भारत की अनुसूचित जातियाँ और कबीले � अनुसूचित जातियों की पहली आधिकारिक सूची भारत सरकार के (अनुसूचित जाति) आज्ञापत्र १९३६ के साथ परिशिष्ट रूप में दी गई थी। यह सूची तत्कालीन असम, बंगाल, बिहार, बंबई, मध्यप्रदेश एवं बरार, मद्रास, उड़ीसा, पंजाब और युक्त प्रांतों के लिये विशेष रूप से तैयार की गई थी। इसके पूर्व ये जातियाँ दलित वर्गो के रूप में जानी जाती थीं।
२. 'अनसूचित जनजाति या कबीला' नाम का उपयोग भारत के संविधान के लागू होने से पूर्व नहीं किया गया था। भारत सरकार के अधिनियम १९३५ में पिछड़े कबीलों का उल्लेख प्रांतीय लेजिस्लेटिव असेंबलियों के गठन के सिलसिले में हुआ था; और उसके बाद ही भारत सरकार (प्रांतीय लेजिस्लेटिव असेंबलियों) के आज्ञापत्र १९३६ के १३ वें अनुच्छेद में इनकी निश्चित सूची दे दी गई। जिन तत्कालीन प्रांतों के लिये पिछड़े कबीलों का निश्चयीकरण हुआ था, वे थे असम, बिहार, बंबई, मध्य प्रदेश, मद्रास व उड़ीसा।
३. संविधान अपनाए जाने के बाद अनुसूचित जातियों, तथा अनुसूचित कबीलों की भी नई तालिकाएँ राष्ट्रपति द्वारा संविधान की ३४१ एवं ३४२ धाराओं की शतों के अनुसार अनुज्ञापित की गई।
४. अनुसूचित जाति की संभाव्य कसौटी यह है कि वह अस्पृश्यता के व्यवहारों से उत्पन्न किसी अनर्हता या कठिनाइयों से उत्पीड़ित है या नहीं।
५. आबादी � पिछली दो जनगणानाओं के आधार पर अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित कबीलों की जनसंख्या नीचे दी है :
जनगणना का वर्ष |
संम्मिलित कुल संख्या |
अनुसूचित जातियों की संख्या |
अनुसूचित कबीलों की संख्या |
१ |
२ |
३ |
४ |
१९५१ १९६१ |
३६,०९,९१,८९७ ४३,९०,७२,८९३ |
५,५३,२७,०२१ ६,४५,०४,११३ |
२,२५,२५,४७७ २,९८,४६,३०० |
अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित कबीलों की संख्या का अनुपात १९६१ की जनगणना के आधार पर प्राप्त पूरे देश की जनसंख्या का क्रमश: १४.६% तथा ६.८% था जबकि यह १९५१ की जनगणना के अनुसार क्रमश: १५.३२% तथा ६.२३% रहा।
६. संवैधानिक सुरक्षा व्यवस्था � भारत का संविधान अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित कबीलों के लिये अनेक सुरक्षात्मक व्यवस्थाएँ प्रस्तुत करता है। ये सारी सुरक्षा व्यवस्थाएँ प्रकट रूप में संविधान की ४६वीं धारा में निहित उस उच्च 'निदेशात्मक सिद्धांत' (Directive principle) को लागू करने के कार्य में सुविधा प्रदान करने के लिये उपबंधित की गई हैं जो निम्नलिखित हैं:
राज्य जनता के पिछड़े वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों (कबीलों) के लोगों के शैक्षाणिक एवं आर्थिक हितों की अभिवृद्धि के लिये विशेष सावधानी से प्रदत्त करेगा और सामाजिक अन्याय तथा हर प्रकार के प्रशोषण से उनकी रक्षा करेगा।
ये सुरक्षा व्यवस्थाएँ लोकसभा में तथा राज्यों के विधान मंडलों में सुरक्षित सीटों, सरकारी सेवाओं, आर्थिक, शैक्षाणिक तथा सामान्य विकास, नागरिक अधिकारों के संरक्षण इत्यादि विषयों से संबद्ध हैं। इनका विवरण नीचे दिया जाता है :
(क) लोकसभा तथा राज्यों के विधानमंडलों में प्रतिनिधित्व संविधान की ३३०, ३३२ तथा ३३४ धाराएँ अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित कबीलों के लिये लोकसभा एवं विधानमंडलों में सीटों के संरक्षण की व्यवस्था करती है। प्रारंभ में ये संरक्षण संविधान लागू होने के बाद १० वर्षो तक के लिए किए गए थे। अब यह अवधि संविधान की ३३४ वीं धारा के एक संशोधन १० वर्ष और आगे तक कर दी गई है।
