भरुच (भरुकच्छ) १. जिला, स्थिति : २०० २५¢ से २२० १५¢ उ. अ. तथा ७२० ३१¢ से ७३० १०¢ पू. दे.। भारत के गुजरात राज्य का जिला है। इसके पश्चिम में खंभात की खाड़ी, दक्षिण में सूरत, पूर्व में धुलिया तथा उत्तर में पंचमहल एवं खेड़ा जिले स्थित हैं। इसका क्षेत्रफल २,९८६ वर्ग मील है। इसी जिले में आकर नर्मदा नदी सागर में गिरती है। माही एवं कीम अन्य नदियाँ भी बहती हैं। सागर की तरफ ५४ मील लंबा एवं २० से ४० मील चौड़ा जलोढ़ मिट्टी का एक ढलुवाँ मैदान स्थित है। इस मैदान की मिट्टी काली एवं उपजाऊ है, कहीं कहीं भूरी मिट्टी भी मिलती है जिसमें बड़ी मात्रा में कपास के अतिरिक्त तिल, ज्वार, तुर, गेहूँ, धान, दलहन, बाजरा, एवं तंबाकू उगाए जाते हैं। जलवायु स्वास्थयप्रद है। दिसंबर का ताप लगभग ८० सें. तथा मई का ताप लगभग ४४० सें. रहता है। वर्षा का वार्षिक औसत ३५ इंच है। सूती कपड़ा बुनना प्रमुख उद्योग है।
२. नगर, स्थिति: २१० ४२¢ उ. अ. तथा ७२० ५९¢ पू. दे। भरुच जिले में, नर्मदा नदी के किनारे, इसके मुहाने से लगभग ३० मील ऊपर स्थित नगर है। यहाँ सूती कपड़े के उद्योग, आटा मिल तथा हस्तकला उद्योग स्थित हैं। नगर में पुरानी किलेबंदी के अवशेष मिलते हैं१ यहाँ भृगु ऋषि का एक मंदिर है। (रा. सं. ख.)
प्राचीन इतिहास¾आधुनिक भडौंच या भरुच का प्राचीन नाम भरुकच्छ था। यह बौद्धकालीन भारत का एक अति प्रसिद्ध पत्तन था। जातक ग्रंथों में ई. पू. छठी शती के वाणिज्य एंव वणिक पथों के अनेक उल्लेख मिलते हैं। उनके अध्ययन से पता चलता है कि उस समय भारत का वाणिज्य संबंध संसार के अनेक बाहरी देशों से था तथा देश के भीतर विभिन्न प्रदेशों में प्रचुर मात्रा में व्यापार होता था।
जातक ग्रंथों में कई प्रशस्त वणिक्पथों का उल्लेख है। सावत्थी (श्रावस्ती) से पतिगठान (प्रतिष्ठान-हैदराबाद राज्य का पैठन) तक, द्वितीय सावत्थी से राजगह (राजगृह) तक तथा तृतीय सावत्थी से तक्षशिला तक जाता था। चतुर्थ वणिक्पथ काशी को पश्चिमी समुद्रतट के पत्तनों से संबद्ध करता था। इसी वणिक्पथ पर भरुकच्छ स्थित था। यहाँ से व्यापारी बाबेरु (आधुनिक बैबिलोन) को जाते थे। इन वणिक्पथों पर सार्थवाह चलते थे। काशी से भरुकच्छ को चलनेवाले सार्थवाहों में सहस्र बैलगाड़ियों के एक साथ चलने का उल्लेख जातकों में मिलता है। इनके रक्षार्थ सशस्त्र रक्षक होते थे। (रत्नाकर उपाध्याय)