भाप पानी की गैसीय अवस्था या जलवाष्प को कहते हैं। शुष्क भाप अदृश्य होती है, परंतु जब भाप में जल में छोटी छोटी बूँदें मिली होती हैं तब उसका रंग सफेद होता है, जैसा रेल के इंजन से निकलती भाप में स्पष्ट दिखाई देता है।
कल्पना कीजिए कि एक बरतन में कुछ पानी भरकर गरम किया जा रहा है। पानी गरम करने से इसका आयतन थोड़ा बढ़ता है। साधारण दाब पर पानी का महत्तम ताप १००० सें. तक पहुँचता है।
यदि इसे और अधिक गरम किया जाए तो जल की मात्रा धीरे धीरे वाष्प में परिवर्तित होने लगती है। भाप का आयतन बराबर मात्रा के जल के आयतन की अपेक्षा बहुत अधिक होता है। जब भाप में जल की बूँदे उपस्थित होती हैं, तो इसे आर्द्र भाप कहते हैं। यदि जल की बूँदों का सर्वथा अभाव हो तो यह शुष्क भाप कहलाती है। जिस ताप पर जल उबलता है, वह जल का क्वथनांक होता है।
मानक दाब पर जल क्वथनांक १००० सें. है। पर दाब के घटने बढ़ने से क्वथनांक भी घटता बढ़ता है। पहाड़ों पर वायुमंडल की दाब कम होती है। अत: वहाँ पानी निम्न ताप पर उबलने लगता है। प्रत्येक निश्चित दाब के लिए क्वथन एक निश्चित ताप पर होता है।
जल को भाप में बदलने के लिए जो ऊष्मा आवश्यक होती है उसे भाप की गुप्त ऊष्मा (Latent heat) कहते हैं। एक ग्राम जल को, जिसका ताप १००० सें. है, पूर्णतया वाष्पित करने में ५३६ कैलोरी ऊष्मा का वह मान है जो एक ग्राम जल के ताप को १० सें. बढ़ाने के लिए आवश्यक होता है।
भाप के गुण ¾ जब भापइंजन में भाप का बहुत अधिक व्यावहारिक उपयोग होने लगा, तब भी इसके गुणों का सैद्धांतिक अध्ययन नहीं हुआ था। अतएव इसके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं प्राप्त थी। भाप का अध्ययन १९वीं सदी में जॉन डाल्टन, जेम्स वाट, रेनो इत्यादि ने किया था। भाप के गुणों के बारे में आधुनिकतम समीक्षा जोसेफ एच. कीनान (Joseph H. Keenan) की मानी जाती है, जो १९३६ ई. में प्रकाशित हुई थी।
भाप के गुणों का अध्ययन करने के लिए पूर्ण ऊष्मा (enthalpy) का उपयोग किया जाता है। पूर्ण ऊष्मा की मात्रा निम्नलिखित समीकरण से प्राप्त होती है :
h = u + Apv
यहाँ u आंतरिक ऊर्जा, p दाब, v आयतन और A श्गुणांक है, जो कार्य के एकक को ऊष्मा के एकक में परिणत करता है। विभिन्न दाब और ताप पर पूर्ण ऊष्मा का मान इसका गुण व्यक्त करता है। कीनान की समीक्षा में विभिन्न दाब और ताप पर पूर्ण ऊष्मा का मान सारणी के रूप में दिया है।
यदि गरम वाष्प को ठंडा किया जाए,तो इसका ताप घटते हुए १००० सें. तक आता है और उसके बाद द्रवण आरंभ हो जाता है। द्रवण के लिए छोटे छोटे कणों की आवश्यकता होती है, जिनपर वाष्प जमता है। यदि वाष्प इस प्रकार के कणों से सर्वथा रहित हो उसे शीघ्रता से ठंडा किया जाए, तो वाष्प का ताप १००० सें. से भी नीचे आ सकता है। इस अवस्था को अतिशीतित भाप (Supercooled steam) कहते हैं। यह अवस्था अस्थायी होती है और शीघ्र ही वाष्प द्रवित होने लगती है।
वाष्प के उपयोग ¾ वाष्पश् को यांत्रिक ऊर्जा के लिए उपयोग करने का प्रथम श्रेय ऐलेग्जैंड्रिया के 'हीरो' (Hero) नामक व्यक्ति का है। इन्होंने भाप की सहायता से छोटे खिलौने चलाने की व्यवस्था की और छोटे मोटे आश्चर्य दिखाए। बड़े पैमाने पर वाष्प का उपयोग १९ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के आरंभ मेंहुआ था। जेम्स वाट ने अपने आविष्कार से इसका उपयोग बहुत बढ़ाया। भाप का अधिकांश उपयोग ऊष्मा को यांत्रिक ऊर्जा के रूप में परिवर्तित करने में होता है। कोयले इत्यादि को जलाकर जो ऊष्मा प्राप्त होती है, उससे जल का क्वथन होता है। इस भाप को ऊँचे ताप और दाब पर करके उससे इंजन चलाए जाते हैं। इंजन आदि के लिए अतितप्त भाप का उपयोग अधिक उपयुक्त होता है, क्योंकि इससे इंजन की दक्षता अधिक होती है। इसके अतिरिक्त भाप अतितप्त होने से इंजन के पुर्जों का अपरदन (erosion) कम होता है तथा ऊष्मा की हानि भी कम होती है।
इंजन के अतिरिक्त भाप का बहुत अधिक उपयोग ऊष्मा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए भी होता है। चूँकि एक ग्राम भाप में ५३६ कैलोरी ऊष्मा गुप्त ऊष्मा के रूप में प्राप्त होती है, अत: भाप के द्रवण से बहुत अधिक ऊर्जा मुक्त होती है। ठंडे प्रदेशों में मकान इत्यादि को गरम करने के लिए भाप का उपयोग होता है। मकान के निचले भाग में पानी गरम किया जाता है, जिससे भाप उत्पन्न होती है। यह भाप नलिकाओं द्वारा अन्य कमरों में पहुँचाई जाती है, जहाँ धातु के विकिरक (radiator) होते हैं। ये गरम हो जाते हैं और कमरों को गरम रखते हैं।
इसके अतिरिक्त भारत में प्राकृतिक चिकित्सा में, तथा फिनलैंड, स्वीडन इत्यादि देशों में सर्वसाधारण द्वारा, वाष्पस्नान का बहुत अधिक उपयोग होता है। इसके लिए व्यक्ति एक ऐसे कक्ष में बैठता है जिसमें गरम वाष्प प्रवेश कराया जाता है। इससे पसीना छूटता है। अत: रोमछिद्रों इत्यादि की सफाई हो जाती है। (ध. कि. गु.)