संविधान की ८१वीं तथा ३३०वीं धाराओं की शर्तो के अनुसार परिसीमन आयोग (Delimitation commission) ने लोकसभा तथा विधानसभाओं में चुनाव भरी जानेवाली सीटों का निर्धारण विभिन्न राज्यों के लिए जिनमें जम्मू कश्मीर और नागालैंड अपवाद थे, १९६१ की मतगणना के आधार पर ४८१ थी। इन ४९० सीटों में ७५ (१९५१ की जनगणना के आधार पर ७४) अनसूचित जातियों के लिए तथा ३३ (१९५१ की जनगणना के आधार पर २९) अनुसूचित कबीलों के लिये हैं। आयोग ने चुनाव के लिये २७ और भी स्थान निर्धारित किए, जम्मू और कश्मीर के लिये छह, नागालैंड के लिये एक, 'नेफा' क्षेत्र के लिये एक, तथा केंद्र के अधीन अन्यान्य राज्यों के लिये १९। १९५१ की जनगणना के आधार पर जम्मू और कश्मीर के लिये छह, 'नेफा' के लिये एक सीट तथा अन्य संघीय राज्यों के लिये १८ सीटें रखी गई थीं; इन १८ स्थानों में दो अनुसूचित जातियों के लिये तथा दो अनुसूचित कबीलों के लिये सुरक्षित रखे गए थे।
जहाँ तक राज्य की विधानसभाओं की बात थी, परिसीमन आयोग ने १९६१ की मतगणना के आधार पर ३,२३८ सीटों का निर्धारण किया, जब कि इसके पूर्व १९५१ की जनगणना के आधार पर निर्धारित सीटों की संख्या ३,१०२ थी। इन ३,२३८ सीटों में ४७१ (१९५१ के जनगणनानुसार ४७०) तथा २२७ (१९५१ के जनगणनानुसार २१) सीटों का संरक्षण क्रमश: अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित कबीलों के लिए किया गया है।
संविधान की १६४वीं धारा में कबीलों के हित के लिये एक पृथक् मंत्री की भी गुंजायश बिहार, मध्यप्रदेश एवं उड़ीसा के राज्यों के लिए की गई है। इस मंत्री पर ही अनुसूचित जातियों तथा पिछड़े वर्ग के भी हितों की रक्षा का प्रभार रहेगा।। असम में भी, संविधान के छठे अनुच्छेद की धारा तीन, पैरा १४ के अनुसार राज्यपाल को यह अधिकार दिया गया है कि वह राज्य के स्वशासित जिलों तथा स्वशासित क्षेत्रों के लिये जनकल्याण का प्रभार, मंत्रियों में से किसी एक को विशिष्ट रूप से सौंप दे। (नीचे अनुच्छेद च का अनुभाग (१) तथा (२) देखिए) किंतु तथ्य यह है कि व्यवहार रूप में उन सभी राज्यों में, जहाँ अनुसूचित क्षेत्र अथवा अनुसूचित कबीले हैं, कबीलों के जनकल्याण के लिये मंत्रियों की नियुक्ति कर दी गई है, जो अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिये भी उत्तरदायी हैं। इसके अतिरिक्त व्यवहारत: सभी ऐसे राज्यों, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जातियों के किसी एक व्यक्ति को भी मंत्रिपद दिया गया है, यद्यपि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
(ख) राज्य सेवाओं में प्रतिनिधित्व � संविधान की ३३५ वीं धारा में इस बात की गुंजायश रखी गई है कि संघ अथवा राज्य की सेवाओं एवं पदों के लिए नियुक्तियाँ करते समय प्रशासन की क्षमता को बनाए रखने का ध्यान रखते हुए अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित कबीलों के दावों पर भी विचार किया जाए। १६ (४) वीं धारा राज्यों के लिये इस बात की गुंजायश रखती है कि नागरिकों की ऐसी किसी पिछड़ी जाति के लाभार्थ नियुक्तियों अथवा पदों को सुरक्षित रखे जिसके संबंध में वह समझती हो कि राज्य की सेवाओं में उसका उपयुक्त प्रतिनिधित्व नहीं हो सका है।
१६वीं मुख्य धारा में इस बात की गुंजायश रखी गई है कि सरकारी नौकरियों के मामले में धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वंश, जन्मस्थान, आवास आदि अथवा इनमें से किसी एक का भी विचार किए बिना ही अवसर प्रदान करने में समानता बरती जाए।
इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये भारत सरकार
ने निश्चय किया है कि जनवरी, १९५० के बाद सेवाओं में जो स्थान
रिक्त हों और जिनकी आपूर्ति भारतव्यापी आधार पर प्रत्यक्ष रूप
से की जाए, उनमें अनुसूचित जातियों एवं कबीलों के लिये क्रमश:
१२ तथा ५ प्रतिशत
स्थान सुरक्षित रखे जाएँ। तीसरी एवं चौथी श्रेणी के पदों के
लिये सीधी भर्ती के लिये जो सामान्यत: किसी स्थान अथवा क्षेत्र
के प्रत्याशियों को आकर्षित करती है, प्रदेशों, संघीय राज्यों
में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित कबीलों की जनसंख्या के आनुपातिक
आधार पर स्थान सुरक्षित कर दिए गए हैं।
केंद्रीय सरकार की सेवाओं के लिये नियुक्तियों के विषय में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित कबीलों के लिये कुछ और भी सुविधाएँ दी गई हैं, जैसे :
