भारत में लौह अयस्क�(Iron ore in India) भारत में विश्व के उन देशों में से है जहाँ विपुल मात्रा मे लौह अयस्क देश के अनेक भागों में पाया जाता है। इन स्रोतों में से कुछ ऐसे भी हैं जो वर्तमान समय में यातायात की कठिनाई, अथवा किसी अन्य कारणवश, अधिक आर्थिक महत्व के नहीं हैं। लगभग एक शताब्दी से इन स्रोतों का सर्वेक्षण होता आया है तथा लगभग अर्द्धशताब्दी से लौह तथा इस्पात के उत्पादन पर विशेष बल दिया गया है।
भारत में प्राप्त लौह अयस्कों में चार प्रकार मुख्य हैं :
(१) सर्वाधिक महत्वपूर्ण हेमेटाइट (Hematite) अयस्क है, जो बिहार, उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश के विशाल निक्षेपों में विद्यमान है। अपेक्षाकृत कुछ कम महत्व के निक्षेप मैसूर तथा महाराष्ट्र राज्यों में स्थित हैं।
(२) स्फटिक मैग्नेटाइट (Quartz Magnetite) शिलाएँ मुख्यत: मद्रास राज्य के त्रिचनापल्ली तथा सेलम जिलों में मैसूर के कुछ भागों में पाई जाती हैं।
(३) लिमोनाइट तथा लोहउल्का (Limonite & Siderite ores) बंगाल के रानीगंज क्षेत्र में विकसित, अधर गोंडवाना क्रम के लौह-प्रस्तर-शेल (shale) के अवयव के रूप में पाई जाती है।
(४) लैटेराइट अयस्क (Laterite ore) इनका उद्भव विभिन्न प्रकार की शिलाओं से, जिनमें लौह का कुछ अंश रहता हो, हो सकता है। इनमें ऋतुक्षरण (weathering) से सिलिका (silica), क्षारों एवम् क्षारीय मिट्टियों का लोप हो जाता है तथा लौह और ऐल्यूमीनियम के आर्द्र ऑक्साइडों का संकेंद्रण हो जाता है। इस प्रकार प्रसिद्ध लैटेराइट अस्तित्व में आता है।
लौह अयस्क का भूवैज्ञानिक वितरण � सर्वाधिक महत्वपूर्ण अयस्क हेमेटाइट निक्षेप हैं, जो पूर्व कैंब्रियन युग के पट्टीवाले हेमेटाइट जैस्पर (Banded Hematite Jasper) अवसादों के रूपांतरण द्वारा ही उत्पन्न हुए हैं।
कुछ निक्षेप नवीन शिलाओं में भी मिलते हैं। उदाहरणार्थ कडप (Cuddapah), विंध्यन, गोंडवाना, मेसोजोइक (Mesozoic) तथा तृतीयक (Tertiary) आदि में, किंतु इनका विशेष आर्थिक महत्व नहीं है। कुछ महत्वपूर्ण निक्षेप भूवैज्ञानिक विभाजन के साथ आगे दिए जा रहे हैं। (देखें सारणी)
बिहार तथा उड़ीसा
सिंहभूम, किओनझर तथ पोनाई के लौह निक्षेप � बिहार के सिंहभूम तथा इससे संलग्न उड़ीसा के किओनझर तथा बोनाई जिलों में लौह अयस्क विपुल मात्रा में वितरित हैं। इस क्षेत्र में पाई जानेवाली संरचनाओं (formations) में अकायांतरित (unmetamorphosed), पूर्व कैंब्रियन, अवसादित शिलाएँ, जिन्हें 'लौह अयस्क श्रेणी' भी कहते हैं, कुछ प्राचीन नाइसीय (gneissic) तथा शिस्टाभ (schistose) शिलाएँ एवं ग्रेनाइट सम्मिलित हैं।
