भागीरथी १. हिमालय में गंगोत्री से निकली उस धारा को भागीरथी कहते हैं जो आगे बढ़ने पर अलकनंदा आदि सरिताओं से मिलने के बाद गंगा के नाम से पुकारी जाती है।
२. गंगा नदी जब पश्चिमी बंगाल में पहुँचती है तब वह कई धाराओं में बँट जाती है। इन्हीं में से एक धारा का नाम भागीरथी है। यह धारा आगे चलकर कलकत्ते के समीप हुगली नदी के नाम से पुकारी जाती है। भागीरथी मुशिंदाबाद में २४० ३५¢ उ. अ. तथा ८८० ५५¢ पू. दे. पर गंगा से अलग होती है। छोटा नागपुर से आकर इसके दाहिने तट पर अनेक नदियाँ इसमें मिलती हैं। मुर्शिदाबाद से बह कर यह बर्द्धमान और नदिया जिलों की सीमा बनाती है। जलंगी और दामोदर नदियों से मिलने के बाद यह हुगली नदी कहलाने लगती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह राजा सगर के ६०,००० पुत्रों का, जो ऋषि के शाप से जलकर राख हो गए थे, उद्धार करने के लिए राजा भागीरथ द्वारा इस पृथ्वी पर लाई गई थी। पूर्व काल में गौड़ों पंडुवों, राजमहल तथा नवद्वीप आदि के राजाओं की राजधानियाँ इसी के किनारे थीं। आज भी मुशिंदाबाद, बरहमपुर, जंगीपुर, कतवा और नवद्वीप आदि नगर इसके तट पर बसे हुए हें। (सुरेशचंद्र शर्मा)