(क) नियुक्ति के लिए निर्धारित अधिकतम उम्र की सीमा में पाँच वर्ष की छूट तथा तत्सम्बंधी किसी भी परीक्षा में बैठने अथवा चुने जाने के लिये निर्धारित शुल्क में चतुर्थांश की कटौती।
(ख) परीक्षा द्वारा सीधी भरती किए जाने की स्थिति में केंद्रीय लोकसेवा आयोग तथा नियुक्ति करनेवाले अन्य अधिकारियों को अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित कबीलों के वैसे प्रत्याशियों को अपना विशेष अनुमोदन देने की स्वतंत्रता जो परीक्षा में कुछ कम अंक प्राप्त कर उत्तीर्ण हुए हों।
(ग) जहाँ भरती परीक्षा द्वारा न होकर अन्य किसी जरिए होती हो, नियुक्ति अधिकारियों को इस बात की छूट है कि वे अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित कबीलों के प्रत्याशियों के लिये अर्हता का कुछ नीचा स्तर मान्य समझें, बशर्ते कि वे प्राविधिक एवं शैक्षणिक योग्यता की अल्पतम सीमा पूरी करते हों।
इसी भाँति विभिन्न राज्य सरकारों ने भी अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित कबीलों के लिये मुख्यत: राज्य में उनकी जनसंख्या के आधार पर जगहें सुरक्षित कर दी हैं। इन्होंने भी उपर्युक्त सभी अथवा अन्य कई सुविधाएँ भी अनुसूचित या परिगणित जातियों और परिगणित कबीलों को दे रखी हैं।
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित कबीलों के प्रत्याशियों के शैक्षणिक स्तर को ऊँचा करने तथा उन्हें अखिल भारतीय प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं के लायक तैयार करने के लिये केंद्रीय सरकार ने इलाहाबाद तथा बंगलोर में स्थानीय विश्वविद्यालयों द्वारा एक परीक्षापूर्व प्रशिक्षण का कार्यक्रम आरंभ किया है।
(ग) अस्पृश्यता निवारण
अस्पृश्यता समाप्त कर दी गई है और संविधान की १७वीं धारा के अनुसार 'अस्पृश्यता' का किसी भी रूप में व्यवहार निषिद्ध ठहराया गया है। अस्पृश्यता से उत्पन्न किसी भी प्रकार की अनर्हता को बलात् लागू करना इस धारा के अंतर्गत कानून द्वारा दंडनीय घोषित कर दिया गया है।
(घ) अनुसूचित जातियों और अनुसूचित कबीलों के नागरिक अधिकारों की सुरक्षा तथा उनका शोषण न होने देने की व्यवस्था �
संविधान की १५वीं धारा किसी भी नागरिक के साथ धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्मस्थान अथवा इनमें किसी एक के आधार पर इन मामलों में भेद भाव बरतने का निषेध करती है � (अ) दूकानों, सार्वजनिक जलपानगृहों, होटलों तथा सार्वजनिक मनोरंजनगृहों में प्रवेश अथवा (आ) कुओं, तालाबों, नहाने के घाटों, सड़कों तथा ऐसे सार्वजनिक स्थानों का उपयोग, जो पूर्णतया अथवा आंशिक रूप से गए सरकारी खर्च से बने हों या सार्वजनिक उपयोग के लिये घोषित किए गए हों। धारा १९ (२) के अंतर्गत किसी भी नागरिक को किसी शिक्षण संस्था में, जो सरकार द्वारा चलाई जाती हो अथवा सरकारी कोष से सहायता पाती हो, मात्र किसी धर्म, नस्ल, जाति, भाषा अथवा इनमें से किसी एक के भी आधार पर प्रवेश करने से रोका नहीं जा सकता। संविधान की उपर्युक्त शर्तो के संदर्भ में राज्य को यह अधिकार दिया गया है कि सामाजिक एवं शैक्षाणिक दृष्टि से पिछड़े नागरिकों के किसी भी वर्ग, अनुसूचित जातियों अथवा अनुसूचित कबीलों के उत्थान के लिये विशेष सुविधाएँ प्रदान करे।
धारा १९ अन्य बातों के साथ इस बात की भी सुरक्षापूर्ण सुविधा प्रदान करती है कि कोई भी व्यक्ति भारत के पूरे राज्य में कहीं भी बेरोकटोक आ जा सकता है, ठहर सकता अथवा बस सकता है तथा संपत्ति प्राप्त या अधिकृत कर सकता है, अथवा उसे इच्छानुसार बेच दे सकता है। इस मामले में भी राज्य को यह अधिकार दिया गया है कि इन अधिकारों के उपयोग पर सार्वजनिक हित की दृष्टि से अथवा किसी परिगणित कबीले के हित की रक्षा के लिये युक्तियुक्त सीमा तक बंधन लगा सके।
संविधान की २३वीं धारा के अनुसार आदमियों का बेचा या खरीदा जाना, बेगार, तथा अन्य सभी प्रकार के बलात् श्रम निषिद्ध करार दिए गए हैं।
