भटनागर, सर शांतिस्वरूप, (सन् १८९४-१९५५) भारतीय वैज्ञानिक का जन्म पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान) के जिला शाहपुर के भेड़ा नामक स्थान में हुआ था, जहाँ तीन वर्ष पूर्व एक अन्य प्रसिद्ध वैज्ञानिक, डा. बीरबल साहनी, ने जन्म लिया था। इनके पिता, लाला परमेश्वरीसहाय, स्कूल मे अध्यापक थे, और जब शांतिस्वरूप केवल आठ मास के थे, तब उनका स्वर्गवास हो गया। इनके नाना, मुंशी प्यारेलाल ने आठ, नौ साल की उम्र तक इन्हें पाला और पढ़ाया, पर बाद में इनकी शिक्षा का भार इनके पिता के मित्र, लाला रघुनाथसहाय ने अपने ऊपर ले लिया।

लाहौर के दयालसिंह हाई स्कूल से प्रथम श्रेणी में ऐंट्रेंस की परीक्षा पास कर दयालसिंह कालेज में भरती होने के बाद ये प्रोफेसर रुचिराम साहनी तथा डा. जगदीशचंद्र बसु के संपर्क में आए, जिससे इनका विज्ञानप्रेम प्रगाढ़ हो गया। एम. एस-सी. परीक्षा में उत्तीर्ण होने के पश्चात् ये दयालसिंह कालेज में डिमांस्ट्रेटर के पद पर नियुक्त हुए, किंतु सन् १९१९ में इसी कालेज से छात्रवृत्ति पा तथा लंदन युनिवर्सिटी में भरती होकर इन्होंने सर विलियम रैमजे इंस्टिट्यूट में अनुसंधान कार्य आरंभ किया। यहाँ आपको एक और छात्रवृत्ति मिली जिससे छुट्टियों में जर्मनी के कैसर विल्हेल्म इंस्टिट्यूट तथा पैरिस की सारबान नामक वैज्ञानिक संस्था में भी आप अध्ययन कर सके। सन् १९२१ में लंदन युनिवर्सिटी से आपको डी.एस.सी. की उपाधि मिली।

भारत में वापस आने पर आप काशी हिंदू विश्वविद्यालय में रसायन के प्रोफेसर नियुक्त हुए, जहाँ आपके अनुसंधान कार्यो से आपकी प्रसिद्धी हुई। सन् १९२४ में आप जाब युनिवर्सिटी में प्रोफेसर तथा रसायनशालाओं के डाइरेक्टर होकर चले गए। यहाँ आपकी प्रतिभा और चमक उठी। आपके अनुसंधानों से कई उद्योगपतियों ने लाभ उठाकर, जो धन आपको दिया वह सब आपने युनिवर्सिटी की कैमिकल सोसायटी को दान कर दिया। आगे चलकर भारत सरकार के औद्योगिक एवं वैज्ञानिक अन्वेषण बोर्ड के डाइरेक्टर के पद पर आपकी नियुक्ति से भारतीय उद्योगों को बड़ी सहायता मिली।

डाक्टर भटनागर ने पायस संबंधी विस्तृत खोजें की, जिनसे अन्य वैज्ञानिकों ने भी लाभ उठाया। अणुओं की रचना, उनके चुंबकीय गुण तथा रासायनिक चुंबक विज्ञान के क्षेत्र में आपने विशेष रूप से अन्वेषण किए, जिनसे आपकी गणना संसार के प्रमुख वैज्ञानिकों में की जाने लगी। चुंबकी रसायन पर अंग्रेजी में सर्वप्रथम प्रकाशित होनेवाला ग्रंथ आपने प्रो. ए. एस. माथुर के सहयोग से लिखा। कोलाइड तथा प्रकाश रसायन पर भी आपने उल्लेखनीय अनुसंधान किए।

इनके अतिरिक्त, डा. भटनागर ने अनेक औद्योगिक महत्व के अनुसंधान किए जिनमें पेट्रोलियम संबंधी अनुसंधान विशिष्ट हैं। इनसे लाभ उठाकर स्टील ब्रदर्स नामक व्यापारी संस्था ने आपको चार लाख रूपए नकद तथा लाभ का एक अंश दिया। यह धन तथा इस प्रकार की अन्य आय आपने पंजाब युनिवर्सिटी को दे दी। मिट्टी के तेल से अधिक प्रकाश प्राप्त करना, गूदड़ से पश्मीना सिल्क बनाना, वनस्पति तेलों से अधिक उपयोगी वस्तुएँ तैयार करना तथा सुधारित बैक़लाइट, प्लैस्टिक इत्यादि बनाना, ऐसी अनेक नई रीतियों की खोज इन्होंने की।

डा. भटनागर को भारत के अधिकांश विश्वविद्यालयों ने सम्मानित किया था। सन् १९३८ में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के आप सभापति मनोनीत किए गए थे। लंदन की कैमिकल सोसायटी तथा इंस्टिट्यूट ऑव फिजिक्स के आप फेलो तथा फैरेडे सोसायटी के सम्मानित सदस्य चुने गए। भारत की विदेशी सरकार ने भी आपको 'आर्डर ऑव दि ब्रिटिश एंपायर' का तमगा तथा नाइट की उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया। वैज्ञानिक के सिवाय आप साहित्यसेवी तथा उर्दू के कवि भी थे। आपकी मृत्यु १ जनवरी, सन् १९५५ को हुई।

सं. ग्रं. ¾ श्री श्यामनारायण कपूर : भारतीय वैज्ञानिक (भगवान दास वर्मा)