दक्षिण सिंहभूम तथा संलग्न जिलों में पट्टीवाले फेरोगिनस (feruginous) शिलाएँ वलित (folded) हैं, जिन्होंने ऐसी कूट शृंखला को जन्म दिया है जिसके शृंग उत्तम प्रकार के लौह अयस्क (हेमेटाइट) से आच्छादित हैं। इन निक्षेपों को पट्टीवाले हेमेटाइट जैस्पर कहा जाता है। इनमें हेमेटाइट तथा जैस्पर की पट्टियाँ एक के बाद एक के क्रम में पाई जाती हैं। सरंचनाओं की अधिकतम मोटाई बोनाई जिले में लगभग ३,००० फुट है तथा सिंहभूम और किओनझर में कुछ कम है। इस क्षेत्र की संरचना जटिल होने से मोटाई की ठीक-ठीक अनुमान लगाना कठिन है।
महत्वपूर्ण निक्षेप
निक्षेप का विवरण |
स्थिति |
पूर्व कैंब्रियन की लौह अयस्क श्रेणियाँ तथा धारवाड़ पट्टी वाले लौह अवसाद |
सिंहभूम (बिहार); बोनाई; किओनझर तथा मयूरभंज (उड़ीसा); चांदा, दुर्ग, बस्तर तथा जबलपुर (मध्य प्रदेश) ; रत्नगिरि; गोवा; सेलम; त्रिचनापल्ली; सांदूर; हैदराबाद। |
ग्रेनाइट (granite) मैग्नेनाइट तथा विघटित ग्रेनाइट |
जयंतिया पर्वत (असम) |
कडप क्रम (system) |
कर्नूल (मद्रास) |
बिजावर श्रेणी (series) |
रीवा (मध्य प्रदेश) |
गोंडवाना क्रम बराकर तथा महादेव श्रेणियाँ। लौह प्रस्तर शेल |
वीरभूम रानीगंज कोयला क्षेत्र (बंगाल) |
ट्राइसिक (Triassic) |
कश्मीर |
जेरेसिक (Jurassic) |
काठियावाड़ |
राजमहल पाश (trap) |
वीरभूम (बंगाल) |
उत्तर तृतीयक (Upper tertiary) टीपम समूह (group) |
उत्तर असम (upper assam) |
लैटेराइट (laterirte) (तृतीयक अथवा पश्चात्) |
बंगाल, हैदराबाद, मद्रास |
इन क्षेत्रों में अनेक प्रकार के अयस्क मिलते हैं, जिनमें चार प्रकार के मुख्य हैं :
(१) स्थूल अयस्क, जिसमें मुख्यत: हेमेटाइट ही होता है। यह गहरे कत्थई से लेकर इस्पात के वर्ण तक का सघन अयस्क है, जो सामान्यत: अयस्ककूटों के शृंगों को निर्मित करता है।
(२) पटलित अयस्क (laminated ore) में पटल पूर्ण रूप से विकसित होते हैं। अवश्य ही यह अयस्क, स्थूल अयस्क से कम सघन होता है तथा इसमे लौह का अनुपात ५५% से ६०% तक होता है।
(३) शेली (shaly) अयस्क कुछ गहराई पर मिलता है। कुछ अयस्क पर्याप्त, यहाँ तक कि सघन अयस्क जितने, समृद्ध होते हैं तथा कुछ में लौह का अनुपात ५०% अथवा उससे भी कम होता है।
(४) चूर्ण अयस्क अधिकांशत: नीलश्याम (blue black) वर्ण का होता है। इसके चप्पे (patches) नोआमंडी, गुआ, मनोहरपुर तथा अन्य निक्षेपों में प्राप्त होते हैं, जहाँ खनन खुले क्षेत्र में होता है।
पालामऊ जिले के मैग्नेटाइट निक्षेप � पालामऊ जिले में डाल्टनगंज के समीप, लादी में मैग्नेटाइट अयस्क दो समूहों में पाया जाता है। प्रथम समूह गोरे ग्राम के समीप पाँच पहाड़ियों का है, जो उ. उ. प.-द. पू. दिशा में १,०० गज तक फैला हुआ है। पहाड़ियों की चौड़ाई ३५० गज है।