संविधान के उपर्युक्त प्रतिबंध अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित कबीलों के हितों की रक्षा के लिए बड़े ही सहायक सिद्ध हुए हैं। पिछड़े तथा अज्ञानी होने के कारण ये लोग अवांछनीय व्यक्तियों द्वारा, जिनमें ठीकेदार, महाजन तथा सरकारी महकमों के छोटे अधिकारी तक आते हैं, बराबर बरगलाए जाते रहे हैं। सरकार ने अब इन्हें ठगे जाने या शोषित किए जाने से बचाने के सम्बंध में उचित कदम उठाए हैं।
(ड) आर्थिक, शैक्षणिक एवं सामान्य विकास � पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत होनेवाले सामान्य विकास कार्यक्रमों से अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित कबीलों को भी, सामान्य जनसंख्या का अंग होने के नाते, समान रूप से लाभ उठाने का हक है। तथापि ऐसा देखा गया कि इन लाभों में अपना उपयुक्त हिस्सा प्राप्त करने में ये असमर्थ रहे हैं। अत: देश में इन समुदायों को सामान्य स्तर पर लाने के लिये संविधान की ४६वीं तथा २७५वीं धाराओं के अनुसार विशेष कार्यक्रम तैयार किए गए हैं।
प्रथम पंचवर्षीय योजना में इन लोगों के लिए कोई सुनियोजित कार्यक्रम नहीं बनाया गया था। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये केवल ३२ करोड़ रु. (परिगणित जातियों के लिये सात करोड़ तथा परिगणित कबीलों के लिए २५ करोड़ रु.) की व्यवस्था की गई थी। दूसरी योजना की अवधि के अंतर्गत ही इनके लिये सुनियोजित कार्यक्रमों की व्यवस्था हुई। इस योजना में ७९ करोड़ रुपयों की रकम परिगणित जातियों (२९ करोड़) तथा परिगणित कबीलों (५० करोड़) के लिये निर्धारित की गई। इन कल्याणकारी योजनाओं में केंद्र तथा राज्य सरकारों ने ५०:५० के अनुपात में हिस्सा बटाना स्थिर किया। द्वितीय योजना के कार्यकाल में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित कबीलों के हित के लिये कुछ ऐसे भी महत्वपूर्ण कार्यक्रम स्थिर किए गए जिनके शत प्रतिशत व्यय की पूर्ति केंद्र सरकार के ही अनुदान से करना स्थिर हुआ। योजना में इन समुदायों के लिए निर्धारित कुल ७९ करोड़ रुपयों की रकम में से ५२.०६ करोड़ रुपए (जिसमें २३.०८ करोड़ अनुसूचित या परिगणित जातियों तथा २८.९८ करोड़ परिगणित कबीलों के लिए है) राज्य क्षेत्र द्वारा (५०:५० के साझे पर) निर्धारित की गई है तथा २६.७४ करोड़ रु. की रकम (५.७३ करोड़ परिगणित जातियों के लिये तथा २१.०१ करोड़ परिगणित कबीलों के लिए) केंद्रीय सरकार के जिम्मे (शतप्रतिशत अनुदान स्वीकृति के आधार पर) रखी गई। उपलब्ध सूचनाओं से पता चलता है कि प्रथम योजना काल में जहाँ ३२ करोड़ रु. की रकम स्थिर की गई थी, केवल २९.६१ करोड़ रु. का व्यय ही संभव हो सका (इसमें ७.०८ करोड़ परिगणित जातियों के लिये तथा १९.८३ करोड़ परिगणित कबीलों के लिए था)। दूसरी योजना के काल में ७९ करोड़ की निर्धारित रकम में से ७०.६६ करोड़ ही खर्च हुए।
प्रथम तथा द्वितीय योजना कालों में अनुसूचित कबीलों के लिये अनेक विकास कार्यक्रमों को कार्यान्वित किया गया। इनमें से मुख्य ये हैं�जमीन की बंदोबस्ती, पड़ती भूमि को कृषि योग्य बनाना; बीजों का वितरण तथा प्रदर्शन फार्मों की स्थापना; कर्मचारियों की तथा वनश्रमिकों की सहकार समितियों की स्थापना; संचारव्यवस्था में सुधार; विशिष्ट वृत्तियों, शुल्कों से मुक्ति तथा वजीफों की सुविधाएँ (मैट्रिक पास करने के पहले तथा बाद की); नए स्कूलों तथा आश्रय-विद्यालयों की स्थापना; पीने योग्य जल की आपूर्ति; आवासों की दशा में सुधार; दवाखानों, जच्चागृहों तथा शिशुकल्याण केंद्रों तथा चलते फिरते स्वास्थ्य संगठनों की स्थापना, इत्यादि इत्यादि।
जहाँ तक अनुसूचित अर्थात् परिगणित जातियों का सवाल था, प्रथम दो पंचवर्षीय योजनाओं में जो कार्य हाथ में लिए गए उनमें सामान्यत: उनके शैक्षाणिक विकास एवं अस्पृश्यता निवारण पर ही जोर दिया गया था।
