भगवानदास यह जयपुर स्थित आंबेर राज्य के राजपूत शासक राजा बिहारीमल का पुत्र था। सन् १५६२ में जब बिहारीमल ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली तो भगवानदास अपने पिता के साथ आगरा गया। अकबर ने इन राजपूतों का यथोचित सत्कार किया। भगवानदास को मुगल सेना में एक उच्च पद पर नियुक्त कर दिया गया। आंबेर पहला राजपूत राज्य था जिसने अकबर की अधीनता स्वीकार की और उससे वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करके मित्रता बढ़ाई।
अकबर के आदेश पर भगवानदास कासिम खाँ के साथ पाँच हजार सैनिकों का नेर्तृत्व करता हुआ कश्मीर विजय को निकल पड़ा। सन् १५८६ में उसने कश्मीर के शासक यूसुफशाह को सरलतापूर्वक हरा दिया। यूसुफ के पुत्र याकूब ने भगवानदास के विरुद्ध युद्ध करने की धृष्टचेष्टा की। भगवानदास ने उसे भी बुरी तरह हरा दिया। इसके पश्चात् कश्मीर का राज्य मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया। पुरस्कार स्वरूप भगवानदास को कुछ जागीर मिली और 'राजा' की उपाधि दी गई। राजा भगवानदास फारसी के विद्वान् थे। उन्होंने कई रचनाएँ कीं जिनमें फ़तूहात-ए-आलमगीरी भी सम्मिलित है। (मिथिलोचंद्र पांडिया)