अयस्क में मुख्यत: मैग्नेटाइट है, जो अंशत: हेमेटाइट द्वारा स्थानांतरित कर दिया गया है। समृद्ध अयस्क के दृश्यांश (outcrop) की लंबाई लगभग २,००० फुट तथा चौड़ाई ९० फुट है। अयस्क का आपेक्षिक घनत्व ४.३-४.६३ है। इसमें अच्छे वर्ग के मैग्नेटाइट की मात्रा का अनुमान ४,००,००० टन कुछ लोग इसका अनुमान ६,००,००० टन तक भी करते हैं। दूसरा वर्ग है बिवाबाथन, जो बिवाबाथन नामक ग्राम के दक्षिण पूर्व में लगभग आधा मील पर स्थित है। यहाँ मैग्नेटज्ञइट शिस्ट (schist) का एक लघु दृश्यांश (outcrop) देखा गया है। इस दृश्यांश से संलग्न क्षेत्र में लौह अयस्क के अनेक ढेर बृहत् मात्रा में फैले हुए हैं। मैग्नेटाइट अयस्क के अनुमानित भंडार १,००,००० टन हैं।
टाइटेनियमयुक्त तथा वैनेडियमयुक्त मैग्नेटाइट
निक्षेप � दक्षिण-पूर्व सिंहभूम
तथा मयूरभंज से संलग्न भागों में कुछ टाइटेनियमयुक्त मैग्नेटाइट
के निक्षेप, जिनमें वैनेडियम का भी कुछ अवयव सम्मिलित है,
प्राप्त होते हैं। ड्डब्लावेरा, लांगों, कुदर साही (सिंदोरपुर
के दक्षिण में) तथा बेतझरन के समीप अयस्क के प्राप्तिस्थान हैं।
ये सभी छोटे निक्षेप हैं। सर्वाधिक विशाल निक्षेप मयूरभंज
राज्य के कुम्हारडूबी में प्राप्त हुए हैं। इसके आसपास का क्षेत्र,
जो श्मील
लंबा और
मील चौड़ा
है, प्लवी अयस्क (float ore) , अथवा मैग्नेटाइट संखंड (magnetite debris), से आच्छादित है।
प्लवी अयस्क के अनुमानित भंडार १० लाख टन के लगभग है।
मध्य प्रदेश
विशाल और महत्वपूर्ण लौह निक्षेप बस्तर, चाँदा, द्रुग तथा जबलपुर जिलों में प्राप्य हैं।
बस्तर जिले के निक्षेप � ये निम्ललिखित हैं :
(अ) बैलाडिला � यहाँ लौह अयस्क पूर्वकैंब्रियन अवसादीय लौह संरचनाओं में, जिन्हें 'बैलाडिला लौह अयस्क शृंखला' कहते हैं, पाए जाते हैं। मूल शिला पट्टीवाली हेमेटाइट जैस्पर (B.H.J.) है, जो हेमेटाइट द्वारा प्रतिस्थापित कर दी गई है। कुछ छोटे मोटे मैग्नेटाइट निक्षेप भी मिले हैं, किंतु महत्व के नहीं हैं। बैलाडिला शृंखला में दो समांतर कूट हैं, जो उत्तर-दक्षिण में फैले हुए हैं। लगभग १४ निक्षेपों की स्थिति ज्ञात की जा चुकी है, जिनमें पाँच शृंखला के पश्चिम में तथा नौ पूर्व में स्थित हैं। तलीय अवलोकन द्वारा निक्षेपों का अनुमान दो सौ फुट तक की गहराई के लिये ६१ करोड़ टन आँका गया है। इसमेंश् प्लवी अयस्क भी सम्मिलित है। यह अनुमान पूर्णत: विश्वसनीय नहीं है।
(ब) राउघाट (Rowgat) � यहाँ हेमेटाइट के कुछ महत्वपूर्ण निक्षेप मिले हैं। इस क्षेत्र में लगभग छह निक्षेपों का रेखांकन हो चुका है और १५० फुट तक की गहराई में ७४ करोड़ टन अयस्क होने का अनुमान है। कारके गाँव के पश्चिम में राउघाट के दक्षिण पश्चिम कूट में विशालतम निक्षेप स्थित हैं।
