भातखंडे, विष्णु नारायण भारतीय संगीत के लक्षण और लक्ष्य में अनुसंधान और स्तरीकरण के अग्रदूत। जन्म ¾ बंबई प्रांतांतर्गत बालकेश्वर में, १० अगस्त (गोकुलाष्टमी), सन् १८६०; मृत्यु¾बंबई में, १९ सितंबर (गणेशचतुर्थी) १८३६; सन् १८८३ में बी.ए.; १८९० में एल. एल.बी. पेशा¾वकालत। एकाधिक संगीत गुरुओं से शिक्षा ग्रहण।

अनुसंधान कार्य ¾ देश भर के राजकीय, देशी राज्यांतर्गत, संस्थागत, मठ-मंदिर-गत और व्यक्तिगत संग्रहालयों में हस्तलिखित संगीत ग्रंथों की खोज और उनके नामों का अपने ग्रंथों में प्रकाशन, देश के अनेक हिंदू मुस्लिम गायक वादकों से लक्ष्य-लक्षण-चर्चा-पूर्वक सारोद्धार, और विपुलसंख्यक गेय पदों का संगीत लिपि मे संग्रह, कर्णाटकीय मेलपद्धति के आदर्शानुसार राग वर्गीकरण की दश थाट् पद्धति का निर्धारण। इन सब कार्यो के निमित्त भारत के सभी प्रदेशों का व्यापक पर्यटन किया। संस्कृत एवं उर्दू, फ़ारसी, संगीत ग्रंथों का तत्तद्भाषाविदों की सहायता से अध्ययन और हिंदी अंग्रेजी ग्रंथों का भी परिशीलनकर। अनेक रागों के लक्षणगीत, स्वरमालिका आदि की रचना और तत्कालीन विभिन्न प्रयत्नों के आधार पर सरलतानुरोध से संगीत-लिपि-पद्धति का स्तरीकरण किया।

संगीत-शिक्षा-संस्थाओं से संबंध ¾ मैरिस कॉलेज (वर्तमान भातखंडे संगीत विद्यापीठ, लखनऊ) माधव संगीत विद्यालय, ग्वालियर, एवं संगीत महाविद्यालय, बड़ोदा, की स्थापना अथवा उन्नति में प्रेरक सहयोगी रहे।

संगीतपरिषदों का आयोजन ¾ १९१६ में बड़ोदा में देश भर के संगीतज्ञों की विशाल परिषद् का आयोजन किया। तदनंतर दिल्ली, बनारस तथा लखनऊ में संगीत परिषदें आयोजित हुई।

प्रकाशित ग्रंथ (क) संस्कृत ¾ स्वलिखित मौलिक ग्रंथ ¾ (१) लक्ष्यसंगीतम् १९१० में 'चतुरपंडित' उपनाम से प्रकाशित, द्वितीय संस्करण १९३४ में वास्तविक नाम से प्रकाशित। (अपने मराठी ग्रंथों में इसके विपुल उद्धरण अन्यपुरुष में ही दिए हैं)। (२) अभिनवरागमंजरी। आपकी प्रेरणा से संपादित एवं प्रकाशित लघु ग्रंथ (जिनके वे संस्करण आज अप्राप्य हैं। अधिकांश का प्रकाशनकाल १९१४-२० तक)¾पुंडरीक बिट्ठल कृत (१) रागमाला (२) रागमंजरी (३) सद्रागचंद्रोदय; व्यंकटमखीकृत (४) चतुर्दंडीप्रकाशिका; (५) रागलक्षणम; रामामात्यकृत (६) स्वरमेलकलानिधि : (मराठी टिप्पणी सहित); नारद (?) कृत (७) चत्वारिंशच्छतरागनिरूपणम्; (८) संगीतसारामृतोद्धार: (तुलजाधिप के संगीतसारमृत का संक्षेप); हृदयनारायण देव कृत (९) हृदयकौतुकम् (१०) हृदयप्रकाश:; भावभट्ट-कृत (११) अनूपसंगीतरत्नाकर: (१२) अनूपसंगीतांकुश: (१३) अनूपसंगीतविलास:; अहोबलकृत (१४) संगीतपारिजात:; (१५) रागविबोध: (दोनों मराठी टीकासहित); लोचनकृत (१६) रागतरंगिणी; अप्प तुलसी कृत (१७) रागकल्पद्रुमांकुर:। (इस तालिका में किंचित् अपूर्णता संभव है)।

(ख) मराठी ¾ (१) हिंदुस्तानी संगीतपद्धति (स्वकृत 'लक्ष्य संगीतम्' का प्रश्नोत्तर शैली में परोक्ष रूप से क्रमानुरोध निरपेक्ष भाष्य)¾ग्रंथमाला में चार भाग; प्रथम तीन सन् १९१०-१४ में, एवं चौथा आपके देहांत से कुछ पूर्व प्रकाशित। कुल पृष्ठसंख्या प्राय: २०००। मुख्य प्रतिपाद्य विषय रागविवरण, प्रसंगवशात् अन्य विषयों का यत्र तत्र प्रकीर्ण उल्लेख (२) क्रमिकपुस्तकमालिका¾ (गेय पदों का स्थूल रूपरेखात्मक संगीत-लिपि-समन्वित बृहत् संकलन)¾ग्रंथमाला में चार खंडों के एकाधिक संस्करण जीवनकाल में एवं ५वाँ ६ठा देहांत के बाद १९३७ में प्रकाशित। केवल रागविवरण की भाषा मराठी, संकलित गेय पदों की भाषा हिंदी, राजस्थानी, पंजाबी आदि।

(ग) अंग्रेजी (१) A comparative study of some of the leading music systems of the 15th-18th centuries¾ प्राय: २० मध्युगीन लघुग्रंथों का समीक्षात्मक विवरण (२) A short historical survey of the music of upper India¾ बड़ोदा संगीत परिषद् में १९१६ में प्रदत्त भाषण। (दोनों मराठी ग्रंथमालाओं और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद गत १० वर्षो में प्रकाशित हुआ है)।

प्रमुख सहयोगी ¾ प्रकाशन में भा. सी. सुकथंकर; संपादन में द. के. जोशी, श्रीकृष्ण ना. रातनजंकर; शास्त्रानुसंधान में अप्पा तुलसी; संकलन में रामपुर के नवाब और वजीर खाँ, जयपुर के मोहम्मदअली खाँ, लखनऊ के नवाब अली खाँ।

विशेषोल्लेख ¾ संगीतशास्त्र में अनुसंधानार्थ प्राचीन और मध्ययुगीन संस्कृत ग्रंथों के अध्ययन की अनिवार्यता दृढ़ स्वर से उद्घोषित की, एवं भावी अनुसंधान के लिए समस्याओं की तालिकाएँ प्रस्तुत कीं। (प्रेमलता शर्मा)