प्रथम दो पंचवर्षीय योजनाओं में प्राप्त अनुभवों के आधार पर तृतीय पंचवर्षीय योजना में एक काफी सुविचारित कार्यक्रम बनाया गया। एतदर्थ १०० करोड़ रु. की एकमुश्त रकम पूरी योजनावधि के लिये निर्धारित की गई जिसमें से ४० करोड़ रु. (८ करोड़ रु. केंद्रीय निधि से तथा ३२ करोड़ राज्यनिधि से) परिगणित जातियों के लिये और ६० करोड़ रु. (२२ करोड़ रु. केंद्रीय निधि से तथा ३८ करोड़ रु. राज्य निधि से) परिगणित कबीलों के लिए था।
तीसरी पंचवर्षीय योजना में अनुसूचित कबीलों के लिये जो कार्यक्रम निश्चित हुआ उसके अंतर्गत ये कार्य आते हैं�रोपनी के काम (shifting cultivation) में लगे हुए व्यक्तियों का पुनर्वासन (rehabilitetion); परिगणित कबीलों की वन श्रमिक सहकार समितियों के कार्यसंचालन की व्यवस्था, कबाइली क्षेत्रों के किसानों तथा बढ़ई, लोहार आदि को विशेष रुपया उधार मिलने की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये बहूद्देशीय सहकार समितियों की स्थापना, भूमिसुधार; परती भूमि को कृषियोग्य बनाना तथा भूमि संरक्षण; सिंचाई की छोटी मोटी सुविधाएँ; उन्नत बीज, खाद, औजार तथा बैलों की आपूर्ति; उन्नत तरीकों के प्रदर्शन-प्रशिक्षण की सुविधाओं की व्यवस्था; मवेशी, मत्स्योद्योग, कुक्कुट, सूअर, भेड़ पालन का विकास, प्रशिक्षण तथा उत्पादन के मिले जुले केंद्रों की स्थापना और ग्रामोद्योगों में लगे देहाती कारीगरों को सहायता तथा सलाह देने की व्यवस्था, शिक्षा की सभी अवस्थाओं में फीस का माफ किया जाना, छात्रवृत्तियों तथा छात्रावासों की सुविधा; प्राविधिक प्रशिक्षण के लिये वजीफे एवं शुल्क मुक्ति; दुर्गम स्थानों पर पहुँचने के हेतु पुलियों, पंगडंडियों एवं पुलों का निर्माण, गंतव्य पथों तथा जीप चलाने लायक जंगली रास्तों का निर्माण; दूरवर्ती एवं दुर्गम स्थानों से जोड़नेवाले सम्पर्क मार्गो की मरम्मत; विभिन्न कबाइली क्षेत्रों में रोगों की रोकथाम के उपाय; दवादारू के लिये चलते फिरते चिकित्सालयों की सुविधा; जच्चागृहों तथा शिशुकल्याण केंद्रों की स्थापना; आवश्यक स्थानों पर पेय जल की व्यवस्था इत्यादि।
योजना के अंतर्गत कबाइली विकास प्रखंडों की स्थापना का एक बड़ा महत्वाकांक्षी कार्यक्रम भी है, जिसका कार्यान्वयन कबाइली क्षेत्रों में सामुदायिक विकास प्रखंडों के ढंग पर हो रहा है। द्वितीय योजना काल में ऐसे ४३ प्रखंड खोले गए जिनमें से प्रत्येक पर २७ लाख रु. खर्च किए गए। तीसरी योजना में यह रकम २७ लाख के बजाय २२ लाख रुपये प्रति ब्लाक कर दी गई। इसके बाद आगे के पाँच वर्षो के ऐसे हर प्रखंड के लिये १० लाख रु. अधिक की गुंजायश की जाएगी। इन प्रखंडों की स्थापना में मूल प्रेरक उद्देश्य यह है कि इनके द्वारा कबाइली क्षेत्रों में सघन तथा समन्वित विकास की स्थिति लाई जाए। तीसरी योजनावधि में ऐसे ४५० प्रखंड स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया। प्रखंडों पर होनेवाला शतप्रति-शत व्यय केंद्रप्रेरित कार्यक्रम के आधार पर किया जाएगा।
अनुसूचित जातियों के लिए तय किए गए कार्यक्रमों में शैक्षणिक विकास, आर्थिक उन्नय, स्वास्थ्य एवं आवास आदि की सुविधाएँ सम्मिलित हैं। ये सुविधाएँ निस्संदेह अनुसूचित जातियों को मिलनेवाले उन लाभों की अनुपूरक हैं जो उन्हें सामान्य विकास कार्यक्रमों के सिलसिले में योजना के अंतर्गत क्रमश: बढ़नेवाले पैमानों पर प्राप्त हैं। ऐसा इसलिये है कि अनुसूचित जातियाँ अनुसूचित कबीलों से बिलकुल भिन्न स्थिति में हैं और विस्तृत क्षेत्रों में बिखरी हुई हैं तथा सामान्य आबादी के साथ साथ जीवनयापन कर रही हैं।
निम्नलिखित कार्यक्रम जो अनुसूचित जातियों के कल्याण को दृष्टि से महत्वपूर्ण समझे गए हैं, केंद्र द्वारा प्रेरित सामान्य कार्यक्रमों के अंतर्गत रखे गए हैं जिनका पूर्ण व्यय भार भारत सरकार ही शतप्रति-शत वहन करेगी।
(अ) अस्वच्छ कार्यो में लगे हुए लोगों की काम करने की स्थितियों में सुधार जिनके अंतर्गत सिर पर मल का बोझ ढोने की प्रथा का निवारण भी है।
