भाजन गणित में वह क्रिया है जिससे शून्य से भिन्न दो संख्याओं (गुणनखंडों) का गुणनफल और इन संख्याओं में से एक के दिए रहने पर दूसरी ज्ञात की जाती है। दिए हुए गुणनफल को भाज्य, दी हुई संख्या को भाजक और अभीष्ट संख्या को भागफल कहते हैं। स्पष्ट है कि यदि भाज्य य और भाजक क धन पूर्ण संख्याएँ हैं, तो भागफल ल तभी पूर्ण संख्या होगा जब य, क का समापवर्तक हो, किंतु यदि य दो क्रमागत समापवर्त्यो क र और क(र+१) के बीच में है तो र को भागफल और य-कर को शेष कहते हैं। इस भाजन क्रिया को साशेष भाजन कहते हैं।

बीजगणित में भी भाजन की अद्वितीय क्रिया हो सकती है। यह तब जब भाजक और भाज्य केवल एक चर य के बहुपद हों और यह समझा हुआ हो कि शेष को भाजक से कम घात का बहुपद होना चाहिए (देखें अंकगणित और बीजगणित)

जब भाजक द्विपद य-च के रूप का हो, तो भाजनक्रिया संक्षिप्त की जा सकती है। उदाहरणत: मान ले भाज्य कय+ खय+गय+ध है, तो इस संक्षिप्त विधि के अनुसार क्रिया को इस प्रकार प्रकट किया जा सकता है :

क ख ग घ च

जहाँ छ =+क च, ज =+छ ज, झ =+जच। भागफल कय + छय+ द्य और शेष झ है।

झ के मान में पहले ज, फिर छ के मान रखने से विदित होगा कि झ = कच + खच + गच + घ, अर्थात् झ बहुपद का वह मान है, जब य = च। इसलिए यह संक्षिप्त विधि के उपयोग से चर का मान दिए रहने पर बहुपद का मान सुगमता से ज्ञात किया जा सकता है। इस विभाजन से हमें निम्न प्रमेय मिलता है :

शेष प्रमेय ¾ यदि किसी बहुपद फ (य) º कय + खयन-१... + स में बहुपद य-च से भाग दिया जाए तो शेष कच +खचन-१ +...+स बचता है जो फ (च) है अर्थात् बहुपद में य के स्थान में च रखने से प्राप्त होता है। इस प्रमेय का उपयोग गुणनखंड ज्ञात करने में होता है (देखें गुणनखंड)। (हरिचंद्र गुप्त.)