भट्ट, गदाधर तेलंग देश के हुनमानपुर से यह उत्तर आए। जीव गोस्वामी ने इनका एक पद 'श्याम रंग रँगी' सुनकर इन्हें वृंदावन बुलाया और सं. १९०० के लगभग यह वृंदावन पहुंचे। इन्होंने रघुनाथ भट्ट से दीक्षा ली और उन्हीं के समान श्रीमद्भागवत की सरस कथा सबको सुनाने लगे। इन्होंने मदनमोहन का प्रतिष्ठापन कर सेवा आरंभ की। यह मंदिर वर्तमान है और इनके वंशज अब तक सेवा करते हैं। भट्ट जी की रचना 'मोहित वाणी' में संकलित तथा प्रकाशित हो चुकी है। इनका समय सं. १५६० से सं. १६३० के मध्य है। ((स्व.) ब्रजरत्नदास)