(आ) मेहतरों और भंगियों के आवासगृहों के निर्माण के लिये धन की सहायता।
(इ) उन अनुसूचित जातियों के घर बनवाने के लिये स्थान की व्यवस्था :
(क) जो अस्वच्छ पेशों में लगे हुए हैं, और
(ख) जो भूमिहीन श्रमिक हैं।
प्रथम पंचवर्षीय योजनावधि में १.५८ करोड़ रु. अनुसूचित जातियों के लिये तथा ०.४२ करोड़ रु. अनुसूचित कबीलों के लिए मैट्रिक के बाद की शिक्षा के वजीफों पर खर्च किया गया। दूसरी योजनावधि में यही व्यय बढ़कर अनुसूचित जातियों के लिए ६.२६ करोड़ रु. तथा अनुसूचित कबीलों के लिये १.१० करोड़ रु. का हो गया। तीसरी योजना के प्रथम दो वर्षो में यह क्रमश: ४.८२ करोड़ तथा ०.८१ करोड़ रु. रहा।
१९५४ में अनुसूचित जातियों तथा कबीलों के लिये विदेशों में अध्ययनार्थ आर्थिक मदद देने की भी व्यवस्था की गई। तब से १९६२-६३ तक अनुसूचित जातियों के ३२ तथा अनुसूचित कबीलों के ३१ व्यक्तियों को ऐसी आर्थिक मदद दी गई। इसके अतिरिक्त कुछ विद्यार्थियों को समुद्रयात्रा का खर्च भी दिया गया।
गैरसरकारी संस्थाओं की भी बड़ी संख्या अनुसूचित जातियों तथा कबीलों के लिये अनेक क्षेत्रों में अपनी सेवाएँ प्रस्तुत कर रही है। एक से अधिक राज्यों में कार्य करनेवाली संस्थाओं को भारत सरकार द्वारा अनुदान सहायता के लिये मान्यता दी गई है। तीसरी योजनावधि में १.२५ करोड़ की रकम इन संस्थाओं के लिए अनुदान के रूप में स्वीकृत की गई। अनुसूचित जातियों के लिये जिन संस्थाओं को अनुदान की सहायता के लिये चुना गया है वे हैं � हरिजन सेवक संघ, दिल्ली ; भारतीय डिप्रेस्ड क्लासेज लीग, दिल्ली; ईश्वरशरण आश्रम, इलाहाबाद; भारत दलित सेवक संघ, पूना; दि इंडियन रेडक्रास सोसायटी, दिल्ली ; दि रामकृष्ण मिशन, नरेंद्रपुर; दि हिंद स्वीपर्स' सेवक समाज, दिल्ली ; दि सर्वेट्स ऑव इंडिया सोसायटी, पूना। अनुसूचित कबीलों के लिये काम करनेवाली जो संस्थाएँ ऐसा अनुदान पा रही हैं वे हैं � भारतीय आदिम जाति सेवक संघ, हैदराबाद; दि इंडियन कौंसिल ऑव चाइल्ड वेलफेयर, दिल्ली; रामकृष्ण मिशन, शिलांग; तथा सर्वेट्स ऑव इंडिया सोसायटी, पूना।
(च) अनुसूचित कबीलों के लिये अन्य एहतियाती काररवाइयाँ
१. संविधान की पाँचवी अनुसूची � इसके अंतर्गत राष्ट्रपति को किसी भी ऐसे पिछड़े अविकसित क्षेत्र को, जहाँ अनुसूचित कबीलों की एक अच्छी खासी आबादी रहती हो, अनुसूचित क्षेत्र घोषित कर देने का अधिकार है। इन आठ राज्यों में ऐसे क्षेत्रों की घोषणा की गई है�आंध्रप्रदेश, बिहार, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब और राजस्थान। यद्यपि ये अनुसूचित क्षेत्र भी उस राज्य के ही अंग रूप में प्रशासित होते हैं, जिसमें वे स्थित हैं, तथापि इस अनुच्छेद के अनुसार राज्यपाल को यह अधिकार दिया गया है कि वे (क) केंद्रीय अथवा राज्य सरकार के किसी कानून को वहाँ न लागू होने दें या संशोधित रूप में लागू करने का आदेश दें तथा (ख) इन क्षेत्रों में शांति एवं अच्छे प्रशासन के लिए उपनियम तैयार करें, अन्य बातों के साथ साथ इन उद्देश्यों के लिये सचेष्ट हों�
(१) अनुसूचित कबीलों द्वारा अथवा उनके सदस्यों में भूमि हस्तांतरण को रोकने या प्रतिबंधित करने के लिए।
(२) अनुसूचित कबीलों में भूमि के बंटन का नियमन करने के लिए।
(३) अनुसूचित कबीलों के सदस्यों को ऋण देनेवाले लोगों की सूदखोरी को नियंत्रण करने के लिए।
इस पाँचवें अनुच्छेद में यह भी गुंजायश रखी गई है कि प्रत्येक अनुसूचित क्षेत्रोंवाले राज्य अथवा यदि राष्ट्रपति का निर्देश हो तो उन राज्यों में भी जहाँ अनुसूचित क्षेत्र तो नहीं किंतु अनुसूचित कबीले हैं, एक कबाइली सलाहकार समिति की स्थापना की जाए जिसका कर्तव्य यह हो कि वह उस राज्य के अनुसूचित कबीलों के प्रतिनिधि ही रहें। यदि किसी राज्य में ऐसी कबाइली सलाहकार समिति में विधानसभा में स्थित अनुसूचित कबीलों के प्रतिनिधियों की संख्या उनके द्वारा पूरी की जानेवाली निर्धारित जगहों से कम पड़ती हो तो उन शेष जगहों पर केवल अनुसूचित जातियों के ही सदस्य रखे जाने चाहिए। अब तक ऐसी कबाइली सलाहकार समितियाँ आंध्रप्रदेश, गुजरात, बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब और राजस्थान में कायम हुई हैं। इन सब राज्यों में अनुसूचित कबीले तो हैं किंतु अनुसूचित क्षेत्र नहीं हैं।