द्रुग जिले के निक्षेप � इस जिले के पश्चिमी भाग में धल्ली तथा रझारा पर्वतश्रेणियों पर, जो लगभग २० मील तक वक्र, किंतु सतत, पंक्ति में फैली हुई हैं, आस पास के क्षेत्र से ४०० फुट की ऊँचाई पर लौह निक्षेप प्राप्त होते हैं। इनका अयस्क उच्च वर्ग का हेमेटाइट है, जिसमें मैग्नेटाइट की कुछ मात्रा भी सम्मिलित है। १५० फुट गहराई तक अयस्क के अनुमानित भंडार १२ करोड़ टन आँके गए हैं।
चाँदा जिले के निक्षेप � लौह अयस्क के प्राप्तिस्थान मुख्य रूप से चाँदा जिले के उत्तरी भाग में सीमित हैं, जहाँ वे लेंसों (lenses) की शृंखला में पट्टीवाले हेमेटाइट जैस्पर के साहचर्य में प्राप्त होते हैं। मुख्य प्राप्तिस्थान लोहारा, पिपलगाँव, असोला तथा दिवालगाँव हैं। लोहारा निक्षेप की चौड़ाई अपेक्षाकृत कम है, किंतु फिर भी १० फुट चौड़ाई को ध्यान में रखते हुए यहाँ २१० लाख टन अयस्क मिलने की आशा है। पिपलगाँव, असोला तथा दिवालगाँव के निक्षेप छोटे हैं तथा कुल अयस्क का अनुमान १० लाख टन है।
अगरिया पहाड़ी में, जो सिहोरा रेलवे स्टेशन के द. द. पू. में १० मील की दूरी पर स्थित है, लैटेराइट के समृद्ध अयस्कों में लौह की मात्रा ४५-६०% तक विद्यमान है। इसकी अनुमानित मात्रा ७,५०,००० टन है।
इसके अतिरिक्त जौली, सिलोंदी, गोसलपुर तथा घोगरा आदि में साधारण अथवा निकृष्ट कोटि के निक्षेप हैं। कन्हवाड़ा पहाड़ियों में लैटेराइट पाया जाता है। यहाँ अयस्क की कुल मात्रा ४९० लाख टन के लगभग होगी। सरोली में ३५ लाख टन अयस्क मिलने की संभावना है।
ग्वालियर जिले के उत्तरी भाग में लौह प्रस्तर शेलें मिलती हैं। अयस्क सघन कठोर हेमेटाइट से लेकर कोमल पदार्थ तक के रूप में प्राप्य है। अयस्क में कभी कभी ७०% तक लौह होता है।
बिजावर श्रेणी में नर्मदा नदी के अनुप्रस्थ इंदौर, धार तथा झबुआ जिलों में लौह अयस्क अनियमित रूप से वितरित पाया जाता है।
गुना, विपुरी, भिलसा, शाजापुर, उज्जैन तथा मंदसौर जिलों में समृद्ध लैटराइट के छद (cappings) पाए गए हैं।
बंगाल
बीरभूम � यहाँ लौह अयस्क अनेक स्रोतों से उत्पन्न हुए हैं। दामूदा तथा महादेव श्रेणियों के बालू पत्थर में हेमेटाइट की पट्टिकाएँ मिली हैं। दूसरा स्रोत लैटेराइट का है, जो राजमहल पाश के साहचर्य में पाया जाता है। तामरा देवचा, सी पहाड़ी, दूधिया, काँडा तथा राजमहल पाश की दक्षिण सीमा के समीप खनन कार्य किया गया है।
(२) रानीगंज कोयला क्षेत्र (बर्दवान) � लौह अयस्क दामूदा श्रेणी के मध्य भाग में पाया जाता है जो लौह प्रस्तर शेल कहा जाता है। लौह प्रस्तर शेल की अनुमति मोटाई लगभग १,४०० फुट है, तथा यह पूर्व पश्चिम दिशा में कुल्टी से लेकर लगभग ३३ मील की दूरी तक फैली हुई है। टी. डब्ल्यू. एच. ह्यूज (T.W.H. Hughes) के अनुसार इस क्षेत्र के प्रति वर्ग मील में लगभग २० करोड़ टन लौह प्राप्त होने की सम्भावना है।
