक्ति, हिंसा में विश्वास करता हो या समाज का उपयोग व्यक्तिगत अथवा राजनीतिक क्षेत्र में करता हो वह इस संस्था का सदस्य नहीं हो सकता।

संगठन

भारत सेवक ऐसे सदस्य हो सकते हैं, जिन्हें साधारण सदस्य निश्चित व्यवस्था के अनुसार चुन लेते हैं।

समाज की नीति निर्धारित करने का काम भारत सेवक सभा करती है। इसके एक तिहाई सदस्य भारत सेवक संघ द्वारा, एक तिहाई सदस्य भारत सेवक संघ के सदस्यों के अतिरिक्त सभापति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। भारत सेवक संघ के सदस्यों का चुनाव भारत सेवक करते हैं। इसं संघ की बैठक वर्ष में एक बार होती है।

समाज के दिन प्रति दिन के कार्यो का संचालन केंद्रीय प्रधान मंडल करता है। इसमें नौ सदस्य होते हैं, जिनमें दो सदस्य समाज के ट्रस्ट्रियों द्वारा मनोनीत होते हैं।

इसी तरह केंद्रीय संगठन के अंतर्गत प्रदेश, राज्य, जिला, प्रखंड, नगर, ग्राम तथा मुहल्लों में भी शाखाओं का संगठन होता है।

कार्यक्षेत्र लोकसेवा के लिए कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण, जनजागरण तथा समाज कल्याण सम्बंधी कार्य, गंदी बस्तियों का सुधार, परिवार नियोजन आदि विविध कार्य इस संस्था के कार्यक्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।

लोककार्य का कार्यक्षेत्र जनजागरण की प्रक्रिया पूरी होने पर शुरू होता है। जनकल्याण के व्यापक कार्यक्रमों में जनसहयोग प्राप्त करना ही इसका मुख्य उद्देश्य है। सारे देश में समाज के सभी विभागों के सक्रिय कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए इस विभाग द्वारा दो प्रशिक्षण शिविर, एक दिल्ली तथा एक त्रिवेंद्रम में चलाए जा रहे हैं। भारत सेवक दल का प्रशिक्षण भी इसी विभाग के अंतर्गत होता है।

जनजागरण के कार्य में विचारगोष्ठियों का आयोजन, योजना सूचना केंद्रों का संचालन, बुलेटिनों, ब्रोशरों तथा छोटी पुस्तिकाओं के जरिए योजना का प्रचार करना और योजना-प्रचार-सप्ताहों का आयोजन करना आदि काम है।

समाज कल्याण के कार्यक्षेत्र में रैनबसेरों का संचालन, उपनगर सुधार कार्यक्रम और महिला-बाल-कल्याण के कार्यक्रम आते हैं। नागरिक क्षेत्र में आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों की वृद्धि रोकने का काम भी अब इसके कार्यक्षेत्र में आ गया है।

गंदी बस्तियों के सुधार के कार्यक्षेत्र में स्वच्छता-सफाई-अभियान, नागरिक नियमों की शिक्षा के सिवा साक्षरता कक्षाएँ तथा महिला शिल्प कक्षाएँ चलाना आदि भी हैं।

निर्माणसेवा इसका गठन सन् १९५५ में इस आधार पर किया गया था कि राष्ट्रीय धन की बचत की जा सके और सरकारी ठेके के कामों में जो देर और अंधेर होता है, उसे रोका जा सके। कोसी तटबंध, शाहदरा का जमना बाँध, चंबल बाँध, नागार्जुन सागर नहर, दिल्ली की अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों, के अनेक मंडलों का निर्माण, हवाई अड्डों, सड़कों तथा भवनों का निर्माण अब तक इस विभाग ने किया है।

गत पाँच वर्षो में ४००.९० लाख रूपयों का निर्माणकार्य किया गया जिसमें से १०९, ९५ लाख रूपयों की बचत हुई। इस बचत में से १७.९९ लाख रुपया मजदूरों के कल्याण कार्य पर खर्च किया गया। कई राज्यों में इसकी शाखाएँ खुल चुकी हैं।

युवक एवं श्रम शिविर देश भर में ग्राम युवकों और विद्यार्थियों के पाक्षिक शिविर लगाता है और शिविर में किए गए श्रमदान कार्यो का मूल्यांकन करता है। अब तक १० हजार शिविर लगाए जा चुके हैं, जिनमें चार लाख से अधिक युवकों ने भाग लिया। इस विभाग में अब प्राथमिक चिकित्सा, गृह विज्ञान, शारीरिक प्रशिक्षण (पी.टी.) एवं 'अधिक अन्न उपजाओ आंदोलन' शामिल किया जा चुका है। परिवार नियोजन भी युवक और श्रमशिविर के अंतर्गत है, पर इसकी अपनी अलग कार्यकारिणी है। परिवार-नियोजन-शिविरों का मुख्य संचालक भी प्रादेशिक शिविर संचालक ही होता है।