पाँचवें अनुच्छेद (अनुसूची) की एक अन्य व्यवस्था या सुविधा के आधार पर केंद्रीय सरकार का कार्यकारी अधिकार इतना बढ़ा दिया गया है कि वह राज्यों को अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में निर्देश दे सके। अभी तक इस प्रकार का निर्देश देने का कोई अवसर नहीं आया है।
(२) संविधान का छठा अनुच्छेद�संविधान का छठा अनुच्छेद असम के कबाइली क्षेत्रों के प्रशासन से संबद्ध है। ये क्षेत्र इन विभागों में बँटे हुए हैं :
(क) स्वायत्त अधिशासी जिले जैसे संयुक्त खासी जैंतिया पहाड़ियों का जिला, गारो पहाड़ियों का जिला, मिजो जिला, उत्तरी कछार पहाड़ियों का जिला, मिकिर पहाडियाँ ; तथा
(ख) उत्तर पूर्वी सीमा एजेंसी (नेफा) जिसमें उत्तर पूर्वी सीमा का क्षेत्र (बलिपास सीमा क्षेत्र समेत) तिरप-सीमा भूभाग, अबोर पहाड़ियों का जिला, मिस्सी पहाड़ियों का जिला।
सभी ऐसे स्वायत्त जिलों के लिये अनुच्छेद में जिला समितियाँ तथा स्वायत्त क्षेत्रों के लिये क्षेत्रीय समितियाँ स्थापित करने की व्यवस्था रखी गई है। इन समितियों में २४ से अधिक सदस्य नहीं होंगे जिनमें कम से कम तीन चौथाई सदस्य बालिग मतदान के आधार पर चुने जाएँगे। असम के सभी स्वायत्त जिलों में ऐसी जिला समितियाँ कायम हैं और एक क्षेत्रीय समिति भी मिज़ों जिले के पावी लखेर क्षेत्र में गठित हुई है।
इन जिला एवं क्षेत्रीय समितियों के अधिकार ये हैं :
(१) कबाइली क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर इतर व्यक्तियों द्वारा किए जानेवाले महाजनी एवं व्यापार के कार्य के नियमन निंयत्रण के लिये नियम बनाना।
शासी जिलों एवं स्वशासी क्षेत्रों में न्याय की व्यवस्था करना।
(२) शासी जिलों एवं स्वशासी क्षेत्रों में न्याय की व्यवस्था करना।
(३) प्राइमरी स्कूलों, दवाखानों, बाजारों, काजीहाउसों, नौघाटों, मत्स्य क्षेत्रों, सड़कों एवं नहरों की स्थापना, निर्माण एवं प्रबंध करना तथा प्राइमरी स्कूलों में प्रारंभिक शिक्षा के लिये उपयुक्त भाषा एवं पढ़ाने के लिये उपयुक्त भाषा को व्यवस्थित करना और,
(४) लगानों का निर्धारण एवं संग्रह तथा निम्नलिखित कर लगाने और वसूल करने का काम:
(क) पेशों, व्यापारों व्यवसायों एवं नौकरियों पर
(ख) जानवरों, सवारियों तथा किश्तियों पर
(ग) बिक्री के लिये बाजार मे लाई गई चीजों तथा नौघाटों पर आनेवाले सामान एवं मुसाफिरों पर; तथा
(घ) स्कूलों, दवाखानों तथा सड़कों की रखरखाव के लिये।
इन अधिकारों में निम्नांकित विषयों के संबंध में कानून बनाने के अधिकार भी सम्मिलित हैं :
(क) उन भूमियों का, जो संरक्षित वन के रूप में नहीं हैं,
कृषि या पशुचारण अथवा आवासीय या कृषि को अन्य उद्देश्यों, यथा किसी शहर या गाँव के निवासियों के लाभार्थ नियतन, अधिकरण, उपयोग अथवा पृथक्करण।
(ख) ऐसे किसी वन का प्रबंधकार्य जो संरक्षित वन नहीं है।
(ग) कृषिकार्य के लिये किसी नहर अथवा जलमार्ग का उपयोग।
(घ) 'झूम' प्रणाली अथवा परिवर्ती कृषि के अन्य प्रकार का नियमन।
(ड) गाँव या कस्बा समितियों अथवा सभाओं की स्थापना तथा उनके अधिकारों का निर्धारण।
(च) गाँव अथवा श्हारसंबंधी किसी अन्य मामले यथा देहाती या शहरी पुलिस और सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के सम्बंध में।
(छ) मुखियों या प्रधानों की नियुक्ति या उत्तराधिकार।
(ज) संपत्ति की विरासत
(झ) विवाह और
(ञ) सामाजिक रीतिरिवाज