महाराष्ट्र और गोआ
लौह अयस्क के निक्षेप धारवाड़ क्रम में अनावृत्तों (exposures) की शृंखला के रूप में कंकौली के समीप, वाग्दा के पूर्व में स्थित कस्साल के पूर्व-उत्तर-पूर्व में, कुंडा के दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम एवं कट्टा तथा रेडी के समीप पाए जाते हैं। कट्टा तथा रेडी के निक्षेप महत्वपूर्ण हैं और महाराष्ट्र तथा गोआ की सीमा पर वेनगुल्ला के दक्षिण-दक्षिण-पूर्व में पश्चिमी तट पर स्थित हैं।
गोआ की सीमा में बिलोलिम के समीप लोहे की खानें प्राप्त होने की सूचना मिली है। दो कूटों, जिनकी पारस्परिक दूरी ४०० मीटर है, पर दो समांतर लौह अयस्क की पट्टियाँ हैं। यहाँ के अयस्क में कुछ कठोर तथा रध्रीं हेमाटाइट, मैगनेटाइट के सूक्ष्म कणों के साथ प्राप्त होता है।
महाराष्ट्र तथा गोआ के लौह के निक्षेपों में न्यूनतम ७० लाख टन उत्तम प्रकार के अयस्क मिलने की आशा है। इतनी ही मात्रा में निकृष्ट कोटि के तथा लैटेराइट अयस्क भी प्राप्त हो सकते हैं। उत्तम प्रकार के अयस्क में लगभग ६०% लौह होता है। समुद्र के समीप होने के कारण इन निक्षेपों का उपयोग मुख्य रूप से जापान के लिये अयस्क निर्यात करने के लिये किया जाता है।
मद्रास
सेलम तथा त्रिचनापल्ली के निक्षेप � मद्रास राज्य के सर्वाधिक महत्वपूर्ण निक्षेप मैगनेटाइट स्फेटिक शिलाओं का एक वर्ग है जो त्रिचनापल्ली और सेलम जिलों में पूर्व-उत्तर-पूर्व पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम दिशा के अनुप्रस्थ फैला हुआ है। इस क्षेत्र के निक्षेपों को निम्नलिखित नौ वर्गो में विभाजित किया जा सकता है :
(१) कंज मलाई, (२) गोदु मलाई (३) पेरुम मलाई (४) आत्तुर क्षेत्र (५) चित्तेरी पहाड़ी (६) थीर्थ मलाई (७) नमक्कल तथा रासीपुर क्षेत्र, (८) कोल्लाइ मलाई एवं (९) पचाइ मलाई।
सर्वाधिक महत्व के निक्षेप कंज मलाई
विशाल पहाड़ी है जो सेलम नगर से पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम में
पाँच मील की दूरी पर स्थित है। इसकी रूपरेखा अंडाकार है
जिसकी लंबाई श्मील
तथा चौड़ाई २
मील लगभग
है।
भंडार � अनुमान केवल उन्हीं अयस्कों का किया गया है जिनमें २५% से कम मैगनेटाइट नहीं है और जहाँ वाणिज्य स्तर पर कार्य किया जा सकता है। डा. एम. एस. कृष्णन् के अनुसार १०० फुट की गहराई तक निम्नलिखित भंडारों की गणना की गई हैं :
निक्षेप मात्रा
कंज मलाई ५.४६ करोड़ टन
गोदु मलाई १.२५ �� ��
पेरुम मलाई १.०४ �� ��
आत्तुर क्षेत्र १.१७ �� ��
चित्तेरी पहाड़ी ५.५४ �� ��
थीर्थ मलाई ४.७५ �� ��
नमक्कल रासीपुर ३.३९ �� ��
कोल्लाई मलाई ६.७४ �� ��
पचाई मलाई १.११ �� ��
योग = ३०.४५ करोड़ टन
