भामा, होमी जहाँगीर (१९०९-१९६६) जगत्प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी और परमाणु ऊर्जाविद् का जन्म १९०९ ई. में बंबई के एक संभ्रांत पारसी परिवार में हुआ था। इनकी प्राथमिक शिक्षा बंबई में ही हुई, जहाँ से ये इंग्लैंड गए और कैंब्रिज विश्वविद्यालय से गणित में ट्राइपॉस परीक्षा उत्तीर्ण की। १९३२ ई. में इन्हें पाउज़ बॉल ट्रैवलिंग स्टूडेंटशिप प्राप्त हुआ एवं रोम के सुप्रसिद्ध प्रोफेसर फर्मी और युट्रेच (Utretch) के प्रोफेसर क्रैमर (Crammar) के अधीन इन्होंने अध्ययन संपन्न किया। १९४२ ई. में उन्होंने ऐडैम ऐवार्ड प्राप्त किया। बैंगलूरु इंडियन इंस्टिट्यूट ऑव साइंस में अंतरिक्ष किरण अनुसंधन विभाग में परमाणु केंद्रीय भौतिकी के प्रोफेसर नियुक्त हुए। कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अंतरिक्ष किरण पर इन्होंने व्याख्यानमाला दी। ३२ वर्ष की अल्पावस्था में ही सन् १९४५ ई. में ये रॉयल सोसायटी के फेलो (F.R.S.) नियुक्त हुए। १९५५ ई. में जेनेवा में होनेवाले शांति उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के सम्मेलन में अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। भारत सरकार द्वारा भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त होकर, जीवन पर्यंत उस पद पर रहे। फंडामेंटल सोसायटी के टाटा इंस्टिट्यूट के निर्देशक नियुक्त हुए। अनेक विश्वविद्यालयों, जैसे पटना, लखनऊ, बनारस, आगरा आदि, ने इन्हें डी. एस-सी. की सम्मानित उपाधि से विभूषित किया। भारत के परमाणु केंद्रीय ऊर्जा के विकास में इनका बहुत बड़ा हाथ रहा है। इनके अनुसार ये कुछ ही मास में परमाणु बम का निर्माण कर सकते थे। संसार के प्रसिद्ध भौतिकियों में आपका प्रमुख स्थान था और आपके ही कारण संसार के परमाणु ऊर्जा के मानचित्र पर भारत को स्थान मिल सका है। कैनाडा से प्राप्त रियेक्टर को स्थापित कर उसका संचालन करके समस्थानिकों के प्रस्तुत करने मे आपको सफलता मिली है। आपने सैकड़ों युवक वैज्ञानिकों को परमाणु ऊर्जा संस्थान की स्थापना करके परमाणु ऊर्जा के विकास में प्रशिक्षित किया है। आपके प्रयत्नों के फलस्वरूप भारत के अनेक स्थानों, जैसे बिहार, राजस्थान मद्रास एवं केरल आदि राज्यों में यूरेनियम तत्व की उपस्थिति का पता लगा है और वहाँ से यूरेनियम प्राप्त करने के उपाय किए जा रहे हैं। (फूलदेव सहाय वर्मा)