अनुच्छेद में इस बात का भी उपबंध है कि जिन विषयों के सम्बंध में कानून बनाने का अधिकार जिला सभाओं या क्षेत्रीय सभाओं को है, उनके सम्बंध में राज्य विधानमंडल का कोई अधिनियम कानून नहीं बना सकता तथा राज्य विधानमंडल का कोई भी अधिनियम जो कच्ची शराब की खपत को रोकने अथवा प्रतिबंधित करने के विषय में है, किसी भी स्वशासी जिले या क्षेत्र में, वहाँ की क्षेत्रीय अथवा जिला सभाओं की सहमति के बिना लागू नहीं किया जा सकता। असम के राज्यपाल को भी इस बात का अधिकार है कि वह संसद द्वारा या असम विधानसभा द्वारा पारित किसी अधिनियम को, जिनका उल्लेख उपर्युक्त उपबंधों में न हुआ हो, नहीं है, सार्वजनिक सूचना द्वारा लागू होने से रोक दे अथवा कुछ संशोधनों के साथ ही किसी स्वायत्त जिले अथवा स्वायत्त क्षेत्र में लागू होने दे।
अनुच्छेद असम के राज्यपाल को अधिकार भी देता है कि वह किसी स्वायत्त क्षेत्र के प्रशासन के संबंध में या उनके द्वारा उल्लिखित किसी विशिष्ट मामले की जाँच करने और तत्संबंधी विवरण देने के लिये किसी भी समय एक आयोग की नियुक्ति कर सके।
राष्ट्रपति की पूर्वानुमति लेकर असम का राज्यपाल, एक नोटिस जारी करके उपर्युक्त सभी अथवा कुछ उपबंधो को 'नेफा' के किसी भी क्षेत्र में लागू कर सकता है। जब तक कोई नोटिस नहीं निकाली जाती 'नेफा' क्षेत्र का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल के माध्यम से होता रहेगा। अभी तक ऐसी कोई नोटिस नहीं निकाली गई है।
(छ) अनुसूचित कबीलों के कल्याणार्थ हुई प्रगति के मूल्यांकन की व्यवस्था �
संविधान की ३३९ धारा राष्ट्रपति को इस बात का अधिकार देती है कि वह अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन तथा अनुसूचित कबीलों के कल्याण कार्यो के संबंध में रिपोट्र देने के लिये आयोग की नियुक्ति करे। ऐसा एक आयोग श्री यू. एन. ढेबर की अध्यक्षता में नियुक्त किया गया था जिसने अत्यंत उपयोगी प्रतिवेदन प्रस्तुत किया है। उक्त प्रतिवेदन में समझाई गई बहुत सी बातों को सरकार ने कार्यान्वित करने की दृष्टि से स्वीकार कर लिया है।
राष्ट्रपति को संविधान की ३३८वीं धारा के अंतर्गत यह अधिकार दिया गया है कि अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित कबीलों के लिए संविधान में जो रक्षात्मक उपबंध रखे गए हैं, उनके सम्बंध की सारी बातों को जाँच करने के लिये विशेष अधिकारी की नियुक्ति करे जो हर उपयुक्त अवधि के बाद इस बात का प्रतिवेदन प्रस्तुत करे कि उक्त सुरक्षात्मक उपाय ठीक तरह से काम दे रहे हैं या नहीं। नवंबर, १९५० में पहली बार ऐसा अधिकारी नियुक्त किया गया, जिसे अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित कबीलों के आयुक्त की संज्ञा दी गई। तब से इस आयुक्त द्वारा राष्ट्रपति के समक्ष १२ ऐसे वार्षिक विवरण प्रस्तुत किए जा चुके हैं।
सामान्य बातें � अनुसूचित जातियों की मुख्य समस्या है, उनके प्रति अस्पृश्यता के व्यवहार से उत्पन्न बाधाओं के कारण उनका शैक्षणिक, सामाजिक तथा आर्थिक मामलों में पिछड़ापन। जैसा ऊपर कहा जा चुका है, यह कुरीति संविधान द्वारा निषिद्ध हो चुकी है तथा अस्पृश्यता के व्यवहार करनेवाले लोगों को दंडित करने का कानून भी बन चुका है। यह कुसंस्कार अब तेजी के साथ गायब होता जा रहा है।
जहाँ तक अनुसूचित जनजातियों (कबीलों) का सवाल है, समस्या बड़ी जटिल है। भारतीय कबीलों के लोग सामाजिक, आर्थिक दशा का ऐसा विस्तार उपस्थित करते हैं, जिसमें प्राय: एकाकी कबाइली जीवन से लेकर विभिन्न मात्रा तक ये आधुनिक स्वरूप, यहाँ तक कि सामान्य जनसमुदाय में पूर्ण स्वायत्तीकरण की अवस्था तक शामिल है। उनके कल्याण के लिये अपनाए गए कार्यक्रमों में इस बात की पूरी सतर्कता बरती जाती है कि उनका विकास उनकी स्वतंत्र मेधा के आधार पर हो, और उनपर बाहरी तौर से कुछ भी लादा न जाए। एक लंबे समय से कुछ अवांछनीय व्यक्तियों द्वारा अपनी स्वार्थसिद्धि के लिये उनका उपयोग किया जाता रहा है, अत: उनसे सौहार्द एवं मैत्रीपूर्ण संपर्कं भी अपेक्षित है। उनके कल्याण के लिये बनाई गई परियोजनाएँ इन्हीं नीतियों के आधार पर प्रस्तुत की गई हैं। (विमल चंद्र)