कडप जिले के हेमाटाइट निक्षेप � चबाली निक्षेप, कडप क्रम के पुलीवेंडला क्वार्ट्जाइट (Quartzites) के समृद्ध भाग को प्रदर्शित करते हैं। लौह अयस्क स्फटिक के अनियमित चप्पों में प्राप्य हैं। अयस्क उत्तम प्रकार का हेमाटाइट है, किंतु कुछ भाग का अपरदन हो गया है। चबाली के समीप ही पगडालापाल्ले निक्षेप भी स्थित हैं। चबाली में कई सौ हजार टन अयस्क मिलने की संभावना है।
कर्नूलु जिले के निक्षेप � रामाल्ला कोटा तथा बेलदूर्ती के समीप हेमाटाइट निक्षेप मिले हैं। बेलदूर्ती, गानीबाट्टू पहाड़ियों तथा ब्रह्ममुंडम के अंतर्गत अनेक निक्षेप प्राप्त हुए हैं। १०० फुट तक की गहराई के लिए अनुमानित भंडारों की मात्रा ३७ लाख टन है।
मैसूर
हेमाटाइट अयस्क � इन अयस्कों ने पूर्व कैंब्रियन धारवाड़ क्रम के भागों को निर्मित किया है। अयस्क खनिज मुख्यत: हेमाटाइट है जिसके साहचर्य में थोड़ा मैगनेटाइट भी मिलता है।
मैगनेटाइट अयस्क � स्फटिक (Quartz) मैगनेटाइट अयस्क लेंस रूप में माड्डूर, हलागुर तथा सारगुर के समीप एक श्रेणी के अंतर्गत मिलता है।
टाइटेनियम का मैगनेटाइट � यह विरल पट्टिकाओं तथा लेंसों में मैसूर के दक्षिण भाग में प्राप्त होता है।
भंडार � चिक्कमंगलूर,
चित्राल, दुर्ग तथा तुमकूरु जिलों में हेमाटाइट अयस्क के विशालतम
निक्षेप हैं। यहाँ अल्प गहराई तक ही लगभग १२ करोड़ टन
अयस्क उपलब्ध है। इसमें श्भाग
उच्च कोटि का अयस्क है जिसमें ६०% के लगभग लौह है। १०० फुट की सामान्य गहराई
मानते हुए कुल भंडारों का अनुमान १०० करोड़ टन होगा जिसमें
सभी कोटि के अयस्क सम्मिलित हैं। मैसूर राज्य के अन्य भागों
में १० करोड़ टन से भी अधिक स्फटिक मैगनेटाइट अयस्क तथा
तीन करोड़ टन के लगभग टाइटेनियमयुक्त मैगनेटाइट
विद्यमान है।
सांदूर (बल्लारि) के लौह निक्षेप � लौह अयस्क धारवाड़ (पूर्व कैंब्रियन) शिलाओं में प्राप्य है। उड़ीसा की भाँति यहाँ भी अयस्क छादों से आच्छदित कूटों की एक शृंखला है जो पट्टीवाली लौह संरचनाओं के समृद्ध संवर्धन से उत्पन्न हुई है। अयस्कों में उत्तम हेमाटाइट है।
भंडार � ५० से ८० फुट गहराई तक विभिन्न निक्षेपों के अनुमानित भंडार इस प्रकार हैं :
निक्षेप मात्रा
दोनाइ मलाई २.५६ करोड़ टन
देवादरी शृंखला १.५० ��
कुमारास्वामी काम्माधेरूवू शृंखला २.५४ ��
काना वेहाली शृंखला ०.०५ ��
रामन दुर्ग शृंखला ३.०३ ��
तिम्मापानागुडी श्रृखला ३.२८ ��
योग = १२.९६ करोड़ टन
आंध्र प्रदेश
हैदराबाद में विभिन्न आकार के अनेक निक्षेप प्राप्त हुए हैं। इसमें महत्वपूर्ण निक्षेप धारवाड़ क्रम में ही सीमित हैं। कुछ महत्वपूर्ण प्राप्तिस्थान चितियाला, कालेरा, रेबनपल्ली, चंदोली (अंबर पेट) तथा सिंगरेनी क्षेत्र आदि हैं।
कश्मीर