स्वास्थ्य एवं स्वच्छता अभियान में प्रति वर्ष ग्रीष्मकालीन एवं शरदकालीन स्वास्थ्य सप्ताह मनाया जाता है। २ अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वच्छता दिवस और प्रति मास के अंतिम रविवार को स्वच्छता अभियान भी किया जाता है।

प्रशिक्षण शिविर के दो केंद्र हैं एक दिल्ली के समीप अशोक बिहार में और दूसरा है केरल के त्रिवेंद्रम नगर में। इन शिविरों में भारत सेवक समाज के सभी विभागों में काम करनेवाले तथा अन्य स्वेच्छासेवी संस्थाओं के कार्यकर्ता भी प्रशिक्षित किए जाते हैं।

प्रकाशन विभाग समाज से सम्बंधित साहित्य प्रकाशित करता है। इसके साथ भारत सेवक मासिक पत्र हिंदी तथा अंग्रेजी में प्रकाशित करता है। इसके साथ भारत सेवक मासिक पत्र हिंदी तथा अंग्रेजी में प्रकाशित करता है। इसकी एक कार्यसमिति है, जिसमें सभापति, उपसभापति, मंत्री और कुछ नामजद सदस्य होते हैं। छह प्रांतीय भाषाओं में बुलेटिन निकाले जाते हैं।

योगासन का कार्य आसन और प्राणयाम का जनता में व्यापक प्रचार करता है। इसने ६४ सरल आसनों का चुनाव किया है, जिनके प्रचार के लिए सन् १९५८ में एक अ. भा. योगासन समिति बना दी गई। देश के प्राय: सभी बड़े बड़े शहरों में इसकी कक्षाएँ लगती हैं।

गैरसरकारी मूल्य जाँच सेवा सन् १९६२ में इसका गठन हुआ। देश के कुछ चुने हुए औद्योगिक क्षेत्रों में (१) मूल्यों की जाँच, (२) सहकारी उपभोक्ता भंडारों की स्थापना, (३) विशुद्ध खाद्य पदार्थो का उत्पादन, (४) उपभोक्ताओं को प्रशिक्षित कर उनमें निरोध शक्ति पैदा करना, (६) मूल्य नियंत्रण के लिए खुदरा थोक व्यापारियों का संगठन आदि कार्य करने की योजना है।

राष्ट्रीय सुरक्षा का सप्तसूची कार्यक्रम चीनी आक्रमण के बाद इसका गठन हुआ है। सैनिक परिवारों को सहायता, जनता के नैतिक बल को टिकाए रखना, प्रतिरक्षा के लिए निर्माण ईकाई का गठन, मूल्यवृद्धि की रोक, बचत अभियान स्वेच्छा-सेवी-संस्थाओं से सहयोग आदि कार्य हैं, जिन्हें अब समाज के उपर्युक्त विभागों में मिला दिया गया है।

संयुक्त सदाचार समिति सन् १९६४ में सबसे प्रथम दिल्ली मे इसकी शाखा खुली। लोगों में सदाचार निर्माण कर सरकारी प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को मिटाना ही इसका मुख्य उद्देश्य है।

आश्रय योजना भारत सेवक समाज की यह भावी योजना है। इसका मूलोद्देश्य यही है कि इसके माध्यम से निष्ठावान्, सेवाभाववाले और निस्स्वार्थ ऐसे समाजसेवक तैयार किए जाएँ, जो अपना सारा जीवन समाजसेवा में लगा दें और उनके जीवन की पाँचों आवश्यकताओं की पूर्ति उन्हीं आश्रमों के माध्यम से हो।

व्यास समाज के गठन का मुख्य उद्देश्य कथा कीर्तनकारों के माध्यम से गाँव में जनचेतना लाना और लोगों में चरित्रनिर्माण की भावना भरना है। १९६० में प्रयाग के कुंभ मेले के अवसर पर पहला, १९६१-६२ में बंबई में दूसरा और १९६२-६३ में हरिद्वार में तीसरा सम्मेलन किया गया। हरिद्वार में एक ४० दिन का प्रशिक्षण शिविर भी लगाया गया था, जिसमें ५३ कथा-कीर्तन-कारों को प्रशिक्षित किया गया।

विहंगावलोकन समाज के सक्रिय कार्यकर्ताओं की संख्या ५०,००० है, जिनमें पूरा समय देनेवाले कार्यकर्ता २,००० हैं, राज्यों की (प्रदेश) शाखाएँ २०, जिला शाखाएँ ३००, ग्राम समितियाँ ३,८०० हैं। १९६४ तक भारत सेवक दल के सदस्य ३०,०००, प्रशिक्षित सदस्य १२,०००, गंदी बस्ती सुधार केंद्र ३९, संपर्क किए गए परिवार आठ लाख, समाज कल्याण विस्तार केंद्र २७, लाभान्वित परिवार १३,५०० तथा श्रम सेवा शिविर ९५०४ थे। इधर इन संस्थाओं में और भी विस्तार हुआ है। (विश्वंभरदास नंदा)