भगवंतराय खीची (अथवा भगवंतसिंह असोथर) जिला फतेहपुर के रहनेवाले थे। ये कई सुकवियों के आश्रयदाता और बड़े गुणग्राही नरेश थे। महाराज छत्रसाल ओर छत्रपति शिवाजी का जैसा गुणगान 'भूषण' ने किया वैसे ही अनेक सुकवियों ने इनका भी गुणगान किया। सं. १७९३ वि. में ये अवध के प्रथम नवाब वजीर बुर्हान-उल-मुल्क से युद्ध करते हुए स्वर्गवासी हुए। 'रामायण' और 'हनुमतपचीसी' इनकी दो रचनाएँ कही जाती हैं। कांडों में विभक्त रचना 'रामायण' कवित्त छंद में ही लिखी गई है। २५ ओजस्वी छंदों में हनुमान के शौर्य पराक्रम का 'हनुमतपचीसी' में कवित्वपूर्ण वर्णन किया गया है।
इनकी 'हनुमतपचासा' नामक एक और कृति मिली है जिसमें कुल ५२ छंद हैं। संभव है यह कृति 'रामायण' का कोई अंश हो। प्राचीन काव्यसंग्रहों में इनके छिट पुट में शृंगारी छंद भी पाए जाते हैं। (रामफेर त्रिपाठी)