सर्वप्रथम लौह अयस्क का एक स्तर संगार मार्ग में प्राप्त हुआ था। एक अन्य स्तर अशुद्ध कैल्सियम लौह अयस्क का है जो चूना पत्थर तथा शेलों के संपर्क में उत्तर ट्राऐसिक युग की शिलाओं में सोफ ग्राम में पाया गया है।
पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश
कुछ साधारण निक्षेप पटियाला (पंजाब) तथा हिमाचल प्रदेश में प्राप्त हुए हैं। इनमें कुछ महत्वूपर्ण निक्षेप भी होंगे ऐसी सम्भावना है।
भंडारों का अनुमान
यह स्वयं सिद्ध है कि भारत में हेमाटाइट अयस्क पर्याप्त विस्तारों में वितरित तथा मात्रा की दृष्टि से भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। व्यावहारिक रूप से सभी दशाओं में भंडारों का अनुमान तलीय निरीक्षण द्वारा ही किया गया है तथा बृहत् पूर्व सर्वेक्षण नहीं हुआ है। निम्नांकित अनुमान में केवल उन्हीं अयस्कों की गणना की गई है जिनमें ६०% या उससे अधिक लौह अवयव विद्यमान है। अनुमानित भंडार (करोड़ टन में) निम्नलिखित है :
हेमाटाइट अयस्क भूवैज्ञानिक अनुमान सम्भावित अनुमान
बिहार तथा उड़ीसा
सिंहभूम १०४.७
केंढुझरगढ़ ९८.८
बोनाई ६४.८
मयूर भंज १.७
८००.०
मध्य प्रदेश
लोहारा २.०
पिपलगाँव .३
आसोला दिवाल गाँव .२
धल्ली राझारा पहाड़ियाँ १२.०
बैलाडिला ६१.०
रावघाट आदि ७४.०
जबलपुर (विभिन्न प्रकार) ५.५
१५५.०����������������������������������������������������������������������������������������������������������� ३००.०
महाराष्ट्र तथा गोआ
गोआ रतनगिरि .७
आंध्र ३.६
मद्रास
बेलदूर्ती (कर्नूल) .७
मैसूर १२.० १००.०
सांदूर (बल्लारि) १३.० २०.०
हेमेटाइट अयस्क का योग ४५५.०
भारतीय लौह व इस्पात उद्योग � अभी तक भारत में लौह व्यवसाय विकासशील अवस्था में है। देश में लौह खनिज का वार्षिक उत्पादन लगभग ५१ लाख टन है जिसमें से प्राय: ९०% बिहार और उड़ीसा के निक्षेपों से प्राप्त होता है। उत्पादित मात्रा को कुछ भाग जापान आदि देशों को निर्यात किया जाता है। देश में लौह तथा इस्पात के चार पुराने कारखाने हैं जिनमें से एक टाटानगर में, दूसरा आसनसोल के समीप हीरापुर में, तीसरा कुल्टी में तथा चौथा मैसूर राज्य में भद्रावती में स्थित है। इन सब में मिलाकर १९ लाख टन कच्चा लोहा तथा १२ लाख टन लोहा और इस्पात उत्पन्न होता है। देश की विशालता तथा जनसंख्या को देखते हुए यह मात्रा बहुत कम है और अत्याधिक परिमाण में लौह तथा इस्पात तथा उनसे बना हुआ सामान के आयात का वार्षिक मूल्य प्राय: २२ करोड़ रुपए के लगभग होता है। इस अभाव को पूरा करने के लिये नवीन लौह तथा इस्पात के कारखानों के निर्माण की योजनाएँ बनाई गई हैं। उड़ीसा में रूरकेला, मध्यप्रदेश में भिलाई तथा पश्चिमी बंगाल में दुर्गापुर में नवीन कारखाने स्थापित हो गए हैं। (विद्यासागर दुबे)